दुनिया में भाई बहन का रिश्ता ऐसा होता है। जिसके वाजूद के आगे हर रिश्ते का रंग फिका सा लगता है। एक बहन के लिए उसका भाई वो अनमोल खाजाना होता है। जिसकी दुनिया में कोई किमत नहीं चुका सकता है। एक भाई के लिए उसकी बहन भी ममता का दूसरा रूप होती है। माँ के आंचल की छांव के बाद अगर उसे किसी के पहलू में प्यार और दुलार मिलता है तो वो एक बहन होती है। राखी की तरह ही भाई दूज भी भाई-बहन के प्यार और रिश्ते का प्रतीक है। जो बहन भाई के इस पवित्र रिश्ते को और मजबूत करता है। भाई दूज का त्योहार दिवाली के बाद मनाया जाता है। जो की परिवार डबल खुशी लेकर आता है। दीपावली के बाद बहन भाई को सबसे ज्यादा इस त्यौहार का इंतजार रहता है। इसे हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन मनाया जाता है।
भाई दूज एक ऐसा पर्व है जो भाई-बहन के रिश्ते की महक को बखूबी समेटे हुए है। जिससे भाई बहन की जिन्दगी की बागिया खुशियों के फूलों से हमेशा महेकती रहती है। जिन्दगी भर इस रिश्ते को मजबूत करती रहती है। भाई दूज के दिन भाई अपनी बहन के घर भोजन करने जाता है और बहन भाई की लंबी उम्र और खुशियों की कामना करती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यमराज की बहन यमुना उन्हें अपने घर भोजन के लिए बार-बार बुलाती थीं, लेकिन यमराज अपने काम में व्यस्त होने के कारण नहीं जा पाते थे। एक दिन भाई दूज के दिन यमराज अपनी बहन यमुना के घर भोजन करने पहुंचे। यमुना ने बड़े प्यार से उनके पसंद का भोजन बनाया। इस पर यमराज ने अपनी बहन को वरदान दिया कि इस दिन जो भाई अपनी बहन के घर भोजन करेगा, उसकी सभी मुश्किलें दूर होंगी। इसी कारण हर भाई इस दिन अपनी बहन के घर भोजन करने जाता है।
भाई दूज के दिन बहन अपने भाई का तिलक करती है, आरती उतारती है और उसके हाथों में दूर्वा देती है, जिसे भगवान गणपति को अर्पित करना बहुत शुभ माना जाता है। यह भाई के हर दु:ख को दूर करने का प्रतीक है। इसके साथ ही, बहन अपने भाई के लिए यम दीप जलाती है। इसे द्वार के बाहर रखा जाता है ताकि भाई की उम्र लंबी हो और उसे किसी तरह की कठिनाई न हो। भाई दूज को अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे भाई दूज, भाई टीका, यम द्वितीया और भातृ द्वितीया।
सैयद शबाना अली
हरदा मध्यप्रदेश