अमरूद एक बहुत ही पोष्टीक फल है। यह बहुत ही स्वादिष्ट फल होता है। अमरूद फल सभी लोग खाना पंसद करते है। यह खाने में मीठा और बेहद स्वादिष्ट फल है। यह फल सेहत के लिए बहुत गुणकारी है। अमरूद का खाने से शुगर कंट्रोल करता है। मुंह में अगर छाले हो जाए तो अमरूद के पत्ते चबाने से ठीक हो जाते है। अमरुद में कई औषधीय गुण भी होते है, इसका मुख्य इस्तेमाल दांतो से सम्बंधित रोगो को दूर करने में किया जाता है, तथा इसकी पत्तियों को चबाने से दांत में कीड़ा लगने खतरा कम हो जाता है।
अमरुद में विटामिन ए, बी और सी की मात्रा अधिक पाई जाती है। इसमें कैल्शियम, आयरन और फास्फोरस भी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। अमरुद से जैम, जूस, जेली और बर्फी भी बनायीं जाती है। अमरूद की सब्जी भी बनायी जाती है। इसकी मांग मार्केट में खुब ज्यादा है अमरुद की खेती फल के रूप में की जाती है। यह सर्दी के सीजन की फसल होती है लेकिन ये आमतौर पर बारामासी अमरूद की फसल भी होती है। इसकी कुछ वैयरायटी में बारह मासी फल लगते है।
अमरूद की खेती किसानों के लिए भी लाभ का धंधा सावित होती है। क्योंकि अमरूद एक ऐसा फल है जिसकी डिमांड मार्केट में साल भर बनी रहती है। यह सर्दीयों का फल होता है इसलिए सर्दी के मौसम में तो लोग इस फल को बहुत ज्यादा पंसद करते है। इसलिए अगर किसान चाहे तो अमरूद की बारहा मासी खेती कर लाभ कमा सकते है। ये एक ऐसा फल होता है जिसका पेड़ आसानी से लगाया जा सकता है। एक बार लगने के बाद ये एक से दो साल में फल देना लगता है। फिर तो हर साल किसान इससे फल प्राप्त कर लाभ कमा सकते है। इसलिए अमरूद की खेती किसानों के लिए बहुत लाभ कारी सिद्ध हो रही है। और किसान इसकी खेती कर दिन दुगना लाभ कमा रहे है।
अमरुद की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु:-
अमरुद का पौधा उष्ण कटिबंधीय जलवायु में ही होता है। इसलिए इसकी खेती सबसे अधिक शुष्क और अर्ध शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में की जा सकती है। अमरुद के पौधे सर्द और गर्म दोनों ही जलवायु में आसानी से पनपते है। लेकिन अधिक वर्षा अमरूद के पौधों के लिए हानिकारक होती है। सर्दियों के मौसम में पडऩे वाला पाला इसके छोटे पौधों को काफी नुकसान पहुँचाता है। इसके पौधे अधिकतम 30 डिग्री तथा न्यूनतम 15 डिग्री तापमान को ही सहन कर पाते है, तथा पूर्ण विकसित पौधा 44 डिग्री तक के तापमान को भी सहन कर सकता है।
अमरुद की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी:-
अमरुद की खेती किसी भी प्रकार की उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है। अमरूद की खेती के लिए बलुई और दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। क्षारीय मिट्टी में इसके पौधों पर उकठा रोग लगने की संभावना अधिक रहती है। इसलिए इसकी खेती में भूमि का मान 6 से 6.5 के मध्य होना आवश्यक है।
अमरुद की खेती की तैयारी कैसे करें:-
अमरुद के पौधे एक बार लगाने के बाद किसान सालों तक इनसे फल प्राप्त कर सकते है। एक बार की मेहनत और खर्चा कर हर साल की उपज प्राप्त कर मुनाफा कमा सकते है। अमरूद की खेती करने के लिए सबसे पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए। सबसे पहले खेत की मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई कर देनी चाहिए। जिससे खेत की जमीन समतल हो जाएगी।
जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ देना चाहिए। इसके बाद खेत में प्राकृतिक खाद के रूप में 10 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद प्रति एकड़ के हिसाब से डालना चाहिए। खाद डालने के बाद रोटावेटर लगाकर दो से तीन तिरछी जुताई की जाती है। इसके बाद खेत में पानी की सिचाई कर दें। पानी लगाने के बाद जब खेत की मिट्टी के सूख जाए तब जुताई करना चाहिए। इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है। मिट्टी के भुरभुरा हो जाने के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर किया जाता है।
अमरूद के पौधे कैसे लगाएं:-
अमरूद के पौधों जुलाई, अगस्त तथा सितम्बर के माहिने में लगाना उपयुक्त होता हैं जहां पर सिंचाई की उच्चित व्यवस्था होती है वहां पर फरवरी मार्च में भी अमरूद के पौधे लगाए जा सकते है। अमरूद के पौधों का लाईन से लाईन 5 मीटर तथा पौधे से पौधे 5 मीटर अथवा लाईन से लाईन 6 मीटर और पौधे से पौधे 6 मीटर की दूरी पर पौधे बोए जाते है।
अमरूद की खेती में खाद और उर्वरक कैसे इस्तेमाल करें:-
अमरूद का पौधा लगाने से पहले गड्ढा तैयार कर लेते है। गड्डे तैयार करते समय प्रति गड्ढा 20 से 25 किग्रा सड़ी गोबर की खाद डालकर गड्ढे में पौधा लगाया जाता हैं। इसके बाद हर साल में 5 वर्ष तक इस प्रकार की खाद डाली जाती है। इसके बाद खेत में पौधा रोपाई के लिए 5 से 6 मीटर की दूरी रखते हुए गड्डो को तैयार कर लिया जाता है। पौधों की बुवाई से पहले गड्डो में 200 ग्राम सड़ी गोबर डाल दी जाती है। इसके अलावा पौधों की गुड़ाई करते समय गोबर की खाद के साथ नीम की खली भी डाल सकते है, इससे पौधे अच्छे से विकसित होते है। यदि किसान चाहे तो प्राकृतिक खाद के स्थान पर रासायनिक खाद का भी इस्तेमाल भी किया जा सकता है। इसके लिए आपको यूरिया और पोटाश की मात्रा पौधों में डालनी चाहए। पौधों के बडऩे के साथ-साथ खाद की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए।
अमरूद की खेती में सिंचाई कैसे करें:-
अमरुद का पौधा शुष्क जलवायु वाला पौधा होता है, इसलिए इसकी खेती में कम सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। यदि आप सर्दियों के मौसम में फल प्राप्त करना चाहते है, तो उसके लिए आपको गर्मियों के मौसम में इसके पौधों को 3 से 4 बार सिंचाई कर देना चाहिए। सर्दियो के मौसम में अमरूद के पौधों को सिर्फ 2 सिंचाई की ही जरूरत होती है, लेकिन बारिश के मौसम में अमरूद के पौधों को 2 से 3 बार ही सिंचाई करना होता है।
अमरुद के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण कैसे करें:-
अन्य फसलों की तरह अमरूद के पौधों में भी खरपतवार पनप सकता है। जो इसके पौधों नुकसान पहुंचाता है। इसलिए अमरूद के पौधे पर भी खरपतवार का नियंत्रण करना आवश्यक होता है। खरपतवार नियंत्रण करने के लिए समय-समय पर निराई गुड़ाई की जाती है। शुरूआत में अमरुद के पौधे छोटे और कमसीन होते है इसलिए पौधों को अधिक देखभाल की आवश्यकता होती है।
इसलिए इसकी पहली निराई-गुड़ाई पौधों के रोपाई के 25 से 30 दिन के अंदर कर लेना चाहिए। इसके बाद 10 से 15 दिन के अंतराल में खेत में खरपतवार दिखाई देने पर उसकी निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। जब अमरुद का पेड़ बड़ा हो जाता है, उस दौरान पेड़ो के बीच में जुताई कर देनी चाहिए। इससे खेत में खरपतवार पैदा नहीं होगें।
अमरूद के पौधों में लगने वाला रोग एंथ्राक्नोस या मुरझाना:-
अमरूद के पौधों में यह रोग पौधों पर लगने वाले फलो पर आक्रमण कर उन्हें नष्ट कर देता है। इस रोग से प्रभावित पेड़ की शाखाओ पर काले और भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते है। जो कम समय में ही फलो को खऱाब कर देते है, इसलिए इस रोग की रोकथाम जल्द करनी चाहिए। अमरुद के पौधों को इस रोग से बचाने के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराईड की 30 ग्राम की मात्रा को 10 मीटर पानी में अच्छे से मिलाकर छिडक़ाव करना करना चाहिए।
अमरूद में लगने वाला उकठा रोग :-
यह रोग अमरुद के पौधों पर अक्सर जलभराव की स्थिति में उत्पन्न होता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तिया भूरे रंग की पड़ जाती है। पत्तियों के भूरे होने के पश्चात पौधा सूख कर नष्ट हो जाता है। इस रोग से अमरूद के पौधें को बचाने के लिए खेत में जलभराव कि स्थिति उत्पन्न न होने दें। अगर पौधे में यह रोग लग चुका है, तो उसके लिए आपको एक ग्राम बेनलेट या कार्बेनडाज़िम की 20 ग्राम की उचित मात्रा का छिडक़ाव पेड़ की जड़ो के पास की मिट्टी पर करना चाहिए।
अमरूद की सलाना पैदावार:-
अमरूद के पौधों के लगाने के दो साल बाद पेड़ों की अच्छी तरह से देखभाल की जाय तो पेड़ 40 से 50 वर्ष तक अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते है। उपज की मात्रा अमरूद की किस्म विशेष जलवायु पर निर्भर करती है। पेड़ की आयु जितनी होगी उत्पाद उतना ही ज्यादा होगा। लेकिन 5 या 6 वर्ष की आयु के एक पेड़ से लगभग 500 से 600 तक फल प्राप्त कर सकते है।
अमरूद के फलों की तुड़ाई का सही समय:-
अमरूद के फलों को जब ये आकार में बड़े हो जाए और हल्का सा ही रंग छटे और अमरूद के फलों को तोड़ लेना चाहिए। अमरूद के फल ज्यादा से ज्यादा हल्के पके ही खाने में पंसद किए जाते है इसलिए इन्हें ज्यादा पकने से पहले ही तोड़ लेना चाहिए इनकी मांग मार्केट में ज्यादा होती है। अमरूद के फलों की तुड़ाई डंठल के साथ दो पत्तों सहीत तोडऩा चाहिए। अमरूद की तोड़ई दो दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए। लेकिन बादल के छाने पर अमरूद जल्दी पक जाते है इसलिए बादल छाने पर अमरूद जल्दी तोडक़र मार्केट में बेच देना चाहिए।
अमरुद के फलो की तुड़ाई, पैदावार और लाभ:-
अमरुद के पेड़ बुवाई के दो या तीन साल में फल देने लगते है। इसका पूर्ण विकसित पौधा से किसान वर्ष में दो से तीन बार फल प्राप्त कर सकते है। जब इसके पेड़ पर लगे फलो का रंग हल्का पीला दिखाई देने लगे उस दौरान उनकी तुड़ाई करना चाहिए। अमरूद के एक पेड़ से 110 से 150 किलो ग्राम की उपज प्राप्त होती है। एक एकड़ के खेत में तकऱीबन 500 से 550 पेड़ो को लगाया जा सकता है। अमरूद की खेती कर किसान एक एकड़ के खेत में अमरुद के पेड़ो से एक वर्ष में 10 से 12 लाख रूपय सलाना कमा सकते है।