“श्रद्धांजलि”
रतन टाटा हमारे देश के वो महान इंसान थे जिन्होंने सामाजिक जिम्मेदारी की भावना के कारण कई बार व्यक्तिगत संपत्ति के बजाय अपने संसाधनों को समाज कल्याण के लिए लगाया। टाटा ग्रुप का मुनाफा मुख्य रूप से सामाजिक कार्यों में लगाया जाता है, जो कि रतन टाटा की उदार सोच और उनके दानशील स्वभाव को दर्शाता है।
इंसान अपनी महेन्त से कामयाबी की बुंलदियों को हासिल कर लेता है। लेकिन जिन्दगी में वहीं इंसान सफल कहलाता है जो अपने किरदार को ऐसा बनाएं जिसके वजूद से हर कोई अपनी जिन्दगी में प्रेरणा हासिल कर सकें। हमारे देश की गरिमा कहलाने वाले रतन टाटा भी एक ऐसे ही शख्स थे जिनकी सादगी भरे जीवन का दिग्गजों लेकर आम इंसान तक कायल था।
सिम्पल लिविंन हाई थिंकिंग पर बिलीव करने वाले रतन टाटा हमारे देश के ऐसे दिग्गजों में शुमार थे। जिन्होंने हर कदम पर आने वाली कठिनाइयों में हंसते मुस्कुराते हल करते हुए सफलता की नई ऊंचाईयों को छु कर दिखाया, और अपनी फिल्ड के मास्टरमांइड कहलाए। उन्होंने अपने सारी जिन्दगी इस अंदाज में जी कर दिखाया सारे देश के युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गए।
रतन टाटा का जीवन एक सादगीपूर्ण, ईमानदार और दयालु व्यक्तित्व की मिसाल है, जो हमेशा समाज के उत्थान और बेहतर भविष्य के लिए काम करते रहे हैं। उनकी जीवनी हमें यह संदेश देता है कि असली सफलता सिर्फ धन या शक्ति में नहीं, बल्कि समाज के प्रति जिम्मेदारी और मानवता के प्रति संवेदनशीलता में है।
अपने सादगी भरे जिन्दगी जिने के लिए मसहूर लाखों लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत रहे रतन टाटा ने 86 साल की उम्र में दुिनया को अलविदा कह दिया। उन्हें दिल से अपना मानने वाले देश के लाखों लोगों की आंखों में दर्द के आंसू छोड़ गए। दौलत और शोहरत के मामले में धनी रहे रतन टाटा देश के गरीबों के दिलों पर भी राज करते थे। क्योंकि वो एक ऐसे इंसान जिन्होंने कभी गरीबों अमीरों मे फर्क नहीं किया जिनकी मदद की दिल से की, और सभी के दिलों पर राज किया।
1937 में जन्मे रतन टाटा ने साल 1991 से लेकर 2012 तक टाटा ग्रुप की कमान संभाली। इस दौरान उन्होंने टाटा ग्रुप को नई ऊंचाई पर पहुंचाया। लेकिन जिम्मेदारी संभालने के बाद उन्हें सबसे ज्यादा चुनौती का सामना करना पड़ा। लेकिन उनकी लीडरशिप में ऐसा जादू था कि कम समय में उन्होंने टाटा ग्रुप को नई ऊंचाईयों पर ही नहीं पहुंचाया बल्कि सभी के दिलों अपनी सदगी वजह से राज भी किया। रतन टाटा नए स्टार्टअप्स और युवा उद्यमियों के मार्गदर्शक के रूप में काम करते रहे हैं। वे भारतीय स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे।
रतन टाटा का निधन 86 वर्ष की आयु में 9 अक्टूबर को हुआ। उन्हें गंभीर हालत में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। रतन टाटा के निधन के कारण उद्योग जगत समेत पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई है। हर कोई उन्हें भावभीनी श्रद्धाजंली दे रहा था। और उनके पे्ररणदायक जीवन को याद कर रहा था।
रतन टाटा इतिहास में अमर हो गए हैं। लेकिन अपने पिछे अपना ऐसा किरदार छोड़ गए जो सदियों तलक अमर रहेगा। और वो लाखों लागों के दिलों में जिन्दा रहेगें। उनके स्वभाव में जो विनम्रता, शालीनता, सहजता और सादगी थी। जिसकी वजह से हर कोई उनका कायल हो जाता था। रतन टाटा एक सफल बिजनेसमैन थे। लेकिन उससे बड़े समाज सेवी भी थे, वो हमेशा हमारे देश के लिए खड़े रहे।
यही कारण था कि सिर्फ बिजनेस जगत के लोग ही नहीं देश और दुनिया के आम लोग भी रतन टाटा को काफी पसंद करते थे। रतन टाटा का निधन देश और दुनिया के तमाम लोगों के लिए दुख की घंड़ी है। रतन टाटा की लाइफ लोगों के लिए प्रेरणादायक रही है, ना जाने कितने युवा उनकी दी हुई सीख लेकर सफलता के शिखर पर पहुंच रहे है।
रतन नवल टाटा का नाम भारत के सबसे प्रतिष्ठित और सम्मानित उद्योगपतियों में शामिल है। वे न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व के रूप में पहचाने जाते हैं। उनका जीवन संघर्ष, समर्पण, और समाज के प्रति उनकी संवेदनशीलता की कहानी है। वे टाटा समूह के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं, जो भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक ग्रुप हैं।
टाटा ग्रुप के अधीन लगभग 100 कंपनियां कार्यरत हैं, जिनमें टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज और टाटा पावर जैसी प्रमुख कंपनियां शामिल हैं।
जन्म और शिक्षा
रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को मुंबई में हुआ था। वे प्रसिद्ध पारसी परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता नवल टाटा और माता सोनू टाटा थीं। रतन टाटा का पालन-पोषण उनकी दादी नवाजबाई टाटा ने किया क्योंकि उनके माता-पिता का तलाक तब हुआ जब वे बहुत छोटे थे। उनकी स्कूली शिक्षा मुंबई के कैंपियन स्कूल और कैथेड्रल एंड जॉन कॉनन स्कूल से हुई। बाद में उन्होंने अमेरिका के कॉर्नेल विश्वविद्यालय से आर्किटेक्चर और स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एडवांस मैनेजमेंट प्रोग्राम पूरा किया।
रतन टाटा ने अपने करियर की शुरुआत 1962 में टाटा ग्रुप के साथ की थी। उन्होंने सबसे पहले टाटा स्टील की जमशेदपुर इकाई में ब्लू-कलर कामगार के रूप में कार्य किया। यहीं से उन्होंने जमीनी स्तर पर कामकाज को समझना शुरू किया। उनकी प्रतिभा और नेतृत्व क्षमता को देखते हुए उन्हें 1971 में राष्ट्रीय रेडियो और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी (नेल्को) का प्रभारी बनाया गया, जो उस समय घाटे में चल रही थी। उनके नेतृत्व में नेल्को की स्थिति में कुछ सुधार हुआ, हालांकि इसे पूरी तरह से मुनाफे में नहीं बदला जा सका।
1991 में, जब जे.आर.डी. टाटा ने टाटा ग्रुप के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया, तो रतन टाटा को ग्रुप का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। यह समय भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी चुनौतीपूर्ण था क्योंकि उसी वर्ष भारत ने आर्थिक उदारीकरण की नीतियां अपनाई थीं। रतन टाटा ने अपनी दूरदर्शिता और नये विचारों के साथ टाटा ग्रुप को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया। साल 1991 में रतन टाटा ने दिसंबर 2012 तक अपने पूर्ववर्ती जेआरडी टाटा से पदभार ग्रहण करते हुए टाटा समूह की कमान संभाली। उनके 22 साल के चेयरमैनशिप के दौरान टाटा समूह ने विदेशों में कई अधिग्रहणों के जरिए तेजी से विकास किया।
टाटा ग्रुप में सुधार और नवाचार
रतन टाटा ने अपने कार्यकाल के दौरान टाटा ग्रुप में कई महत्वपूर्ण सुधार किए। उन्होंने ग्रुप की कंपनियों में पारदर्शिता और अखंडता को प्राथमिकता दी। इसके अलावा, उन्होंने ग्रुप की कार्यप्रणाली को आधुनिक बनाने के लिए कई प्रयास किए। उनके नेतृत्व में टाटा मोटर्स ने 1998 में भारत की पहली स्वदेशी कार टाटा इंडिका लॉन्च की, जिसने भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग में एक नई दिशा दी।
रतन टाटा की दूरदृष्टि ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय बाजारों में विस्तार के लिए प्रेरित किया। उनके नेतृत्व में टाटा ग्रुप ने कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियों का अधिग्रहण किया, जिनमें टेटली (ब्रिटेन की चाय कंपनी), कोरस (स्टील कंपनी), और जैगुआर-लैंड रोवर (ऑटोमोबाइल कंपनी) शामिल हैं। ये अधिग्रहण टाटा ग्रुप के लिए मील के पत्थर साबित हुए और ग्रुप को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाया।
व्यक्तिगत जीवन और समाज सेवा
रतन टाटा अपने सरल और विनम्र स्वभाव के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने आजीवन विवाह नहीं किया, और वे सादगीपूर्ण जीवन शैली का पालन करते हैं। रतन टाटा का जीवन समाज सेवा के लिए समर्पित रहा है। वे टाटा ट्रस्ट्स के माध्यम से विभिन्न सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहे हैं। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास और विज्ञान व प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में कई परियोजनाओं का समर्थन किया है।
उनकी सामाजिक जिम्मेदारी की भावना के कारण उन्होंने कई बार व्यक्तिगत संपत्ति के बजाय अपने संसाधनों को समाज कल्याण के लिए लगाया। टाटा ग्रुप का मुनाफा मुख्य रूप से सामाजिक कार्यों में लगाया जाता है, जो कि रतन टाटा की उदार सोच और उनके दानशील स्वभाव को दर्शाता है।
पुरस्कार और सम्मान
रतन टाटा को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। उन्हें 2000 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण और 2008 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उन्होंने दुनिया भर के विभिन्न मंचों से भी सम्मान प्राप्त किया है। उनकी नेतृत्व क्षमता और समाज के प्रति समर्पण की सराहना हर जगह होती है।
2000 में तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण प्राप्त करने के बाद, 2008 में उन्हें भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण मिला।
रतन टाटा ने 2012 में टाटा ग्रुप के अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्ति ली। हालांकि, इसके बाद भी वे ग्रुप और सामाजिक कार्यों से जुड़े रहे। उनकी सेवानिवृत्ति के बाद भी, वे नए स्टार्टअप्स और युवा उद्यमियों के मार्गदर्शक के रूप में काम करते रहे हैं। वे भारतीय स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे। उन्होंने कई स्टार्टअप्स में निवेश किया है।
रतन टाटा का जीवन और उनके कार्य हमें यह सिखाते हैं कि सफलता के साथ सामाजिक जिम्मेदारी भी महत्वपूर्ण है। वे न केवल एक सफल उद्योगपति हैं, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति भी हैं जिन्होंने समाज के कल्याण के लिए अपने संसाधनों का उपयोग किया। उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने हर चुनौती को अवसर में बदला और अपने कार्यों से देश और दुनिया के लिए प्रेरणा का स्रोत बने।
54 साल की उम्र में टाटा ग्रुप की जिम्मेदारी संभालने वाले रतन टाटा के लिए इस जिम्मेदारी को निभाना, ग्रुप को आगे बढ़ाना और समूह से जुड़े लोगों की उम्मीदों को पूरा करना आसान नहीं था। उन्हें टाटा ग्रुप को नया रूप देना था। जो उन्होंने बहेतर से बहेतर कर के दिखाया।
रतन टाटा ने शादी नहीं की थी। लेकिन उन्होंने अपनी लव लाइफ का किस्सा जरूर सुनाया था। उन्हें अपनी जिन्दगी में चार बार प्यार हुआ था। लेकिन वो उसे शादी तक नहीं पहुंचा पाए थे। रतन टाटा ने खुद अपनी लव लाइफ को लेकर कई जानकारियां दी थी। बिजनेस की दुनिया में जिस रफ्तार से उन्होंने अपनी गाड़ी दौड़ाई, प्यार के मामले में वह शायद उतनी तेज नहीं चली। रतन टाटा को चार बार प्यार हुआ, प्यार शादी तक भी बात पहुंची लेकिन शादी हो नहीं पाई।
एक इंटरव्यू के दौरान खुद रतन टाटा ने अपने लव लाइफ के बार में बताया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि उनकी जिंदगी में प्यार एक नहीं बल्कि चार बार आया था। लेकिन कई सारे कारणों की वजह से प्यार कभी शादी तक नहीं पहुंच पाया। टाटा ने बताया कि फिर कभी उन्होंने शादी के बारे में नहीं सोचा और अपना पूरा ध्यान अपनी कंपनियों को आगे बढ़ाने में लगा दिया था। रतन टाटा की लव चाहे सफल ना हो पाई हो लेकिन उन्होंने अपनी कंपनीयों को सफलता की बुलंदियों तक पहुंचाया है। यही कारण है कि आज उनकी कंपनी देश ही नहीं बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है।
रतन टाटा काफी खुशमिजाज इंसान थे। यहीं वजह थी कि वो प्यार जैसे मुद्दे पर भी खुल कर बोलते थे। एक इटरव्यू में उन्होंने बताया था कि उन्हें प्यार तो हुआ लेकिन प्यार को अंजाम तक पहुंचाने में वो नाकाम ही रहे। उन्होंने कहा था कि शादी ना होना भी अच्छा ही रहा। शायद अगर शादी हो जाती तो आज स्थिति कुछ अलग ही होती। इंटरव्यू में बताया थी कि अगर मुझे आप अपने शादी के बारे में पूछेंगे तो में आपको यही बताऊंगा कि मैने चार बार कोशिश कि लेकिन किसी ना किसी डर के कारण यह हर बार नहीं हो पाया। जब मैं अमेरिका में था तब शायद मैं प्यार को लेकर सबसे ज्यादा सीरियस हो गया था, लेकिन शादी नहीं हो पाई थी। जिसके बाद मैं भारत लौट आया था।
सैयद शबाना अली
हरदा मध्यप्रदेश