Story DestinationStory Manzil

शीतल अपने घर के सामने गार्डन में बैठकर गार्डन में खिले रंग-बिरंगी फूलों को निहार रही है, और अपनी अशान्त जिन्दगी के लिए कुछ खुशियां ढुंढ रही हैं। इतने में प्रिया आकर उसकी आंखों पर हाथ रखती है। तब भी शीतल के खमोश रहने पर प्रिया कहती है शीतल ये तुम्हें क्या हो गया हैं इस तरह खोई-खोई रहती हो पहले की तरह जिन्दगी को एंजाय़ करना सिखों तुम जानती भी हो आज तुम यहां इस तरह उदास बैठी हो और ऊधर लोग तुम्हारी मंजिल कहानी की सफलता पर खुशियां मना रहें है। और वो मंजिल जैसी खुबसूरत कहानी की लेखिका शीतल शर्मा को एक बार देखने और मिलने के लिए बेताब हैं।

मुझे कुछ समझमें नहीं आता है क्यों तुम इस अकेलेपन में घुट-घुट कर जीना चाहती हो। क्यों तुम मंजिल की सफलता से भागना चाहती हो। कभी तुम चाहो तो तुम्हारा ये अकेलापन वैसे ही दूर हो सकता है।

शीतल अगर तुम अपने सपने नहीं पूरे करना चाहती हो तो अपने प्रशंसकों से मिलकर उनके दिल में बसे तुमको एक बार मिलने और देखने के सपने को पूरा करों। तुम जानती भी हो शीतल लोग तुम से मिलने तुम्हें एक बार देखने के लिए कितना ज्यादा बेताब है।

प्रिया कब से शीतल को कहती जा रही थी लेकिन शीतल बस चुपचाप उसकी बातों को सुन रही थी। फिर प्रिया ने शीतल का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा- चलो शीतल मैं तुम्हें लेकर चलती हूं। आज तुम्हारी मंजिल कहानी को सम्मानित किया जा रहा है। और आज तुम्हारा उस समारोह में मौजूद होना बहुत जरूरी है।

शीतल मैं चाहती हूं, आज दुनिया जान जाए के मंजिल जैसी सफल कहानी की लेखिका एक नाजूक सी कमसिन लडक़ी है। जिसके नाजूक हाथों ने वो शब्द लिखे के बड़े से बड़ा लेखक क्या लिखेगें। चलों शीतल तैयार हो जाओं।

बहुत देर बाद शीतल ने अपनी खमोशी को तोडक़र अपने नाजूक लबों को तकलीफ दी थी। उसकी अवाज में कहीं-कहीं खीचा हुआ पन और दर्द था। प्रिया आप समझती क्यों नहीं इस तरह हमारे दुनिया के सामने आने से क्या होगा।

एक बार फिर शैखर हमारे सामने प्यार बनके खड़े हो जाएगें और उनकी वो खामोश नजरे फिर हमें अपनी ओर खीचना चाहेगी। और हम ये नहीं चाहते है के जिन्दगी में फिर कभी शैखर का सामना हो। शैखर अभी बस हमारी सूरत से वाकिफ हैं। हम नहीं चाहते है वो हमारे प्यार में खोकर उस गम के सागर में डुब जाए। जिसकी लहरों पर आज हमारी जिन्दगी चल रही है।

लेकिन शीतल क्यों तुम शैखर के लिए अपनी जिन्दगी बर्बाद करना चाहती हो। मैं जानती हूं तुम अभी भी शैखर को भूला न सकीं हो। लेकिन एक बात मैं तुम को बता दूं ये आग खुद तुमने अपनी जिन्दगी में लगाई है। अगर तुम एक बार शैखर से मिल कर उसे सच्चाई बता देती तो मुझे उम्मीद थी शैखर ने तुमसे इतना प्यार किया था के वो तुम्हें हर रूप में स्वीकार कर लेता। वो तुम्हें इस तरह से तन्हा नहीं छोड़ता।

हां प्रिया आप सच कह रही हो। ये आग हमने खुद अपनी जिन्दगी में लगाई है लेकिन हम खुश है ये अच्छा है इस आग में हम अकेले ही जल रहे है। प्रिया अब हम ऐसा कुछ नहीं होने देगें जिससे हमारी वजह से शैखर की जिन्दगी अंधेरों से घीर जाए। प्रिया हम तुम्हारें साथ कहीं नहीं जाना चाहते है। हम जो जिन्दगी जी रहें है उसमें हम बहुत खुश है।

क्योंकि हम जानते है इसमें ही हमारे शैखर की भलाई है। और शैखर की खुशियों के लिए हम कुछ भी कर सकते है। लेकिन शीतल कुछ मत कहों प्रिया हमारा ये फैसला बिल्कुल सही है। हम जानते है हमारे इस तरह से यहां आ जाने के बाद शैखर हमें ढुंढते होगें। और अगर शैखर को पता चल गया के हम यहां है तो वो यहां आ जाएगें और उनके यहां आने के बाद उनकी जिन्दगी में जो तुफान आएगा। उसके अहसास से ही हम कांप जाते है। प्रिया हम अपनी जिन्दगी में जैसे हैं खुश है।

प्रिया हमें ऐसे उजालों में मत ले जाओं जो हमारे शैखर की जिन्दगी में अंधेरे कर दें। और हमें उम्मीद है शैखर अपनी जिन्दगी में खुश होगें। अब तक तो उन्होंने हमें भुला दिया होगा।

शीतल तुम से तो बात करना ही बुरा है। और मैं तुम्हें बता दूं। जहां तक मैं शैखर को जानती हूं वो तुम्हें कभी नहीं भुल सकता है। शैखर ने तुम्हें सच्चा प्यार किया है। मैं तुम्हें बता दूं वो तुम्हें इस तरह से नहीं भुला सकता है। जान हो तुम उसकी कैसे जी रहा होगा वो तुम्हारे बगैर ये जिन्दगी शायद तड़प-तड़प के। मुझे तुम्हारी इन बातों को सुनकर शैखर पर तरस आता है। इतना कहकर प्रिया वहां से चली गई।

लेकिन प्रिया की जाते-जाते कहीं बाते शीतल के दिल में हलचल मचा देती है। और आज फिर उसे यादों के झरोखे से उसको निहारता शैखर का वही चहेरा नजर आता है। और उसे फिर वहीं यादें घैर लेती हैं।

जब वह कभी गार्डन में तो कभी बालकनी में तो कभी अपने कमरे की खिडक़ी के पास बैठकर घंटों मंजिल कहानी की कल्पनाओं में खोई रहती थी। और कभी भी अपने आस-पास ध्यान नहीं देती के कोई उसके इसी हंसी अन्दाज को अपनी निगाहों में कैद कर रहा है। और उसके खुबसूरत चेहरे की हर हंसी अदा को अपने दिल में उतार रहा है।

इस बात का अहसास तब हुआ जब उसके घर में काम करने वाली मरीयन जिसे वहां अपनी मां अपनी बहन अपनी हमदर्द अपनी दोस्त यूं कहों अपना सब कुछ समझती थी। और उन्हें प्यार से मेम दीदी कह कर पुकारती थी। उसे आज भी वो दिन याद है जब वह अपने कमरे की खिडक़ी के सामने बैठकर मंजिल कहानी लिख रही थी। तभी मेमदीदी ने उससे आकर कहा था।

बेबी कभी तुमने ध्यान दिया ये सामने वाला मिस्टर शैखर हमेशा तुम को ही देखता है। हम कई महीने से उस पर गौर करता है वो हमेशा तुम को ही देखता है। हां मुझे अभी तक याद है वो पल जब मेमदीदी के कहने के बाद मैंने पहली बार नजरे उठाकर शैखर की तरफ देखा था। शैखर एक खुबसूरत और सीधा-साधा लडक़ा है ऐसा मुझे उसे देखकर लग रहा था।

उसकी अच्छाई उसके चहरे से साफ छलक रही थी। वैसे हम कह सकते है उस वक्त हम शैखर के बारे में ज्यादा नहीं जानते थे। क्योंकि वो अभी नये-नये ही सामने वाले प्लैट में शिफट हुए थे। और हमारा तो ये था सारा वक्त हमारी कहानियों को पूरा करने में ही बीतता था। हमारे आस-पास क्या हो रहा है हम कभी ध्यान ही नहीं देते थे। और शैखर के मामले में भी ऐसा ही हुआ था।

लेकिन जब आज मेमदीदी के कहने पर हमें इस बात का अहसास हुआ तो मेमदीदी के कह ने के बाद से हमने बाहार बैठना बंद कर दिया। और अपने कमरे की खिडक़ी पर भी परदा डलवा दिया। ताकि शैखर हमें दुबारा न देख पाये। लेकिन कभी-कभी हम ही देखते शैखर हमारे इस बर्ताव से परेशान थे। और घंटों अपने घर की बालकनी में खड़े होकर हमारे बहार आने का इन्तजार करते थे।

धीरे-धीरे दिन गुजरते जा रहे थे। अब तो गर्मी अपने रंग दिखाने लगी थी। लेकिन फिर भी शैखर तपती धुप में खड़े होकर हमारी एक झलक के लिए बेताब रहते थे। जैसे सोना आग में तपकर कुन्दन बनता है। उसी तरह हम देख रहे थे। हमारी एक झलक के लिए शैखर की ये तड़प सच्चे प्यार में बदल रही थी। और शैखर की इसी बेताबी ने एक दिन शैखर का एक खत हमारे हाथों में थमा दिया था।

जिसमें शैखर ने अपने प्यार का इजहार किया था। सच कहूं आज शैखर की इस दिवानगी ने हमें भी अपने प्यार के आगे झुका दिया था। और शैखर की इस तड़प ने हमें भी अपने प्यार में इस तरह से जकड़ लिया था के हम खुद अपने आपको भुल गए थे। हमने सोचा ही नहीं हम क्या है? और जिन हवाओं में हम उडऩा चाहते है।

जिस अम्बर को हम छुना चाहते है उसके लिए हमारे पास पर ही नहीं है। और इस बात का अहसास उस दिन हमें हुआ तब हम जिस सपनों के आसमान पर थे। उससे गीर कर चकनाचुर हो गये थे। वो अहसास आज भी हम नहीं भुला पा रहें है। जब शैखर के खत का जवाब हमने भी हां में दिया था। और उस खत को पढ़ते ही शैखर ने खुशी में झुमते हुए पहली बार हमारे गेट की बेल बजाई थी।

वो हमसे मिलने के लिए बेकरार थे। एक हिसाब से हम भी उनसे मिलने के लिए बेकरार थे। क्योंकि रू-ब-रू होने वाली तो ये हमारी पहली मुलाकात थी। उस वक्त को हम अब तक नहीं भुला पाये है। जब मेमदीदी ने हमें शैखर के आने की खबर दी थी। उस खुशी में हम खुद को ही भुल गये थे। और शैखर के आने की खबर सुनकर एक दम अपनी मेज से झटके से खड़ा होना चाहा था हमने और तब हम एकदम जमीन पर गीर गये थे।

पहली बार ऐसा हुआ था के मेमदीदी भी हमें सहारा देकर गिरने से नहीं बचा पाई थी। आज हमें अहसास हुआ था। हम कितने मजबूर है? हम अपने पैरों से कदम बड़ा कर चल तो सकते नहीं हैं। और शैखर की जिन्दगी में कदम से कदम मिला कर चलने का सपना देख रहे है। उस वक्त इस अहसास के साथ हमारे सारे सपने बिखर गये थे। और आज फिर हम शैखर को भुला कर अपने आपको पहचान पाये थे।

“आज हम पहचान पाये है,
जिन्दगी हमने गम में बिताये हैं,
अपनी ये पहचान सही हैं,
तेरे संग जिन्दगी बिताना मुमकिन नहीं हैं,
एक गम की लहरों पर जिन्दगी है हमारी,
तुमने चाहा हमको वो अहसास वो खुशी है हमको प्यारी,
इन अंधेरों में न हम तुमको खिचना चाहेंगे,
कोई हमारा भी है चाहने वाला ये सोच-सोच कर ये जिन्दगी बितायेगें,”

फिर मेमदीदी से हमने रोते हुए कहा था मेमदीदी जाओं शैखर से कहना आज शीतल ने अपने आपको पहचाना हैं। इसलिए जो आपके सपनों की शीतल थी अब वो मर चुकी हैं। इसलिए अब आप उसे भूल जाओं और उसकी जिन्दगी से हमेशा-हमेशा के लिये दूर चले जाओं। और अपनी एक नई दुनिया बसाओं। ऐसे हमसफर की तलाश करों जो आपका जिन्दगी भर साथ निभा सकें। और जिन्दगी के हर मोड़ पर आपका साथ खड़े रह सकें।

इतना कहकर हम अपने आपको संभाल नहीं सकें और खुब रोने लगे। हम जानते है उस वक्त किस मुश्किल से मेमदीदी ने शैखर को जाने के लिए मनाया था वो बस एक ही बात कह रहे थे। आप मुझे एक बार शीतल से मिलने दो शीतल मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकती है। ऐसी क्या बात हैं? जो पल भर में ये खुशियां इस लम्बी जुदाई में बदल रही है।

मैं जानता हूं शीतल भी मुझसे प्यार करती है। लेकिन वो ऐसा क्यों कर रही है? फिर शैखर ने ऊपर की तरफ देखकर कहा शीतल ऐसा मत करों मुझे अपनी जिन्दगी से मत निकालों मैं मर जाऊंगा। तुम बिन जी नहीं पाऊंगा। शीतल मैंने तुमसे बहुत प्यार किया है। और मैं तुम से पूछना चाहता हूं क्या तुम मेरे बिन जी पओगी। खमोश क्यों हो शीतल मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं। तुम क्या चाहती हो। क्या तुम ये फैसला अपनी मर्जी से कर रही हो।

शैखर के इस सवाल ने हमें तड़पा डाला था क्या जी पाओगी तुम मेरे बिन शैखर की वो आवाजे और वो तड़प हमारे दिल को छन्नी कर रही थी। शैखर की बाते हमारे जख्मी हो चुके दिल पर नमक का काम कर रही थी। और हां ये सच था के अब हम शैखर के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। लेकिन हमें ऐसा करना था क्योंकि हम मजबूर थे।

हम शैखर की जिन्दगी बर्बाद नहीं कर सकते थे। हम जानते थे आगे चलकर शैखर को हम से बेहतर जीवनसाथी मिल सकता है। जो हर मोड़ पर उसका साथ दें सकें। और उस दिन शैखर ने पहली बार हमारी आवाज सुनी थी। जब हमने उससे कहा था हाँ शैखर हम यही चाहते है कि आप हमारी जिन्दगी से हमेशा-हमेशा के लिए चले जाओं। हमने कभी आपसे प्यार नहीं किया है। और जिसको आप प्यार समझते है वो सब धोखा था।

नहीं शीतल कह दो ये सच नहीं है जो तुम कह रही हो सच तो ये है जो इस खत में लिखा है। शैखर अब हम और सच को छुपा नहीं सकते है। चले जाओं हमारी जिन्दगी से शैखर हम हमारी खुशियां आप के साथ नहीं बांट सकते है। जो खुशियां हमारे पास है वो बेमिसाल है वो बस हमारी खुशियां है। हमारी जिन्दगी है वो खुशी तुम हमें नहीं दे पाओगें शैखर चले जाओं।

किसी तरह शैखर वह से तो चले गये थे। लेकिन वो हमारे दिल से जाने का नाम नहीं लें रहे थे। हमारा रो-रो कर बुरा हाल हो गया था और हम अपने उन सपनों पर पछता रहे थे जो हमने खुली आंखों से देखे थे। हम जानते है। उस रात हमारी खातीर मेमदीदी को कितनी परेशानी उठानी पड़ी थी क्योंकि हम रातों रात उस शहर को छोडक़र यहां जो आ गये थे।

थोड़ी देर बाद शीतल को मेमदीदी ने हिलाकर उसको उसके ख्वाबों के गलियारों से वापस खींच लाई और कहा चलों बेबी हम आपको अन्दर ले चलता है शाम हो गई है।

अब शीतल इसी तरह मेमदीदी के साथ शैखर की यादों के सहारे अपने दिन गुजार रही है। वैसे भी मेमदीदी के सिवा उसका अपना तो कोई नहीं हैं। उसके मम्मी-पापा को तो वो बचपन में ही खो चुकी थी। वो अपने मम्मी-पापा की करोड़ों की दौलत की इकलोती बारिश है। लेकिन उसे दौलत से बिल्कुल प्यार नहीं था। वो एक बड़े से महल की सुन्दर सी राजकुमारी थी।

लेकिन उसे बचपन से ही गरीबी से लगाव था। और उसे लिखने का बहुत शौक था वो अपने पैरों से चल नहीं पाती थी। लेकिन उसने अपनी इस कमजोरी को अपनी सबसे बड़ी ताकत बना लिया था। वो अपनी कहानियों के बल पर लोगों के दिलों पर राज करती थी। लेकिन वो ये सब किसी नाम या शौहरत के लिए नहीं करती थी।

इसलिए शीतल कभी किसी के सामने अपनी हकीकत जाहिर नहीं होने देती थी। वहीं मशहूर लेखिका शीतल शर्मा है। यहां तक अब तो उसकी मंजिल कहानी को पुरी दुनियां के लोग पसंद कर रहे है। हर कोई ये जानना चाहता है शीतल शर्मा कौन है? वो कहा रहती है? वो कैसी दिखती है? हर कोई उससे मिलने को बेताब है।

लेकिन वो अपने आपको इस सफलता से दूर ही रखना चाहती है। ताकि शैखर को मालूम न हो के शीतल ने अपने अपाहिज होने के कारण उसे छोड़ दिया है ताकि उसकी गमभरी जिन्दगी के साये शैखर पर न पड़े।

लेकिन जैसे-जैसे दिन ढल रहे थे। मंजिल कहानी की ये खुबसूरत लेखिका अपने आपको दुनियां की नजरों से छुपा नहीं पा रही थी। क्योंकि जहां तक दोस्त रिश्तेदारों को तो मालूम था के मंजिल शीतल की कोमलता से सबरी है।

और जब सिमरन शीतल के सामने वाले प्लैट में शिफट हुई। तो वो अक्सर शीतल के महल जैसे बने घर की तरफ देखती थी। लेकिन उसे वहां कोई नहीं दिखता था। अब वो हमेशा जानने के लिए बैचेन थी इस घर में कौन रहता है। उसने अक्सर मेमदीदी और प्रिया को घर में आते जाते देखा था।

सिमरन शीतल की बहुत बड़ी फैन थी। वो दिवानों की तरह उसकी कहानी पढ़ा करती थी। शायद शीतल के लिए उसके दिल में बेइन्तहा प्यार था इसलिए शायद वो शीतल के घर को देखकर इतनी बैचेन थी कि वो एक दिन प्रिया के पीछे-पीछे शीतल के घर तक पहुंच गई। और प्रिया से उसने जानने की कोशिश की यहां कौन रहता है? प्रिया उससे कहा ये उसकी बचपन की दोस्त का घर हैं। और वो अपनी मेमदीदी के साथ यहां रहती है। और प्रिया अन्दर जाने लगी और ड्राइवर से कहा भाईया सारा समान संभाल कर अन्दर ले आना।

सिमरन भी अपने घर जाने लगी के अचानक ड्राइवर के हाथ से एक बॉक्स नीचे गीर गया। उसमें बहुत सारी किताबे थी। सिमरन की नजर उसपे पड़ी वो सारी मंजिल कहानी की किताब थी। उसने एक किताब अपने हाथ में उठा कर देखी। और घर के सामने लगी नम्बर प्लेट पर देखा उस पर बड़े-बड़े अक्षरों में शीतल शर्मा लिखा था।

उसने ड्राइवर से कहा क्या इन सारे बॉक्सों में किताबें है। हाँ। क्या मैं देख सकती हूं। प्लीस एक बॉक्स और मुझे देख लेने दिजिए। बहुत कहने के बाद ड्राइवर ने उसे दूसरे बॉक्स देखने दिया उसमें भी किताबे थी। सिमरन उन्हें देखकर खुशी से झुम उठी। वो शीतल की दूसरी कहानियों की किताब थी। टुटा हुआ दर्पण, आशियाना, बिखरे हुए मोती, सिमरन खुशी से झुमते हुए अन्दर जाने लगी। लेकिन ड्राइवर ने उसे अन्दर नहीं जाने दिया। मजबूरन उसे घर जाना पड़ा।

लेकिन दूसरे दिन तो सिमरन शीतल के घर पहुंच ही गई। लेकिन जब उसने शीतल के घर में कदम रखा तो उसे शीतल के कुछ गाने की मधुर आवाज उसके कानों में लगी। लेकिन वो महसूस कर रही थी उसमें बहुत दर्द है-

“दिल जिन्दगी के आलम में एक शाम और ढल गई है…
वो सुबह फिर न आएगी जो रात बन गई है…
दिल जिन्दगी के आलम में…
एक शाम और तेरी याद में गुजर गई है…
तुझे चाहते रहना मेरी जिन्दगी बन गई है…
दो दिल आज मिलने के लिये मजबूर हो गये है…
एक हमारी मजबूरी से दोनों जख्मों से चूर हो गये है…
चाहत का रंगीन अरमान बनके..
तुम दिल में रहते हो हमारी जान बनके…
इस दिल की धडक़नों में…
तेरी याद बड़ गई है…
दिल जिन्दगी के आलम में एक शाम …
वो सुबह फिर न आएगी जो….
हर तरफ उजाला है बस इस दिल की दुनियां में अन्धेरा है…
चाहत की रोशनी हमें अंधेरों से दूर ले जाना चाहे…
तेरा प्यार रह-रह कर आवाज दे कर बुलाए…
जख्मों को दिल कैसे छुपाए…
कहीं इस बैचेनी में हम न मर जाये…
बैशक हमें ये प्यार निभाना है…
तेरी खुशियों की खातीर मिट जाना है…
शायद अब तु न आएगा तेरी याद ही हमारे लिये जीने की मंजिल बन गई है…
दिल जिन्दगी के आलम में एक शाम और ढल गई है….
वो सुबह फिर न आएगी जो रात बन गई है….

इस गीत को सुनकर सिमरन एक दम हेरान रह गई। इसमें कितना दर्द है वो सोच भी नहीं सकती थी के मंजिल और अशियाना जैसी कई कहानियों की लेखिका के दिल में इतना दर्द होगा और ये देखकर तो उसकी आंखों में आंसू आ गये। के अपनी कहानियों के बल पर लोगों को दूर-दूर तक की सैर कराने वाली शीतल अपने पैरों से एक कदम भी नहीं चल सकती है।

अब सिमरन ने अपने आंसू पोछे और शीतल से जाकर कहा ऑटोग्राफ प्लीस। शीतल ने एक दम चौक कर सिमरन की तरफ देखा….

सैयद शबाना अली
हरदा मध्यप्रदेश

Leave a Reply