श्रद्धांजलि मोहम्मद रफी
31 जुलाई
सुहानी रात ढल चुकी न जाने तुम कब आओगें…. रफी सहाब के प्रसंदीदा गीतों में एक हैं। जो वो हमेंशा गुनगुनाना पसंद करते थे।
मोहम्मद रफी हिंदी सिनेमा में दिग्गज गायकों का जिक्र जब भी होता है तो उसमें सुरों के बेताज बादशाह कहे जाने वाले मोहम्मद रफी का नाम जरूर आता है। मोहम्मद रफी की आवाज में जो दर्द था वो सुनने वाले के दिल में उतर जाया करता था। कहने को तो इंडस्ट्री में सुरों के एक से एक फनकार हुए लेकिन किसी में भी वो बात नहीं दिखी जो मोहम्मद रफी में थी।
31 जुलाई 1980 को मोहम्मद रफी हमेशा हमेशा के लिए इस दुनिया से चले गए थे। हालांकि संगीत की दुनिया में जैसा नाम और सम्मान मोहम्मद रफी ने कमाया उसे हासिल करना वाकई काबिले तारीफ है। रफी साहब ने अपने करियर में करीब 25 हजार से अधिक गाने गाए थे जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। मोहम्मद रफी की जिंदगी की सुनी-अनसुनी बातें मोहम्मद रफी हिंदी सिनेमा के सबसे दयालु और सच्चे कलाकार थे।
बताते हैं कि वो संगीतकार से ये भी नहीं पूछते थे कि उन्हें गाना गाने के कितने रुपये मिलेंगे। कभी कभी तो वो आकर गाना गा दिया करते थे और सिर्फ एक ही रुपये लेते थे। उनके करियर के साथ साथ उनकी मौत से जुड़ा एक किस्सा है जो बेहद दिलचस्प है। तो चलिए आपको बताते हैं उनकी पुण्यतिथि पर कुछ खास बातें।
दिलचस्प है यह जानना कि रफी साहब अपने बचपन में भी कार्यक्रम के आयोजकों को इसी तरह की उलझन से निजात दिला चुके हैं। बात पुरानी है. रफी तब बच्चे थे। अविभाजित भारत के लाहौर में केएल सहगल का एक कंसर्ट था। उस कार्यक्रम को सुनने तेरह साल का बालक रफी भी अपने भाई के साथ वहां पहुंचा था।
कार्यक्रम शुरू होने वाला था, कि लाइट चली गई। अब ऐसे हालात में बिना माइक के तो सहगल गा नहीं सकते थे, सो वो होटल में ही रूक गए। उतावली और व्यग्र जनता की भीड़ को कैसे शांत करें, आयोजकों को समझ में नहीं आ रहा था। तब रफी के बड़े भाई हमीद और उनके संगीत गुरू अब्दुल वाहिद खान ने आयोजकों से निवेदन किया कि बालक रफी को स्टेज पर गाने का मौका दें।
आयोजकों के पास कोई चारा तो था नहीं, सो बालक मंच पर गाने पहुंच गया। बालक रफी ने ऐसा शमां बांधा कि लोग वाह-वाही करने लगे। यहीं प्रेक्षकों में उस जमाने के मशहूर संगीतकार श्याम सुंदर जी भी बैठे थे। उन्होंने रफी को सुना और उसकी प्रतिभा के ना सिर्फ कायल हुए बल्कि उसे गाने का मौका भी दिया। आप सोच रहे होंगे कि एक तेरह साल के बालक पर आयोजकों ने भरोसा कैसे कर लिया। इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है।
रफी साहब के भाई की दूकान के पास सुबह-सुबह एक फकीर गुजऱा करता था। वो बहुत ही मधुर स्वर में गीत गाता था। जहां वो जाता, रफी साहब उसके पीछे-पीछे जाते और जब तक वो इलाका छोड़ नहीं देता, उसके पीछे घूमते रहते। वे उसका गाना भी बहुत ही लगन से सुना करते। लौटकर दूकान पर आकर ठीक वैसी ही मधुर आवाज़ में वो गीत को हूबहू दोहरा देते। यह रोज का किस्सा था।
उनके इस अद्भुत गुण ओर उनकी आवाज की मधुरता की गूंज दूर तक फैलने लगी। तब उनके बड़े भाई ने उस्ताद अब्दुल वहीद खान के पास संगीत सीखने भेज दिया. रफी की चर्चा पूरे लाहौर में होने लगी।
इसी के चलते उन्हें सहगल वाले आयोजन में गाने का अवसर मिला। एक और किस्सा अमिताभ से सुनिए ‘दो दिन का कार्यक्रम था। पहले दिन रफी साहब गा चुके थे। दूसरे दिन सुबह हमें पता चला कि आज जिन गायक का प्रोग्राम है वो नहीं आ रहे हैं। रफी साहब एयरपोर्ट जा चुके थे।
हम लोगों ने एयरपोर्ट की ओर दौड़ लगाई। प्लेन बस उडऩे ही वाला था एयरपोर्ट अथारिटी से निवेदन करके प्लेन में पहुंचे और रफी साहब को समस्या बताई। रफी साहब बिना कुछ कहे तत्काल हमारे साथ नीचे उतर आए। इस तरह हम परेशानी में फंसने से बच गए।’ बता दें रफी साहब को अमिताभ की दीवार बहुत पसंद थी।
रफी साहब से जुड़ा एक किस्सा था जो बहुत मशहूर हुआ था।
फिल्म नील कमल का गाना बाबुल की दुआएं लेती जा गाते वक्त रफी साहब की आंखों में आंसू आ जाते थे। इसकी वजह ये थी कि इस गाने के ठीक एक दिन पहले उनकी बेटी की सगाई हुई थी और इसलिए वो बहुत भावुक थे। इस गीत के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। रफी साहब को 6 फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिले थे।
इसके अलावा उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया था। उन्होंने आसामी, कोकणी, पंजाबी, उडय़िा, मराठी, बंगाली के साथ साथ स्पेनिश और अंग्रेजी में भी गाने गाए थे। रफी साहब ने बिलकिस से शादी की थी जो उनके बड़े भाई की साली थीं। उन्होंने रफी साहब के बारे में बताया था कि वो पब्लिसिटी पसंद नहीं करते थे। हर तरफ जब भी वो किसी शादी में जाते तो अपने ड्राइवर से कहते यहीं खड़े रहना।
इसके बाद जोड़े के पास जाकर उन्हें बधाई देते और फिर कार में आकर बैठ जाते। बाताते चले सुहानी रात ढल चुकी रफी सहाब के प्रसंदीदा गीतों में एक हैं। जो वो हमेंशा गुनगुनाना पसंद करते थे। मोहम्मद रफी ने अपने निधन से पहले एक गाना रिकॉर्ड किया था जिसके बोल थे शाम फिर क्यों उदास है दोस्त। किसी को भी नहीं पता था कि ये उनकी जिंदगी का आखिरी गीत होगा।
31 जुलाई को रफी साहब को हार्ट अटैक आया था जिसके चलते उनका निधन हो गया था। जिस दिन उनका निधन हुआ उस दिन मुंबई में जोरों की बारिश हो रही थी लेकिन फिर भी उनकी अंतिम यात्रा में लाखों लोग शामिल हुए थे। उस दिन अभिनेता मनोज कुमार ने कहा था, सुरों की मां सरस्वती भी अपने आंसू बहा रही है आज। रफी साहब चले गए लेकिन जाते जाते संगीत प्रेमियों के लिए अपने वो गीत छोड़ गए जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।