रक्षाबंधन स्पेशल कहानी
खेल खतम हुआ। बच्चे सभी ताली बजाने लगें और अर्जुन लक्ष्मी को पैसे देने लगे। अर्जुन ने जल्दी-जल्दी समान समेट कर लक्ष्मी से कहा लक्ष्मी जल्दी करों आज बहुत देर हो गई है। घर पहुंचते-पहुंचते रात हो जाएगी। जल्दी करों लक्ष्मी माँ भी काम पर से आ गई होगी। और दोनों घर की तरफ चल दिये।
जैसे-जैसे दिन ढल रहा था रास्ते में पडऩे वाले बाजार की रोनक बड़ती जा रही थी। क्योंकि दस दिन बाद राखी थी। रक्षा बंधन को लेकर अर्जुन और लक्ष्मी के दिल में भी कई तमन्नाएं थी। मासूम दिल बाजार की झिलमिलाती चमक में ही अपने सपनों को बुन रहे थे।
इन हसरतों के साये में चलते-चलते अर्जुन के कदम एक बड़ी सी दुकान के सामने रूक गए थे। और उसकी आंखे दुकान के अन्दर टंगी एक फॉक पर जाकर थम गई थी। उसने सोचा कितनी सुन्दर है ये फ्रॉक लक्ष्मी इसे पहनेगी तो ये और भी ज्यादा सुन्दर लगेगी।
क्यों न लगें लक्ष्मी है भी तो इतनी ज्यादा खुबसूरत। और फिर अर्जुन ने लक्ष्मी की तरफ देखा और सोचने लगा। कितनी फट गई है लक्ष्मी की ये फ्रॉक माँ ने कितनी बार इसे सिया था लेकिन क्या करें? पत्थरेली जमीन पर लेट-लेट कर खेल दिखाने से लक्ष्मी के नाजूक जिस्म में खरोचे आ जाती है। तो ये तो फॉक है। कब तक नहीं फटेगी। लेकिन इस बार राखी पर मैं लक्ष्मी को ये फ्रॉक नहीं पहनने दूंगा। मैं उसके लिए ये नई फ्रॉक खरीदूंगा।
इतना सोचकर अर्जुन दुकान की तरफ आगे बढ़ा और दुकानदार से जाकर कहा ऐ सहाब ये फ्रॉक कितने की है? दुकान मालिक ने गुस्से से कहा चल आगे जा। नहीं सहाब बताओं न कितने की है? कहा न आगे जा तेरे काम की नहीं है। क्या करेगा तू जान के? ये मुफत में नहीं आती है। ऐ सहाब बताओं न दस दिन बाद राखी है। मैं इसे अपनी बहेन लक्ष्मी के लिए खरीदूंगा। दुकान मालिक ने अर्जुन के मुहं से ये बात सुनकर हंसते हुए कहा तू खरीदेगा पूरे 500 रूपये की है। है तेरे पास इतने पैसे? अर्जुन ने न में मुहं हिला दिया। दुकान मालिक ने तुनककर कहा जैब में फूटी कोड़ी नहीं चले आते हैं। 500 रूपये की चीज की किमत पूछने। चल जा यहां से मेरा दिमाग मत खराव कर।
लेकिन अर्जुन को दुकान मालिक की बात का बुरा नहीं लगा। और वो सोचने लगा वह लक्ष्मी के लिए ये फ्रॉक जरूर खरीदेगा। इतना सोचकर अर्जुन ने देखा लक्ष्मी अपनी धुन में मस्त आगे चली जा रही है। वो दोडक़र लक्ष्मी के पास गया। और दोनों घर पहुंचते है।
अर्जुन उस रात पुरी रात सौ न सका। और यही सोचता रहा के दस दिन में उसे इतने पैसे कमाने है के घर का खर्च भी चल जाए और बाबा की दवा के पैसे भी निकल आये। और इसके बाद 500 रूपये फ्रॉक के लिये बच जाए। लेकिन इतने पैसे मिलेगें कैसे?
कुछ भी हो मैं महेन्त करूंगा तो इतने पैसे मिल सकते है। छोटे से दिमाग में हजारों ख्याल आ रहे थे। इसी कसमाकस में डुबे हुए कब सुबह हो गई पता ही न चला। अर्जुन सुबह जल्दी उठा और काम की तलास में चला गया।
लोगों के छोटे बड़े काम करके उसने 40-50 रूपये कमा लिये और माँ के पास आया उसे पैसे दिखाकर कहा देख माँ। राधा ने इतने सारे पैसे देखकर कहा अरे अर्जुन ये क्या इतने सुबह-सुबह तू किसे खेल दिखा आया जो इतने सारे पैसे मिले। नहीं माँ ये तो मेरी महेन्त की मजदूरी है। लेकिन बेटा तुझे इतनी महेन्त करने की क्या जरूरत है?
मैं इतना तो कमा लेती हूं। जिससे हमारा घर खर्च चल जाता है। और तू और लक्ष्मी जो खेल दिखाकर पैसे लाते है। उससे तेरे बाबा की दवा के पैसे निकल आते है। बस बेटा और हमें क्या चाहिए? जो तू इतनी महेन्त कर रहा है। तू फ्रिक मत कर माँ जल्दी ही तुझे पता चल जाएगा। मैं ये सब क्यों कर रहा हूं। इतना कहकर अर्जुन ने ले जाकर वो पैसे एक डिब्बे में डाल दिये। और लक्ष्मी को लेकर खेल दिखाने चला गया।
शाम को खेल दिखाकर लोटते समय कुछ जगह काम की बात कर आया और रात को खाना खा कर फिर काम पर चला गया। मां लाख मना करती पर नहीं मानता। कभी कम तो कभी ज्यादा पैसे मिलते लाकर उसमें से कुछ बाबा के ईलाज के लिए मां को दे देता। जो बचते उन्हें डिब्बे में डाल देता।
इसी तरह उम्मीदों के साये में धीरे-धीर दिन गुजरते जा रहे थे। अर्जुन को लगने लगा था। के वो अब जरूर 500 रूपये बचा सकता है। लेकिन बीच में अर्जुन के बाबा की तबीयत ज्यादा खराव हो गई। डिब्बे में से पैसे निकालने पड़े। कुछ पैसे ही अब डिब्बे में बचे थे। लेकिन फिर भी अर्जुन ने हिम्मत नहीं हारी और महेन्त करता गया।
अब दो दिन रह गए थे राखी को डिब्बे में से बाबा के ईलाज के लिए पैसे निकलते जा रहे थे। अब अर्जुन का दिल घबराने लगा था। उसने डिब्बे को खोलकर देखा उसमें उसे 410 रूपये ही मिले। उसने चिन्ता से पैसों की तरफ देखा और सोचा कल का दिन और है और 90 रूपये की कमी है। बाबा के ईलाज के लिये पैसे मिलाकर उसको एक दिन में 200 रूपये तो कमाने ही होगें। मां से भी पैसे नहीं मांग सकता है। उसके पैसे भी तो बाबा के ईलाज में खतम हो गये है। क्या होगा अब? इसी सोच में वो घर से निकला लेकिन आज वो पुरा दिन परेशान रहा लेकिन कोई काम नहीं मिला और वो मायूस होकर लोट आया।
फिर भी अर्जुन अपने दिल में उम्मीदों के चिरांग जलाएं हुए। काम की तलाश में निकला। और दिन भर महेन्त करके उसने 100 रूपये तो कमा लिये। लेकिन अभी भी उसे 100 रूपये की और जरूरत थी। इसलिए उसने सोचा कुछ भी हो आज मुझे पुरे पैसे का इन्तजाम करना ही होगा। लेकिन कैसे? और वो काम की तलाश में भटकने लगा। दुकान-दुकान जाकर काम के लिए पुछने लगा। लेकिन उसे मायूसी ही मिल रही थी।
अर्जुन मायूस होकर वहां से आगे बड़ा ही था के एक कंजूस सेठ जो ये सब देख रहा था उसने अर्जुन को बुलाकर कहा ऐ लडक़े मैं तुझे काम देने को तैयार हूं। मैं तुझे सौ रूपये दुगा।
सच सेठ जी। हां लेकिन तुझे एक महीने तक मेरा ये समान मेरे घर से लाना और ले जाना होगा। मुझे मंजुर है सेठ जी। पहले समान तो देख ले बहुत भारी है। तुझसे उठेगा भी के नहीं। अर्जुन ने समान देखा बहुत वजनदार था।
लेकिन उसने सोचा आज उसे कभी ये पैसे नहीं मिल तो वो लक्ष्मी के लिये फ्रॉक नहीं खरीद पाएगा। उसने सोचा वो लक्ष्मी की खुशी के लिये इतना तो कर सकता है। उसने सेठ जी से पैसे ले लिये। और पैसे लेकर घर वापिस आ गया। और वाकी के पैसे लेकर बाजार गया।
दूसरे दिन राखी थी। इसलिए बाजार में आज बहुत भीड़ थी। जिस दुकान से अर्जुन को फ्रॉक खरीदना थी उसमें भी बहुत भीड़ थी। दुकान
मालिक बड़ी-बड़ी ग्राहकी में लगा था। अर्जुन कह रहा था। सहाब मैं पुरे पैसे लेकर आया हूं। मुझे वो फ्रॉक दे दो।
लेकिन दुकान मालिक अर्जुन की बात को अनसुनी कर रहा था। बार-बार कहने पर उसने कहा चल आगे जा वो बिक गई है। नहीं सहाब ऐसा मत कहो। मैंने बहुत महेन्त से उस फ्रॉक को खरीदने के लिये पैसे जोड़े हैं।
एक माहिला जो अर्जुन की बात को ध्यान से सुन रही थी उसने दुकान मालिक से कहा क्या बात है भाईया जब ये बच्चा कह रहा है। उसके पास पैसे है तो क्यों नहीं आप उसे वो फ्रॉक दे देते हो। दुकान मालिक ने अर्जुन की तरफ गुस्से से देखकर कहा छोडिय़े मेडम ऐसे बहुत आते है। अभी कहता है पैसे पुरे है और जब फ्रॉक दूंगा तो कहेगा पैसे कम है। अब आप ही बताईए मेडम मैं क्यों फालतू में अपनी ग्राहकी बरबाद करूं।
दुकान मालिक की बात सुनकर अर्जुन ने अपने हाथ में रखे पैसे उस माहिला को दिखाते हुए कहां देखिये मेमसाब मेरे पास पुरे 500 रूपये है। उस माहिला ने अर्जुन के पैसे देखकर कहा ये तो पुरे 500 रूपये है। वो फ्रॉक कितने की है। अर्जुन ने कहा 500 रूपये की है। ये लिजिए भाईया 500 रूपये और वो फ्रॉक दिजिए। और एक बात ध्यान रखिएगा कल रक्षा बंधन है क्या हुआ इस बच्चे के पास खुद पहनने के लिये अच्छे कपड़े नहीं हैं। लेकिन आर्दश भाई है जो अपने जख्मों को भुलाकर अपनी मासूम बहेन के दामन को खुशियों से भरना चाहता है।
फिर दुकान मालिक ने अर्जुन के पैसे लेकर उसे वो फ्रॉक दे दी। अर्जुन जब उस फ्रॉक को हाथ में लेता है तो उसे लगता है उसे सारे जहां की खुशियां मिल गई हो। उसने उस माहिला का धन्यवाद कहा और फ्रॉक लेकर खुशी-खुशी घर आ गया। और वो फ्रॉक लेकर मां के पास गया। मां की गोद में फ्रॉक रख दिया। उस फ्रॉक को देखकर अर्जुन की मां ने कहा क्या तू इसके लिये रात दिन महेन्त कर रहा था। अर्जुन ने हां में सर हिलाया। मां उसे सीने से लगाकर रोने लगी।
दूसरे दिन अर्जुन जल्दी उठा और फ्रॉक ले जाकर लक्ष्मी के सिराने रखकर सेठ जी के पास चला गया। सेठ जी का समान उठाकर जब चला तो वजन के मारे उसका बुरा हाल हो गया। थका मारा जब घर पहुंचा तो देखा लक्ष्मी वही फ्रॉक पहनकर हाथ में राखी से सजी थाली लिये उसके इन्तजार में खड़ी है। लक्ष्मी उस फ्रॉक में बिल्कुल परी की तरह दिख रही थी। अर्जुन को लगा जैसे उसकी सारी थकान पल भर में लक्ष्मी को देखकर मिट गई हो।
फिर थोड़ी देर बाद जब अर्जुन लक्ष्मी से राखी बधवाने बैठा तो लक्ष्मी ने बड़े प्यार से अर्जुन के हाथ में राखी बाधी। और जब अर्जुन सगुन के पैसे लक्ष्मी की थाली में रखने लगा। तो लक्ष्मी की निगाह ज्यादा काम करने से अर्जुन के हाथों में आए छालों पर गई। लक्ष्मी अब नई फ्रॉक के राज को समझ गई थी। उसने अर्जुन के हाथों को अपने हाथ में लेकर रोने लगी। अर्जुन ने लक्ष्मी के सर पर हाथ रखकर कहा बस मेरी प्यारी बहेन ये जख्म भर गये है।
लेखिका –
सैयद शबाना अली
हरदा मध्यप्रदेश