रक्षाबंधन स्पेशल कहानी
जय इंडियन आर्मी में लेफ्टिनेंट है। आज वो बहुत कशमाकस में था। इसलिए अपनी घर की लाइब्रेरी में बैठा था, लेकिन लाइब्रेरी की लाईट आफ की हुई थी। लाइब्रेरी की विंडो से जो हल्की रोशनी उसके ऊपर पढ़ रही थी उससे साफ नजर आ रहा था उसकी आंखों में आसूं है। वो इस तरह अकेले रह कर सबसे अपने दर्द को छुपाने की कोशिश कर रहा था। इस वक्त उसके एक हाथ में एक छोटा सा तिरंगा था। तो दूसरे में एक सुन्दर सी राखी थी।
आज उसकों उसकी बहेन रागिनी की बहुत याद आ रही थी। आज सालों के फैर के बाद फिर उसे अपनी बहेन रागिनी का वहीं हस्ता मुस्कुराता चहेरा नजर आ रहा था जो उसने पहली बार दिल्ली में देखा था। जब वो स्वतंत्रता दिवस की परेड का हिस्सा था और बड़े उत्साह के साथ अपने देश की आजादी का जश्न माना रहा था। तब उसी के कहने पर रागिनी पहली बार अपनी माँ के साथ उससे मिलने आई थी। उसके एक हाथ छोटा सा तिरंगा था। ये वही तिरंगा है जो आज जय के हाथों में है।
उसे आज भी वो दिन याद हैं। जब स्वतंत्रता दिवस की परेड के लिए उसकी डयूटी दिल्ली में लगी थी। और वो बहुत खुश था। रोज वो अपने साथियों के साथ परेड की रिहर्सल करता। और फिर शाम होते ही वो अकेला पैदल ही दिल्ली के मार्केट में घुमने के लिए चला जाता था। अब तो ये उसकी डेली रूटीन हो गई थी।
आज भी वो रोज की तरह मार्केट में जा रहा था। कि उसकी निगाह रोड किनारे बैठी एक माहिला पर गई जो एक डालिया में रखकर राखी बैच रही थी। कुछ ही दिन बाद रक्षाबंधन भी था। जय की कोई बहेन नहीं थी। लेकिन फिर भी उसे राखी का त्यौहार बहुत पंसद था। और आज तो जो डालिया में रखी राखी उसके सामने थी वो बहुत सुन्दर थी उसको देखकर वो अपने आप को रोक ही नहीं सका और उस माहिला के पास जाकर राखी की किमत पुछी माहिला ने राखी की इतनी कम किमत बताई जिसको सुनकर जय हेरान था।
उसने उनसे कहा आपकी राखी बहुत ही सुन्दर हैं। मैंने आज से पहले इतनी सुन्दर राखी नहीं देखी हैं। फिर भी आप इतनी सस्ती राखी क्यों बैच रही हैं। मार्केट में ऐसी राखी बहुत मंहेगी बिकती हैं।
बेटा में मानती हूं मेरी राखी मार्केट में बिकने वाली राखियों से अच्छी और सुन्दर है। क्योंकि ये घर की बनी राखी है। हम गरीब लोग है बेटा हमसे मंहेगी राखी कोन खरीदेगा?
अच्छा तो ये राखी आपने अपने हाथों से बनाई हैं। नहीं बेटा ये राखी मेरी बेटी रागिनी ने बनाई है। सिखाई तो आपने ही होगी। हां बेटा लेकिन वो मुझसे बहेतर राखी बनाती हैं। अच्छा यानी अपकी बेटी तो बहुत इंटेलिजेंट है। कितनी बड़ी हैं आपकी बेटी? बेटा वो अभी 12 साल की हैं।
इतनी छोटी और इतना ज्यादा टैलेंटेड हैं वो। आप उसकी बनाई राखी होलसेल में क्यों नहीं बैचती? बेटा हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं। हम ज्यादा राखी बना सकें। हफते भर में जो राखी बनाते है। उन्हें बाजार में बैचकर अपना घर खर्च चलाते हैं। रागिनी के पापा क्या करते हैं? वो और आप दोनों मिलकर इस काम को आगे बढ़ा सकते हैं। बेटा रागिनी पापा नहीं है। ओ सॉरी..।
उस दिन जय ने रागिनी की मम्मी से इतनी बात की और सौ रूपये की राखी लेकर अपने साथियों के पास आ गया। और अपने साथियों को रागिनी के बारे में बताया। उस दिन वो पुरी रात सो नहीं पाया उसके दिल में बस रागिनी का ही ख्याल था। कैसे वो दोनों माँ-बेटी महेनत कर के अपनी जिन्दगी गुजार रही हैं।
अब वो जितने दिन दिल्ली में रहा। रागिनी की मां से जरूर मिलता। रागिनी की मां उसे बेटा जैसा मानने लगी थी। वक्त यूंही पंख लगा कर उड़ता जा रहा था। अब तो पंद्रह अगस्त का दिन भी आ गया था। दूसरे दिन पंद्रह अगस्त थी। इसलिए जय ने मार्केट जाकर रागिनी की मां को अपना कार्ड देकर स्वतंत्रता दिवस के सामारोह में रागिनी के साथ आने को कहा।
और आज स्वतंत्रता दिवस का दिन था। हर भारतीय के चहरे पर इस दिन की खुशी साफ नजर आ रही थी। आज इन्हीं खुशियों के साये में पहली बार जय रागिनी से मिला था। जब परेड के बाद रागिनी मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देख रही थी। और जय के सामने आते ही रागिनी ने अपने हाथ में रखा छोटा सा तिरंगा जय को देते हुए कहा भाईया आप फौजी की डे्रस में बहुत अच्छे दिखते हो? अच्छा भाई तो जब और सुन्दर दिखेगा जब तुम अपने भाई की सुनी कलाई में अपने हाथ से बनी ये सुन्दर राखी बाधोंगी। इतना कहकर जय ने अपनी जेब में रखी राखी निकाल कर रागिनी के सामने की।
उस वक्त रागिनी और जय दोनों की आंखों में आसूं थे। रागिनी बहुत प्यार से जय के हाथ में राखी बांध दी। और जय और रागिनी दोनों ही रेशम की एक कच्ची डोर से एक मजबूत बंधन में बंध गए। ऐसा बंधन जिसे सालों का फैर भी नहीं तोड़ पाया।
जय के हाथ में आज भी वहीं राखी हैं जो रागिनी ने उसे पहली बार बांधी थी। लेकिन आज उसे इस बात का दुख हैं। सालों के फैर के बाद ये पहली बार हो रहा है। जब वो रक्षाबंधन के दिन अपनी बहेन रागिनी से नहीं मिल पा रहा है।
क्योंकि इस बार रंक्षाबंधन और स्वतंत्रता दिवस में बस दो दिन का ही अंतर हैं। और उसे अपने देश के प्रति अपने फर्ज और कर्तव्य के आगे अपनी बहेन के प्यार को बिसराना पढ़ रहा था। वो आज कशमाकस में था। क्या करें? वो अपने देश के प्रति अपने फर्ज से पीछे नहीं हट सकता था। लेकिन अपनी बहेन का प्यार और वो हस्ता मुस्कुराता चहरे को भी वो नहीं भुला सकता था।
कशमाकस के साये में दिन कब गुजर गये पता ही नहीं चला आज पंद्रह अगस्त का दिन था। जय सुबह से ही उठकर अपने देश के प्रति अपने फर्ज को निभाने को तैयार था। लेकिन उसने अपनी ड्रेस की जेब में वहीं तिरंगा और राखी रखी थी जो उसकी बहेन का प्यार थी। उसे हिम्मत और हौसला देती थी। आज उसने बहुत सम्मान के साथ अपना देश का स्वतंत्रता दिवस मनाया। और अपने देश के प्रति अपने हर फर्ज को निभाया।
दिन भर तो उसका इसी खुशी के साये में कट गया। शाम को जब घर लोटा तो घर में आते ही फिर वहीं तंहाईयों के अंधेरों ने उसे घेर लिया था। और बिना किसी से कुछ कहे चुपचाप अपने कमरे में जाकर बैठ गया। अभी भी उसने कमरे की लाईट बंद ही रखी थी। ताकि अंधेरे में कोई उसके आसूं न देख लें।
लेकिन अचानक किसी ने आकर कमरे का लाईट आन किया। और कहा भाईया। जय ने देखा तो रागिनी उसके सामने खड़ी थी। रागिनी तुम यहां हां भाईया ये रेशम डोर जितनी कमजोर होती है। उससे जुड़ा बंधन उतना ही मजबूत होता हैं। ये आपके फर्ज और कर्तव्य के आढ़े नहीं आएगा। लेकिन ये बंधन ऐसा भी नहीं जो आपके आसूंओं की किमत नहीं चुका पाएगा।
भाईया दुनिया में भाई-बहेन का प्यार ऐसा होता हैं। जो हर मुश्किल को पार करने की हिम्मत रखता है। वो हौसला देता है एक बहेन को उसका भाई हर मुश्किल घंडी में उसके साथ है। तो वो एक भाई को भी ये अहसास दिलाता हैं। उसकी बहेन हर पल उसके साथ है। उसका कभी साथ नहीं छोड़ेगी।
रागिनी मेरी ये सुनी कलाई जब तक में जिन्दा रहूंगा। तुम्हारे उस प्यार की ख्वाहिश मंद रहेगी। रागिनी मैं कभी नहीं चाहता हूं मेरी जिन्दगी ऐसा कोई रंक्षाबंधन आए जब तुम मेरी इस सुनी कलाई पर राखी न बांधो। अब रागिनी और जय दोनों की आंखों में आसूं थे। लेकिन ये खुशी के आसूं थे।
लेखिका-
सैयद शबाना अली
Harda (M.P.)