Story BewitchedStory Mohit

आज दीपक का ऑफिस में जल्दी काम पूरा हो गया था। तो वो सोचता है क्यों न आज जल्दी घर पहुंच कर पूजा और मोहित को कहीं घुमाने ले जाया जाए। ये सोचकर वह ऑफिस से निकलता है। मोहित का हंसता खिलखिलाता चेहरा उसकी आँखो के सामने था। और वो मुस्कुरा रहा था। मोहित के मासूम चहरे में खोए-खोए वो कब घर पहुंच गया पता ही नहीं चला।

घर पहुंचता है तो देखता है। सामने का दरवाजा खुला है। और वह अपनी पत्नी पूजा को आवाज देकर कहता है, ये क्या पूजा आज दरवाजा भी खुला छोड़ दिया। ऐसा कहते हुए वह अन्दर आकर कहता है। पूजा कहा हो तुम जो मैंने कहा वो सुना तुमने? मोहित जल्दी नीचे आओं देखों पापा तुम्हारे लिए क्या-क्या लाये है।

दीपक के इतना कुछ कहने पर भी घर में से कोई अवाज नहीं आती है तो वो घबरा जाता है। और सोचता है रोज जब वो ऑफिस से लोटकर आता था तो मोहित दोडक़र आकर उसकी गोद में बैठ जाता था। और कान के पास मुंह कर के जोर से कहता था। पापा आज अपने मेरे लिए क्या लाये है। और उसकी इस हरकत को देख पूजा जोर-जोर से हंसने लगती थी।

लेकिन घर में ये महौल देख उसको बेचैनी हो रही थी। और वहां मोहित और पूजा को ईधर-ऊधर ढुढने लगा। इतने में पूजा ने पीछे से कहा दीपक..। दीपक पूजा को देखकर कहता है पूजा क्या हुआ? ये क्या हाल बना रखा है तुमने अपना?

दीपक.. पूजा दीपक के गले लग कर रोने लगती है। दीपक कुछ अनहोनी के डर से घबरा जाता है क्या हुआ पूजा मोहित तो ठीक है न? दीपक मोहित। खमोश क्यों हो पूजा बोलो क्या हुआ है मोहित को बोलो पूजा। दीपक वो माहित को लें गए। दीपक मेरा बेटा मुझे वापस ला दो। मैं उसके बीना नहीं जी पाऊंगी। मैं मर जाऊंगी दीपक।
नहीं पूजा ऐसा मत कहो मुझे बताओं कौन ले गया है मोहित को और ये सब कैसे हुआ पूजा। बाबूजी और राहुल ले गए है मोहित को।
बाबूजी और राहुल का नाम पूजा के मुंह से सुनकर दीपक हंसने लगा। पूजा तुम भी न हद करती हो तुमने तो मुझे डरा ही दिया था। तुमने मेरी आधी जान निकाल दी थी। मैं तो सोच रहा था कि किसी ने मोहित को किडनैप तो नहीं कर लिया। पूजा तुम भी हद करती हो और दीपक फिर हंसने लगा।

पूजा ने झंझलाते हुए कहा दीपक तुम समझते क्यों नहीं हो वो लोग मोहित को हमेशा-हमेशा के लिए हमसे दूर ले गए है। नहीं पूजा तुमको कोई गलत फहमी हुई होगी। अभी मोहित की स्कूल की छुट्टियां चल रही है इसलिए वो उसको अपने साथ ले गए है।

प्लीस दीपक समझने की कोशिश करों हर बात को यू मजाक में मत टाला करों। तुम नहीं जानते आज जब मोहित बहार खेल रहा था तब मैं उसे बालकनी में खड़े होकर देख रही थी। तब मुझे बाबूजी और राहुल आते हुए दिखे। मैंने उन्हें अन्दर बुलाया। आईए बाबूजी बैठिए घर में तो सब ठीक है न। हां बेटी अभी तो घर में सब कुशलमंगल है।

इतने में राहुल ने कहा मोहित कहा है भाभी। बहार खेल रहा है। मैं अभी बुलाती हूं। मोहित..बेटा ईधर आओ बेटा देखों कौन आया है? दादाजी.. नमस्ते दादाजी। और मोहित अपने दादा दीनदयाल जी की गोद में बैठ गया। और राहुल से कहने लगा। चाचा मैं आपसे बहुत नराज हूं मैं आपका कब से इन्तजार कर रहा था और आप आज आये। नहीं मोहित तुम मुझसे नराज नहीं होना अब तुम को मेरा इन्तजार नहीं करना पड़ेगा। क्योंकि अब तुम हमेशा-हमेशा के लिए हमारे पास रहोगें।

राहुल की बात सुनकर मोहित पूजा की तरफ देखने लगा। पूजा भी एक दम हैरानी से राहुल की तरफ देखने लगी। उसके कुछ कहने से पहले ही दीनदयाल जी कहते है हां बेटी राहुल सच कह रहा है। हम यहां मोहित को लेने ही आये है। आज हम अपनी अमानत तुमसे वापस लेने आये है बेटा। अमानत ये क्या कह रहे है आप बाबूजी मोहित मेरा बेटा है। वो मेरा लख्ते जीगर है। वो आपकी अमानत नहीं वो मेरा बेटा है। मेरी जान है वो।

लेकिन बेटी वो हमारे बेटे रोहित की आखरी निशानी है। बाबूजी वो आपके लिए रोहित की आखरी निशानी है तो वो मेरे लिए भी रोहित का प्यार है।

लेकिन पूजा बेटी अब तो तुम्हारी दीपक से शादी हो गई है। अब तुम्हें मोहित की क्या जरूरत है अब तो तुम्हें हर खुशी मिल गई है। आगे चल कर जब दीपक और तुम्हारी संतान होगी तो तुम्हें उनसे बच्चों का सुख भी मिल जाएगा। लेकिन बेटा हम तो रोहित को हमेशा के लिए खो चुके है। हमारी सारी खुशियां तो रोहित के जाने से मिट चुकी है। अब तो मोहित ही हमारा सहारा है। अब तुम ही हमें दुबारा खुशियां दे सकती हो। हमारे घर का चिंराग हमें लोटा कर।

जब तक तुम और मोहित वहां थे, हमें रोहित की कमी महसूस नहीं होती थी। लेकिन जब से तुम दोनों यहां आये हो वो घर हमें विराना सा लगने लगा है। बेटी हमारी खुशियां हमें लोटा दो। तुम जहां भी रहो खुश रहो। हम तो यही चाहते है। बस हमें हमारा बेटा लौटा दो। मोहित ही हमारे लिए रोहित की तरह है। हम उसे देख-देख जी लेगें।

लेकिन बाबूजी आप एक अपनी खुशी के लिए मोहित को माँ-बाप दोनों के प्यार से महरूम कर देना चाहते है। आपने कभी सोचा है इस बात का इस मासूम के दिल पर क्या असर पड़ेगा। हम तो बड़े है हम अपने दिल को समझा सकते है। लेकिन ये मासूम दिल अपने माँ-बाप के प्यार के लिए कहां-कहां भटकेगा। आप सोच सकते है। आप हमारी नहीं तो मोहित के बारे में सोचिए उसे यहां मां-बाप दोनों का प्यार मिल रहा है। लेकिन वहां जाने के बाद क्या उसे वो प्यार मिल पाएया, जो आज मैं और दीपक उसे करते है।

बाबूजी मोहित हमारी भी जान है। हम दोनों उसके बिना नहीं रह सकते है। आप नहीं जानते दीपक मोहित से कितना ज्यादा प्यार करते है। मोहित के बिना वो एक पल नहीं रहते है। देखिए बाबूजी आज तक मैंने आपकी हर बात मानी है लेकिन आपकी ये बात मैं नहीं मानने के लिए मजबूर हूं। मैं अपने कलेजे के टुकड़े को आपको नहीं दे सकती हूं।

आप तो जानते है मैंने आज तक आप की हर बात मानी है। आप ये भी जानते है जब मोहित दो महिने का था। तब रोहित की अचानक मौत ने मुझे पुरी तरह से तोडक़र रख दिया था। रोहित की मौत से मैं टुट कर बिखर चुकी थी। मेरे अंदर तो जीने की आस ही खत्म हो गई थी। मैं रोहित से अपनी जान से ज्यादा प्यार करती थी उसके बिना जीने के बारे में सपने में भी नहीं सोच सकती थी।

मैं तो मर ही गई होती लेकिन तब आप सबने मेरा साथ नहीं छोड़ा और न ही मैंने आपका। बाबूजी अपने ही मुझे कहा था मोहित के लिए मुझे जीना होगा। और इस गम से बहार निकलना होगा। बाबूजी मैं वो घर कभी नहीं छोडऩा चाहती थी। उस घर में मेरे रोहित की यादें थी।

धीरे-धीरे यूहीं समय बीतता जा रहा था। और मैंने अपने जीवन की उस सच्चाई को स्वीकार कर लिया था। और अपने रोहित की यादों के साथ अपने बेटे के साथ बहुत खुश थी। और सारी जिन्दगी इस तरह से बिताने का फैसला भी कर चुकी थी।

लेकिन जब राहुल भाईया की शादी हुई और दीपक आपकी जिन्दगी में आये और उन्होंने आपके सामने मुझसे शादी करने का प्रस्ताव रखा था। आप जानते है उस दिन मैं कितना रोई थी, अपनी किस्मत पर। क्योंकि मैं नहीं चाहती थी के रोहित के बाद कोई ओर मेरी जिन्दगी में आये। मैं इस सच को स्वीकार नहीं कर पा रही थी।

मेरे लाख मना करने पर भी आपने मुझे कभी रोहित का तो कभी मोहित का वास्ता देकर शादी के लिए मनाया था। और बाबूजी उस वक्त अपने ही मुझसे कहा था के मोहित को माँ के साथ-साथ एक पिता के प्यार की भी जरूरत है। उस वक्त तो मैं मोहित को मां-बाप दोनों का प्यार देकर पाल रही थी।

फिर भी बाबूजी आपने मेरी जिन्दगी के साथ इतना बड़ा खेल क्यों कर खेला। बाबूजी मुझे ये समझमें नहीं आ रहा तब आप मोहित के लिए माता-पिता दोनों का प्यार चाहते थे। लेकिन आज आप ऐसा क्यों कह रहे है।

मोहित की खातीर ही मैंने दीपक से शादी की थी। कभी आप मुझे पहले ही बता देते के दीपक से शादी के बाद मुझे मोहित को हमेशा-हमेशा के लिए छोडऩा होगा तो मैं कभी भी इस शादी के लिए नहीं राजी होती।

हां बेटा मैं जानता था मैं तुमसे शादी के पहले कभी ये बात कहूंगा तो तुम कभी ये शादी के लिए हां नहीं कहती। लेकिन बेटा हम भी तुम्हारे दुश्मन नहीं थे। हमने तुम्हें अपनी बेटी माना था। हम तुम्हें इस तरह सारी जिन्दगी रोहित की यादों के सहारे जीते हुए नहीं देख सकते थे। बेटा जिन्दगी बहुत बड़ी होती है यूं किसी की यादों के सहारे नहीं कटती है। हम ये जानते थे।

हम दुबारा तुम्हारे चहरे पर मुस्कान देखना चाहते थे।
और हम देख रहे थे दीपक बहुत अच्छा लडक़ा है। वो सब कुछ जानने के बाद तुम्हें अपनाना चाहता था। ये उसके अंदर की अच्छाई थी वो तुम्हें अपना रहा था। और तुम्हारी जिन्दगी में दुबारा खुशियों के रंग भरना चाहता था। इस लिए हम खुश थे बेटा।

बाबूजी आप पहले जैसे हमारी खुशियां चाहते थे। वैसे ही आज भी आप हमारी खुशियां चाहते है तो मोहित को हमारे पास ही रहने दिजिए। बाबूजी मोहित के बिना हम नहीं जी पाएगें। इतना कह कर पूजा रोने लगी।

देखों पूजा बेटा मत रोओं हम तुम्हारी आंखों में आंसू नहीं देख सकते है। पहले भी हम तुमको खुश देखना चाहते थे और आज भी हम तुमको खुश देखना चाहते है। लेकिन बेटा समझने की कोशिश करों। हम मजबूर है। हमें भी जीने का सहारा चाहिए। रोहित की यादों के सहारे हम नहीं जी सकते है। रोहित के बाद मोहित ही हमारे लिए जीने का सहारा है।

लेकिन बाबूजी मोहित मेरे और दीपक के लिए भी जीने का सहारा है। हमारी खुशियां उसी से जुड़ी है। दीपक को मैंने मोहित के लिए ही अपनाया था। जब मेरा बेटा ही नहीं रहेगा तो मैं जी के क्या करूंगी? बाबूजी में आपके पाव पड़ती हूं। अपना फैसला बदल लिजिए। मोहित को मेरे पास ही रहने दिजिए।

फिर राहुल ने मोहित को गोद में लेते हुए कहा देखों भाभी हम आपका बुरा नहीं चाहते है। जैसे मोहित आपके पास रहता है वैसे ही वो वहां हमारे पास रहेगा। आप दोनों को जब भी उससे मिलना हो आके मिल लेना या हम खुद उसे आपसे मिलाने ले आएगें। चलों बाबूजी। नहीं बाबूजी मोहित को मत ले जाईए। मैं मर जाऊंगी अपने बेटे के बिना नहीं जी पाऊंगी।

दीपक अब तुम ही बताओं मैं क्या करूं। मैंने बहुत रोका लेकिन वो नहीं माने। दीपक मैं क्या करूं? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है? दीपक मुझे मेरा मोहित ला दो। उसके बिना मैं नहीं जी सकती हूं। देखों पूजा घबराओं नहीं मैं लाऊंगा मोहित को वापस।

पूजा और दीपक मोहित का लेने जाते है। और दीपक दीनदयाल जी से कहता है बाबूजी एक दिन मैं इसी तरह आपके पास अपनी खुशियां मांगने आया था और आपने मेरा दामन खुशियों से भर दिया था। आज फिर बाबूजी मैं आपके पास इसी उम्मीद से आया हूं आज फिर आप मेरे खुशियों से खाली हो चुके दामन को दुबारा खुशियों से भर देगें। मेरी जिन्दगी की खुशियां मोहित के बिना अधुरी है बाबूजी।

अपनी जिन्दगी में पहली बार एक पिता के प्यार को मैंने अपने लिए मोहित की आखों में देखा है। बाबूजी हमारी खुशियां हमें लोटा दिजिए। इतना कहकर दीपक पूजा दीनदयाल जी के कदमों में बैठ जाते है। बाबूजी मोहित ही हमारी खुशियां है। हमारी खुशियां हमें लोटा दिजिए। बाबूजी आप जानते है मोहित हमारी जिन्दगी है हम उसके बिना नहीं जी पाएगें।

बाबूजी मैं तो उसी दिन मर गई होती जिस दिन रोहित ने मुझे इस दुनिया में अकेला छोडक़र चले गए थे। वो मोहित का ही मासूम चहेरा था जिसमें मुझे जिन्दगी जीने की नई किरण नजर आई थी। बाबूजी मोहित की खातीर आज मैं जिन्दा हूं अगर वो मुझसे दूर हो गया तो मैं मर जाऊंगी।

इतने में वहां मोहित भी आ गया। मम्मी-पापा आप आ गए। मुझे मालूम था आप मुझे लेने जरूर आएगें। दीपक और पूजा ने मोहित को देखा और उसे अपने सीने से लगा के रोने लगें। दोनों उससे ऐसे मिल रहे थे जैसे वर्षों के बिझड़े आज मिल रहे हो।

पूजा ने कहा हां मेरे लख्ते जीगर हम तुम्हें लेने आये है चलोगें न हमारे साथ। हां मम्मी में अभी सबको बता कर के आता हूं । मैं जा रहा हूं। मेरे मम्मी-पापा मुझे लेने आये है। मोहित खुशी-खुशी अंदर चला गया और सब से खुशी-खुशी कहने लगा मैं जा रहा हूं।

ऊधर दीनदयाल जी ने दीपक और पूजा से कहा देखों बच्चों तुम मेरी बात गौर से सुनों अब तुम्हारी जिन्दगी की नई शुरूआत हो गई है। तो मोहित जैसी कई खुशियां तुम्हें मिल जाएगी। लेकिन हमारे लिए तो मोहित ही हमारा सहारा है।

लेकिन बाबूजी आप ये क्यों नहीं सोचते है आपसे मोहित को दादा-दादी का प्यार मिल जाएगा। लेकिन माता-पिता का प्यार तो उसे हमसे ही मिलेगा। आप ये क्यों नहीं सोचते है आपके बाद किसी ने मोहित को नहीं अपनाया तो उसका क्या होगा। जहां तक हमारी बात है बाबूजी मैं तो मोहित की सग्गी मां हूं। लेकिन दीपक ने भी कभी उसे उसके पापा की कमी नही महसूस होने दी है और हमेशा उसे एक पिता का प्यार दिया है। मोहित को तो ये पता भी नहीं है दीपक उसके असली पिता नहीं है। मोहित भी दीपक को बहुत प्यार करता है। वो भी हमारे बिना नहीं रह सकता है।

देखों बेटा हम ये सब कुछ नहीं जानते अभी तक हम जिन्दा है मोहित यही रहेगा। हमारे पास और आगे भी उसका यहां इतना बड़ा भरा पुरा परिवार है संम्पति है। वो भी इस घर का बारिश है। उसके चाचा-चाची भी तो उसे बहुत प्यार करते है।

देखों बेटा तुम चहों जब भी मोहित से आकर यहां मिल सकते हो। लेकिन अगर तुम मोहित को ले जाने के लिए इस घर में आये तो मेरा मरा मुंह देखोगे। और यहीं मेरा आखरी फैसला है।

नहीं बाबूजी ऐसा मत कहिए इतना संगदिल मत बनिए। हम मोहित के बिन नहीं जी पाएगें। लेकिन हो सकता है आप यही चाहते हो। इतना कह कर दीपक पूजा रोते हुए घर से निकलते है। इतने में मोहित पीछे से अवाज देता है।

पापा रूकों..देखों मैं आ गया। चलों मम्मी हम अपने घर चलते है। दीपक मोहित को देखकर उसको अपने सीने से लगा कर रोने लगता है। और कहता है देखों बेटा मोहित आज से यही तुम्हारा घर है। आज से तुम यहीं रहोगें। अपने दादा-दादी, चाचा-चाची के साथ।

ये सुनकर मोहित रोने लगता है नहीं पापा मैं यहां नहीं रहूंगा। मम्मी मैं आपके साथ चालूगा। मुझे यहां नहीं अच्छा लगता है। मैं आपके साथ रहूंगा। मुझे अपने घर जाना है। नहीं बेटा जीद नहीं करते है हमने कहा न अब तुम यहीं रहोगे। नहीं मम्मी मैं यहां नहीं रहूंगा पापा के साथ रहूंगा।

और मोहित जीद करने लगता है और खुब रोता है। दीपक पूजा से कहता है चलो पूजा। पूजा जाने के लिए आगे बड़ती है मोहित उसका आंचल पकड़ कर कहता है। मम्मी मुझे यहा छोडक़र मत जाओं। अब मैं कभी जीद नहीं करूंगा आपकी हर बात मानूंगा। एक बार मैं पुरा गिलास दुध पी लूंगा। कभी जीद नहीं करूंगा। मुझे अपने साथ ले चलों।

पापा रूक जाओं पापा आप तो मेरे सबसे अच्छे पापा है न मेरी हर बात मानते है न। अब मैं आपसे कभी मम्मी की शिकायत नहीं करूंगा पापा मुझे साथ ले चलों। पूजा मोहित को गले लगा कर रोने लगती है और कहती बेटा हमें तुमसे कोई शिकायत नहीं है तुम तो हमारी जान हो। बेटा हम मजबूर है हम तुम्हें अपने साथ नहीं ले जा सकते है। दीपक पूजा अपने दिल पर पत्थर रखकर मोहित को वहीं रोता बिलखता छोडक़र आ गए।

धीरे-धीरे यूहीं दिन गुजरते रहे थे। मोहित दीपक और पूजा की याद में खाना पीना छोड़ देता है और दिनभर रोता रहता है। और दीपक पूजा के पास जाने की जीद करता है सब उसे लाख समझाते है तरह-तरत की चीजे लाकर देते है। लेकिन वह किसी की एक नहीं सुनता है। और दीपक और पूजा से उसका ऐसा अपनापन जुड़ा था कि वो उन्हें भूल ही नही सकता था।

धीरे-धीरे जैसे-जैसे दिन गुजर रहे थे मोहित बीमार रहने लगा। कितने ही ड्रॉक्टरों ने मिलकर उसका इलाज किया लेकिन वह नहीं ठीक हो सका।

ईधर मोहित की जुदाई में पूजा भी बीमार रहने लगी थी। ड्रॉक्टरों ने दीपक से साफ कह दिया था अगर आपको पूजा की जान बचाना है तो मोहित को आपको किसी भी तरह उसके पास लाना होगा। लेकिन दीपक ने अब सब कुछ किस्मत पर छोड़ दिया था क्योंकि वो जानता था के अब वो मोहित को वापस नहीं ला पाएगा।

ऊधर मोहित की बिगड़ती हालत को देखकर ड्रॉक्टर सुनिल दीनदयाल जी से कहते है बाबूजी मोहित बिल्कूल रोहित की तरह जिद्दी है एक बार जो जीद की उसे पूरा करें बिना नही छोड़ता है। रोहित मेरा बहुत अच्छा दोस्त था इस नाते मैं आपसे कहता हूं।

अगर आप रोहित की आखरी निशानी सही सलामत देखना चाहते है तो मोहित को दीपक पूजा के पास वापस पहुंचा दिजिए। मोहित उनसे बहुत प्यार करता है वो उनके बिना नहीं रह पाएगा। आप देख रहे है न वो बेहोशी में भी उन्हें ही पुकारता है। अब मोहित का वो ही इलाज है। मैं कुछ नहीं कर सकता हूं। अब जो आपकी मर्जी। आप चाहे तो उसे नई जिन्दगी दे सकते है।

ये बात सुनकर दीनदयाल जी की आंख में आंसू आ जाते है। और वो कहते है हां बेटा तुम सच कहते हो। आज तुमने मेरी आंखे खोल दी है। एक बेटे को तो मैं खो चुका हूं। दूसरे को नहीं खोना चाहूंगा। एक मां-बाप से उनके बच्चे को छीन कर क्या सुख पा लेता मैं ये सोचकर मेरी रूह तक कांप जाती है। आज मैं मानता हूं दीपक पूजा के साथ ही मोहित की खुशी है। और वो मोहित को दीपक पूजा के पास ले जाने का फैसला करते है।

दीपक पूजा के पास जाने के नाम से ही मोहित को नई जिन्दगी मिल जाती है। और वो खुश हो जाता है। और दीनदयाल जी जब दूसरे दिन मोहित को दीपक पूजा के पास ले जाते है तो वह मोहित को पहले ही तरह हंसता खेलता देखकर बहुत खुश हो जाते है। और दीपक से कहते है रोहित मेरे बेटे आओं मेरे सीने से नहीं लगोगें। बेटा तुमने मेरी आंखे खोल दी है। जब मोहित तुम्हें अपने पिता की तरह प्यार करता है तो मैं तुम्हें क्यों नहीं अपना बेटा मान सकता हूं। मुझे तो तुम्हारे रूप में कब से अपना बेटा वापस मिल गया था मैं ही तुम्हारे निश्चल पे्रम को नहीं पहचान पाया।

दीपक दीनदयाल जी के गले लग कर रोते हुए कहता है बाबूजी आज अपने मुझे मेरी जिन्दगी की सारी खोई खुशी लोटा दी है। आपको में हमेशा अपने पिता के समान ही समझता था। अपने मेरी जिन्दगी को जिस तरह से खुशियों से भरा है वो एक बेटे के लिए सिर्फ उसका पिता ही कर सकता है।

सैयद शबाना अली
हरदा मध्यप्रदेश