कार्तिक पूर्णिमा पर मनाई जाने वाली गुरु नानक जयंती सिख समुदाय का सबसे बड़ा पावन पर्व है। गुरु नानक जयंती का पावन त्योहार दुनिया भर के सिखों द्वारा मनाया गया। इसे गुरुपर्व या गुरु नानक प्रकाश उत्सव के रूप में भी जाना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु नानक जयंती मनाई जाती है। गुरू नानक जयंती को नानक देव का प्रकाश पर्व भी कहते हैं, क्योंकि इस दिन गुरु नानक जी ने समाज में ज्ञान का प्रकाश फैलाया। गुरु नानक देव जी के संदेशों का प्रकाश आज भी लोगों को सही मार्ग दिखाने का काम करता है। गुरु नानक जी ने समाज में अज्ञानता और अन्याय को दूर करने के लिए ज्ञान का दीप जलाया।
इसी कारण इस पर्व को प्रकाश पर्व कहा जाता है। गुरु नानक देव जी को कई अलग-अलग संस्कृतियों में सम्मान दिया जाता है। वे सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु थे, जिन्हें सच्चे देशभक्त, धर्म सुधारक, समाज सुधारक, महान दार्शनिक और योगी के रूप में याद किया जाता है। उन्होंने पूरे जीवन समाज में भाईचारे, ईश्वर के प्रति प्रेम और सत्य के मार्ग पर चलने का संदेश दिया।
इस वर्ष गुरु नानक की 555वीं जयंती होगी। ऐसा माना जाता है कि गुरु नानक सिख धर्म के पहले गुरु हैं। गुरु नानक देव का जन्म 15 अप्रैल 1469 को तलवंडी ननकाना साहिब में हुआ था। लगभग 551 साल पहले, पहले सिख गुरु का जन्म इसी दिन लाहौर के पास राय भोई दी तलवंडी नामक गांव में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में आता है।
गुरु नानक देव जी ने 500 साल पहले एक बच्चे के रूप में लंगर की सिख अवधारणा शुरू की थी। गुरू नानक जयंती के अवसर पर उत्सव मनाया जाता है। इस उत्सव में गुरुद्वारों में जाना, जुलूस में भाग लेना और भजन गाना शामिल है। इस दिन भक्ति और सेवा का एक अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
दुनिया के हर गुरुद्वारे में एक खुली रसोई सामुदायिक रसोर्ई होती है जो हर दिन, हर धर्म, लिंग, उम्र या स्थिति की परवाह किए बिना सभी को मुफ्त भोजन वितरित करती है। इसे लंगर कहा जाता है। लंगर में सभी के लिए भोजन की व्यवस्था होती है, जिसमें कोई भेदभाव नहीं किया जाता। गुरु नानक जयंती के दिन सिख समुदाय गुरुद्वारों में भजन-कीर्तन और लंगर का आयोजन करते हैं। लोग गुरु नानक जी के उपदेशों को याद करते हुए उनके बताए मार्ग पर चलने का प्रण लेते हैं।
गुरु नानक ने मानव जाति की एकता को बढ़ावा दिया। वह इतिहास में सबसे अधिक यात्रा करने वाले लोगों में से एक थे। भारत में गुरु नानक के समय महिलाओं को बहुत कम अधिकार प्राप्त थे। विधवाओं को अक्सर जिंदा जला दिया जाता था और उन्हें दोबारा शादी करने की अनुमति नहीं थी। गुरु नानक देव जी ने इस भेदभाव के खिलाफ प्रचार किया और महिलाओं के सम्मान को बेहतर बनाने की कोशिश की।