Story Make me yours....Kahani Mujhe apna bana lo...

रक्षाबंधन स्पेशल कहानी

आज गौरव के पास वो सब कुछ हैं, जिसके सपने उसने बचपन से देखे थें। लेकिन आज उसको इस बात का अहसास भी हैं। इन सपनों को पूरा करने में उसने अपनी कितनी बड़ी खुशी खो दी हैं। वो खुशी परिवार अपनों का प्यार जिसके लिए आज वो तड़पता हैं। आज सब कुछ हैं उसके पास फिर भी जिन्दगी में खालीपन हैं।

दो दिन बाद राखी हैं। आज गौरव अपना हाथ ऊठा के देखता हैं। उसकी निगाह आज अपनी उस कलाई पर है जो दो-दो बहनों के होने के बावजूद चार साल हो गए राखी से सुनी हैं।

अब वो सोचता है, ये उसकी बदनसीबी है या उसके किये की सजा है जो वो अब अपनों से मिलने के लिए तड़प रहा है। आज उसके सब सपने पूरे हो गए है। उसके पास सब कुछ हैं। लेकिन बस अपनों का प्यार नहीं है। जिसके लिए आज वो तड़प रहा हैं। बड़ा सा घर, घर में सब सुविधा फिर भी वो उसे काटने को दोड़ता है। क्योंकि उसमें उसके अपने नहीं हैं।

अब गौरव सोचता है। अब मैं क्या करूं? ये फैसला भी तो मेरा ही था। अपने सपनों के पीछे मैं इस तरह दौड़ा के जब पीछे मुडक़र देखा तो मेरे अपने मुझसे बहुत दूर जा चुके थे। आज भी मुझे वो दिन याद है। जब मैं अपने बड़े से परिवार जिसमें माँ-बाबूजी, चाचा-चाची, मेरे दो बड़े भाई सौरभ, सुशान्त भाईयां, भाभीयां बड़ी बहेन आरती दीदी, छोटी बहेन छुटकी संध्या हम सब साथ रहते थे।

कितने अच्छे दिन थे वो हम सब कितने खुश थे। सब मुझे बहुत प्यार करते थे। मैं पढ़ाई में बहुत अच्छा था। हमेशा अपने स्कूल में अवल आता था। सब मिलके मेरा हौसला बड़ाते। रात को जब मैं पढ़ता तो रोज माँ आती और प्यार से सर पर हाथ रखकर कहती बहुत रात हो गई है बेटा अब सौ जाओं। और मैं कहता बस माँ थोड़ी देर ओर। फिर माँ दुध का गिलास आगे कर के कहती अच्छा लो ये पीलों थोड़ा शरीर को तराबट मिलेंगी। माँ के हाथ का खाना खाए कितने साल हो गए फिर भी उसकी खुश्वू आज भी मुझे याद आती हैं। आज भी मैं अपनी माँ के हाथ से खाना खाने के लिए बैकरार हूं। भाई बहनों का वो प्यार आज मुझे अकेले में तड़पाता हैं। वो बड़ा सा घर, घर के आगे फूलों भरा आँगन आज भी मुझे याद आता हैं।

काश वो मेरी खोई खुशी फिर मुझे मिल जाए, हम सब फिर साथ बैठे, हंसे, बोले, अपने सुख-दुख बाटें। काश फिर मेरी दोनों बहने सौरभ और सुशान्त भाईयां को चिड़ाते हुए पहले मेरे हाथ में राखी बाधें।

काश वो दिन फिर लोटे और मेरे अपने फिर मुझे अपना बना लें। आज मैं तड़पता हूं। उनके लिए आज मैं ये सोचता हूं। अपने सपनों के पीछे भागने में क्या मैंने पाया और क्या खो दिया हैं? ये सोच कर मेरा दिल रोता है।

आज मुझे माँ की वो बाते याद आती हैं। जब मैंने बाबूजी से अलग शहर में अपना बिजनेस खोलने के लिए इजाजत मांगी थी। उस वक्त मेरी बात सुनकर सब हेरान थे के मैं अपनों से दूर जाने के बारे में कैसे सोच सकता हूं। तब मां ने मुझे मना करते हुए कहा था बेटा अपनों के साथ बैठकर सुखी रोटी भी चभाना सुकून देता हैं। लेकिन अपनों से दूर सोने के निवाले भी तोडऩा पत्थर तोडऩे से कम नहीं होता।

लेकिन मैंने उस वक्त मां की उस बात पर ध्यान नहीं दिया और कह दिया माँ मैं अपनों से दूर थोड़ी जा रहा हूं। मैं आता रहूंगा। किसी तरह मैंने उस वक्त माँ-बाबूजी को मना लिया था। लेकिन आज उनकी बातें मुझे याद आती हैं। और मैं आज उनसे कितना दूर हूं। और मेरे अपने मेरी गलती से ही मुझसे दूर हो गए हैं।

माँ से किया वादा भी मैं कहा निभा सका जैसे-जैसे वक्त गुजर रहा था मेरा बिजनेस बढ़ता जा रहा था। अब तो मेरी कंपनी का माल इंडिया में ही नहीं विदेशों में भी सप्लाई होने लगा था। और मुझे एक पल की भी फुरसत नहीं थी। के मैं अपने अपनों से मिल सकूं। और तब मैंने उस ओर ध्यान ही नहीं दिया। कम उम्र में मिली इतनी ज्यादा सफलता से मैं फुला नही समा रहा था। इस खुशी में अपने अपनों को भुल गया। साल-साल भर में कभी एक बार वक्त निकाल कर अपने अपनों से मिल आता। इस बात से घर के सभी सदस्य मुझसे नराज रहने लगे थे। कुटुंब वाले कहने लगे मुझे अपनी सफलता पर घमंण्ड हो गया है।

लेकिन मैंने उनकी उन बातों को समझने की कोशिश नहीं की। और अपने अपनों को अपनी काम की अधिकता बता कर समझा देता। उस वक्त मैंने सबको अपने साथ रहने को कहा लेकिन उसपे भी कोई रार्जी नहीं हुआ। बाबूजी और सौरभ और सुशान्त भाईयां तो नौकरी में व्यस्थ थे उनके पास भी मेरा साथ देने के लिए समय नहीं था। काम की अधिकता मुझे दवाती गई।

धीरे-धीरे में इतना व्यस्थ हो गया। के प्राइवेट फंक्शन में भी अटेन्ड करने का मेरे पास टाईम नहीं होता। धीरे-धीरे सब को लगने लगा में सच में घमंडी हो गया हूं। इसलिए काम की अधिकता कह कर अपनों को टालता हूं। और मैं अपने अपनों को अपेक्षित कर रहा हूं। मैंने दिल से ऐसा नहीं चहा था पर उन्नति की रहा पर चलते हुए ऐसा हो गया। और सच उस वक्त मैंने अपने सपनों को पुरा करने में इस और ध्यान नहीं दिया। के मैं अपने सपनों के पीछे क्या खो दूंगा।

इस बात का एक दिन मुझे अहसास हुआ लेकिन उस वक्त तक बहुत देर हो गई थी। मैं अपनों से बहुत दूर आ गया था। इतनी दूर के लोटने का कोई रास्ता नजर नहीं आता था। वो प्यार अपनों का साथ मैं खो चुका था।

हुआ यू कि मैं एक महीने के लिए अपने काम के सिलसिले में लंदन गया हुआ था। इस बिच आरती दीदी की शादी निकल आई। माँ-बाबूजी बड़ी खुशी-खुशी शादी का कार्ड लेकर मेरे घर आए। लेकिन घर पर ताला डला देख निराश होकर कार्ड अन्दर डाल कर चले गए। वो मुझसे नराज थे इसलिए कॉल कर के भी नहीं बताया।

ओर जब मैं एक महीने बाद लंदन से वापस आया। और जब गेट खोलकर अन्दर गया वैसे ही मेरी निगाह कार्ड पर गई। मैंने उसे उठाकर देखा और बहुत खुश हुआ। मेरी आरती दीदी की शादी हो रही हैं। लेकिन जब तारीख देखी तो मेरे होस उड़ गए। शादी पिछले हफते की थी। ये देखकर मैं बदहवास हो गया। बचपन से अब तक मैंने जो आरती दीदी की शादी के लिए जितने सपने सजाएं थे वो सब टुट गए थे।

आज मुझे अहसास हुआ था। अपने अपनों के लिए देखे गए सपनों के टुटने का जितना दुख आज मुझे हो रहा था। उतना दुख शायद मुझे इन पूरे हुए सपनों के टुटने पर नहीं होता। आज मैंने अपने सपनों की दुनियां से बहार आके अपने अपनों के बारे में सोचा था। और एक दम पहली बार घर पहुंचा।

माँ-बाबूजी दोनों बहुत गुस्से में थे। कह रहे थे बेटा तुमने कभी हमारी अपने परिवार की परवाह नहीं की बस अपने काम में लगे रहें। लेकिन एक बार अपनी बड़ी बहेन के बारे में ही सोच लेते जानते हो कितनी मुश्किल से हमने उसे विदा किया था। रोते जाती थी और कहती थी माँ गौरव आएगा न बाबूजी मेरा लाड़ला भाई मेरी डोली को कन्धा देगा न। जाते-जाते तक उसके होठो पर बस एक बात थी। देर से ही सही गौरव जरूर आएगा।।

मैं कह नहीं सकता हूं उस वक्त मेरा और सबका क्या हाल था। मेरी भी आंखों से आसूं गिर रहे थे। और मैं कह रहा था मुझे बिल्कुल भी खबर नहीं थी के आरती दीदी की शादी हैं। वरना मैं बड़े से बड़ा काम छोडक़र दौड़ा चला आता। उस वक्त मैंने सब को बहुत समझाया और लेकिन किसी ने मेरी मजबूरी को नहीं समझा और मुझे अपनों से दूर चले जाने की सजा दे दी।

अब कोई मेरी बात सुनने को तैयार नहीं था। तो मैं क्या करता बाबूजी के फैसले को मान लिया और मैं उन्हें छोडक़र आ गया। लेकिन मैं आज अपने अपनों से मिलने के लिए तड़पता हूं। बहुत कोशिश करता हूं। लेकिन कोई मुझसे बात तक नहीं करता हैं। बाबूजी के कट्टर सभाव से मां भी मजबूर हो जाती हैं।

आज वक्त मुझसे बदले ले रहा था। एक वो वक्त था जब मेरे अपने मुझपे जान निसार करते थे, और मैं अपने सपनों पर। जब तक मैं उनकी महोब्बत को समझ सका तब तक वो नफरत में बदल गई थी।

आज कुछ लोग कहते हैं। जब मेरे अपनों ने मुझे भुला दिया तो मैं भी उन्हें भुलाकर अपनी दुनिया अलग बसाऊं और शादी कर अपने बीबी बच्चों में खुश हो जाऊं। लेकिन मैं उनसे बस इतना ही कहता हूं। जब मैं अपने अपनों से करीब होकर भी दूर था, तब उन्होंने मुझे कितना प्यार किया। वो भी चाहते तो यही करते लेकिन जब उन्होंने मुझे तब भी प्यार किया और अभी भी करते है तो मैं क्यो ऐसा करूं। उनसे बिछडऩे की तड़प मुझे सताती है। उन्हें भी मेरी याद जरूर आती होगी।

रही सही शादी की बात जिस माँ -बाबूजी को मैं आज तक नहीं भुला सका तो उनके द्वारा जोड़ें गए रिश्ते को कैसे भुल सकता हूं मैं। मुझे आज भी याद हैं। बाबूजी ने कितने प्यार से अपने दोस्त की बेटी अभिलाषा के साथ मेरा रिश्ता पक्का किया था। अभिलाषा भी मुझसे कितना प्यार करती थी। लेकिन उस वक्त मैंने उसके प्यार को नहीं समझा लेकिन आज मुझे उससे दूर होने के बाद अहसास हैं। मैं उससे कितना प्यार करता हूं। उसने भी कितने सपने संजोए होगे आज मुझे अहसास हैं। मैं उसके सपनों को नहीं तोड़ सकता हूं। आज मैं समझता हूं प्यार में टुट के बिखरने का दर्द कैसा होता हैं। मैं जाऊंगा अपने आपनों के पास और कहूंगा।

मुझे अपना बना लों…

इतना सोचकर गौरव अपने रूम से बहार निकला और सीधे अपनी कार के पास गया। उन पुराने ख्यालों की दुनियां में खोए हुए वक्त कब गुजर गया पता ही नहीं चला। और वहां घर पहुंच गया। कार से उतर कर खुशी-खुशी दोडक़र बहार का गेट खोलकर अन्दर चला गया। घर के आंगन में खिले फूल आज भी वैसी ही खुश्बू से महेक रहे थे। जैसे पहले थी बचपन की यादें तजा हो रही थी। अब ओर देर नहीं करना चाहता था मैं और बेल बजाई और खुशी से फूला नहीं समा रहा था मैं। इतने सालों बाद माँ को देखूंगा कैसा लगेंगा। आँखे मुंझ ली थी। एक दम माँ ही को देखूंगा।
थोड़ी देर बाद गेट खुला और एक अन्जानी औरत ने कहा कोन है आप? ये सुनते ही एकदम चौक कर मैंने आंखे खोली और कहा यहां गौतम जी रहते थे न और आप कौन हैं? उस औरत ने कहा अपको नहीं मालूम गौतम जी चार-पांच साल पहले ये मकान हमें बैचकर अपने बेटों के साथ चले गए। लेकिन कहा? ये तो हम नहीं जानते है।

उस औरत के मुंह से ये बात सुनकर गौरव निराश हो गया और एक बार अपने घर को आशा भरी निगाह से देखकर रोते हुए कार में बैठ कर चल दिया ये देख उस औरत ने कहा भी कौन है आप? और कहा से आए है? लेकिन गौरव ने बस रोते हुए इतना ही कहा मैं अपनी डाली से बिछड़ा हुआ फूल हूं। जो अपने अपनों से मिलने के लिए तड़प रहा हूं।

उस दिन के बाद गौरव अपने काम से ज्यादा अपने परिवार को ढुढने में ध्यान देता। और हरपल ये सोचता रहता कैसे अपनों को ढुढ लूं। एक दिन इसी सोच में गाड़ी चला रहा था के सामने से एक लडक़ा गाड़ी लेकर आ गया। उसे बचाने में गौरव की कार पेड़ से टकरा गई।

उस लडक़े ने उसे हॉस्पिटल पहुंचाया। दोनों ने एक दूसरे की जान बचाई। धीरे-धीरे दोनों अच्छे दोस्त बन गए। गौरव वरून को अपने दिल की सब बात बताता। यूंही दिन गुजरते जा रहे थे। एक दिन वरून ने गौरव को अपनी शादी का कार्ड देकर कहा दोस्त एक दोस्त की शादी में तुम्हें सबसे आगे रहना हैं। गौरव ने भी मुस्कुराते हुए कहां क्यों नहीं वरून तुम्हारी शादी मेरे लिए तो बहुत बड़ी खुशी की बात है।

वरून के घर चले जाने के बाद गौरव ने उसकी शादी का कार्ड देखा तो खुशी से उझल गया, क्योंकि दुल्हन की जगह उसकी बहेन संध्या का नाम था। और वो एक दम खुशी-खुशी वरून के घर जाकर उसके गले से लग जाता हैं। और कहता हैं वरून तुम्हारी शादी मेरे लिए डबल खुशी लेकर आई हैं। तुम जानते नहीं संध्या ही मेरी छोटी बहेन छुटकी हैं और गौतम जी ही मेरे पिता हैं। मैं अभी इसी वक्त अपने अपनों से मिलना चाहता हूं। तुम मुझे उनसे मिलाओंगे न?

हाँ गौरव क्यों नहीं? लेकिन मैं चाहता हूं। तुम अपने परिवार से शादी वाले दिन मिलों । तुम्हारा उनसे उस दिन मिलना उनके लिए भी डबल खुशी लेकर आएगा। हां वरून तुम ठीक कहते हो इस खुशी शायद बाबूजी मुझे माफ भी कर दें।
उम्मीदों के साये में चलते हुए वक्त कब गुजर गया पता ही नहीं चला। आखिर आज वो दिन आ ही गया जब गौरव अपने आपनों के सामने खड़ा था।

उसके माँ-बाबूजी भाई सामने ही बरातियों के स्वागत करने के लिए खड़े थे। गौरव उन्हें देखकर तड़प गया। उसका दिल कर रहा था वो एक दम जाए और अपने अपनों को गले से लगा लें। गौरव को देख गौरव की माँ खुश हो जाती है। लेकिन गौरव को देख कर उसके बाबूजी अपने कदम पीछे कर लेते हैं। पीछे से उनके दोस्त उनके कंधे पर हाथ रखकर कहते हैं। गौतम तुम्हारे घर बेटी की बरात बनके खुशियां आई है, उनका हंसी खुशी इस्तेकबाल करों।

अपने दोस्त के आग्रह करने से गौतम जी फिर अपने कदम आगे बड़ा के वरून और उसके मम्मी-पापा का स्वागत करते हैं। लेकिन जब उनका गौरव से सामना होता है तो वो कट कर निकल जाते है। वरून एक दम उनका हाथ पकड़ कर कहता है। बाबूजी ये मेरे दोस्त गौरव है।

गौरव की आँखों में आंसू थे वो धीरे से हाथ उठा कर कहता है। नमस्ते बाबूजी। लेकिन गौतम जी उसको कोई जबाव नहीं देते हैं। धीरे -धीरे सब महेमान अन्दर जाने लगते हैं। वरून गौरव से कहता है आओं गौरव। गौरव कहता है अभी बाबूजी ने मुझे अन्दर आने की इजाजत नहीं दी है। उनकी बात का में अनादर नहीं कर सकता हूं।

ये देख गौरव की मां की आंखों में आसूं आ जाते हैं। लेकिन वो अपने पति के आगे मजबूर थी। बहनें भी भाई को इस तरह बहार खड़ा देख रो रही थी। लेकिन रोने के सिवा कुछ नहीं कर पा रही थी। सौरभ, सुशान्त अपने भाई को बहुत प्यार करते थे अपने भाई के बिना उनसे भी अन्दर कदम बढ़ाए नहीं जा रहें थे।

लेकिन वो भी अने बाबूजी की जिद के आगे मजबूर थे। सब महेमान अन्दर जा चुके थे। लेकिन गौरव बहार खड़ा होकर अपने बाबूजी की इजाजत का इन्तजार कर रहा था। लेकिन गौतम जी भी गौरव को बहुत प्यार करते थे। इसलिए उन्होंने अन्दर से ही अवाज दी। ओर कोई बहार रह गया हो तो अन्दर आ जाए।

गौरव अपने बाबूजी की अवाज सुनकर एकदम दोडक़र अन्दर आ गया। और अपने बाबूजी के कदमों में गीर के कहने लगा बाबूजी मुझे माफ कर दो। अब ऐसी गलती कभी नहीं होगी। मैं अब कभी आपकों शिकायत का मौका नहीं दूंगा।

“हर खुशी दी है आपने,
जिन्दगी दी हैं आपने,
अब इस गम की भी दवा दो,
मुझे अपना बना लों…
हर कसूर है मेरा,
अपनों से दूर हूं,
चारों तरफ है तुफानों का घेरा,
इन तुफानों में घिरने से मुझे बचा लों,
मुझे अपना बना लों…
आज मैं पछताता हूं, अपनों से दूर जाके आसूं बहाता हूं,
आज मुझे प्यार चाहिए अपनों का साथ चाहिए,
इस प्यार के दरियां में फिर मुझे डुबा लों,
मुझे अपना बना लों…
आप से दूर हूं मैं बहुत मजबूर हूं मैं,
खुशियां है बहुत लेकिन खुशियों से दूर हूं,
आज में तड़पता हूं, अकेले में आहे भारता हूं मैं,
और न मुझकों सजा दो,
मुझे अपना बना लों…

ये देख सबकी आंखों में आसू आ गए। सब सोच रहे थे। गौतम जी गौरव को माफ कर देगें। लेकिन उन्होंने गौरव को कह दिया इससे कहदो मैंने इसे अन्दर आने की इजाजत दी है। अपने दिल में आने की इजाजत नहीं दी हैं।

अपने बाबूजी की बात को सुनकर गौरव एक दम तड़प जाता हैं। वो बदहवास होकर रोये जा रहा था। और अपने बाबूजी से माफी मांग रहा था। गौरव को देखकर सब की आंखों में आसूं भर आए थे। लेकिन सब मजबूर थे। ये गौरव के घर के सदस्यों के संस्कार थे के वो गौतम जी की इजाजत के बिना एक कदम भी आगे नहीं बड़ाते थे। गौतम जी जो कह दे वो सबके लिए पत्थर की रकील होता।

गौतम जी के आगे वो आसूं बहाने और तड़पने के सिवा कुछ नहीं कर सकते थे। और सब खामोश खड़े कभी गौतम जी को तो कभी गौरव का मुहं देख रहें थे।

जब बहुत देर हो जाती है। गौतम जी कुछ नहीं कहते तो गौरव कहता है लगता है मैं अभी तक अपने आपनों से मिलने के लिए जिस तरह से तड़पा हूं वो तड़प मेरी सजा नहीं।

और वो वहां से जाने के लिए चल देता है। गौरव को इस तरह जाते देख उसके सब अपनों की आंखों में आसूं थे। उसके इन अपनों में एक अभिलाषा भी थी जो अपनी आसूं भरी आंखों से इतने सालों बाद एक बार फिर अपनी आंखों के सामने अपने प्यार को अपनी आंखों से हमेशा के लिए औझल होते हुए देख रही थी। उसकी हिचकिया बंधी थी। और वो बहुत ज्यादा रोने लगी थी। लेकिन शायद इस सन्नाटे में भी उसकी तड़प को देखने वाला कोई नहीं था।

जब गौरव गेट तक पहुंच गया तो गौतम जी ने अपने परिवार के सदस्यों के मुरझाएं हुए चहरों की तरफ देखा। आज उन्हें भी अपने इन अपनों में गौरव की कमी महसूस हो रही थी।

फिर उन्होंने कहा बेटा मैं इतना भी संगदिल नहीं हूं कि अपनी आंखों के सामने अपने बेटे को हमेशा के लिए फिर अपने और अपनों से से दूर जाते देख सकूं।

ये सुनकर गौरव एकदम दौडक़र अपने बाबूजी के गले लग जाता है। और कहता है बाबूजी मुझे उम्मीद थी आप मुझे इस तरह दुखी नहीं कर सकते हैं। आप मुझे जरूर माफ कर देगें। और ऐसा ही हुआ आपने फिर मुझे अपना बना लिया। अब में कभी अपने अपनों से दूर नहीं जाऊंगा।

लेखिका- सैयद शबाना अली