Narmadapuram news: कलेक्टर सोनिया मीना ने रेशम केंद्र प्रक्षेत्र गूजरवाडा एवं डोकरी खेड़ा का भ्रमण किया। रेशम कार्य से आजीविका उपार्जन करने वाली लखपति महिलाओं एवं दीदियो से चर्चा की। वही शासकीय उद्यान मटकुली पहुंचकर उद्यान का भ्रमण कर उद्यान में लगे विभिन्न किस्म के आम, नींबू, अमरूद, कटहल और अन्य पौधों की वैरायटी को देखा।
कलेक्टर ने सबसे पहले माखननगर के गुजरवाड़ा रेशम प्रक्षेत्र पहुंचकर रेशम पालन कर आजीविका उपार्जन करने वाली महिलाओं से चर्चा की। महिलाओं ने बताया कि एक महिला को एक एकड़ की भूमि पर रेशम के बगीचे उपभोग अधिकार के तहत दिए गए हैं। सभी महिला एक-एक एकड़ में रेशम के कीड़ों का पालन कर एवं रेशम का उत्पादन कर रही है सभी महिलाएं सालाना डेढ़ से 2 लाख रुपए कमा रही है और अपने परिवार का पालन पोषण कर आत्मनिर्भर हो रही है।
कलेक्टर को रेशम कार्य में संलग्न लखपति महिलाओं ने बताया कि 2010 से वे यहां पर कार्य कर रही है और हर साल एक एकड़ पर रेशम के कीड़ों का पालन कर आजीविका कमा रही हैं, उन्हें इस कार्य के लिए रेशम विभाग द्वारा प्रशिक्षण भी प्रदान किया गया है। बताया गया कि रेशम के व्यवसाय से लखपति बनी महिलाओं को औरंगाबाद एवं पुणे के रेशम केंद्र का भी भ्रमण कराया गया है। बताया गया कि रेशम क्षेत्र 60 एकड़ में फैला हुआ है और यहां 40 महिलाएं कार्यरत हैं और इसी से भी अपनी आजीविका चला रही है।
महिलाओं ने बताया कि रेशम के पौधों में गोबर खाद ही डाला जा रहा है। परिवार के सभी लोग रेशम पालन में संलग्न है। महिलाओं ने बताया कि गुजरवाडा में टसर और मलबेरी ककून तैयार किया जाता है। जिला रेशम अधिकारी रविंद्र सिंह ने बताया कि जल्द ही रेशम केंद्र में सोलर प्लांट लगाने प्रस्ताव तैयार गया है।
कलेक्टर ने महिलाओं से चर्चा करते हुए कहां की सरकार ने आप सब लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए हर संभव प्रयास किया है, रेशम प्रक्षेत्र बनाया है। आप सभी की मेहनत से आज जिले के रेशम की देश-विदेश में पहचान है। बताया गया कि रेशम की बिक्री के लिए मध्य प्रदेश सिल्क फेडरेशन द्वारा मार्केटिंग की सुविधा भी उपलब्ध कराई गई है।
मध्य प्रदेश सिल्क फेडरेशन स्वयं यहां से रेशम का माल उठाता है। बैकवर्ड और फॉरवर्ड लिंकेज द्वारा सुविधा उपलब्ध कराई गई है। महिलाओं को पौधे, अंडे, बिजली, सिंचाई उपकरण एवं पानी उपलब्ध कराए जाते हैं और रेशम बनाने के बाद उनसे रेशम खरीदा भी जाता है। हर महिला आज यहां आत्मनिर्भर है और अपने परिवार का खर्च स्वयं चलाती हैं। कलेक्टर ने गुजर वाडा के कृमि पालन ग्रह का अवलोकन किया। सर्वाइवल के हिसाब से 50 प्रतिशत तक कृमिपालन सफल रहता है। 1 एकड़ में 1 क्विंटल 20 किलो तक का ककून निकलता है। 400 से 463 रुपए किलो के हिसाब से ककून का विक्रय किया जाता है।
कलेक्टर ने तत्पश्चात पिपरिया के डोकरी खेड़ा रेशम केंद्र प्रक्षेत्र का भ्रमण किया। डोगरी खेड़ा में टसर का ककून को संधारित किया जाता है। अगली फसल के अंडे के लिए संधारित किया जाता है। रेशम कृमियों को भंडारित किया जाता है। बारिश में उस ककून से तितली बाहर आती है फिर फीमेल अंडा देती है। बताया गया कि यहां भी महिला श्रमिक उक्त कार्य कर रही है।
8 हेक्टेयर में फैले हुए रेशम प्रक्षेत्र में एक महिला को एक हेक्टेयर के हिसाब से अर्जुन के पौधों वाले भूमि दी गई है। अर्जुन के पौधों पर कीड़ों को चढ़ाया जाता है और इससे रेशम का उत्पादन होता है। जिला रेशम अधिकारी ने बताया कि जिले में चार तरह के रेशम का उत्पादन हो रहा है। मलबरी रेशम, ईरी रेशम, टसर रेशम और मोगा रेशम जिसे गोल्डन सिल्क कहते हैं। बताया गया कि डोगरी खेड़ा के अलावा पाठई एवं खारी में भी टसर रेशम का उत्पादन किया जा रहा है। कलेक्टर ने कृषकों का एफपीओ बनाने और मटकुली स्थित 20 एकड़ रेशम विभाग की ज़मीन को पुनर्जीवित करने के निर्देश जिला रेशम अधिकारी को दिये।