हिंदू धर्म में कई ऐसे पर्व-त्योहार मनाए जाते हैं, जिनका अपना खास महत्व है। कार्तिक महीना चल रहा है और इस महीने में कई बड़े त्योहार आते हैं, जिसमें से एक है छठ का पर्व। छठ पर्व में छठी मईया और सूर्य देवता की पूजा की जाती है। सूर्य देव की उपासना के पर्व छठ को लेकर तैयारियां चल रही है। सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इस पर्व को छठ कहा जाता है।
सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल देने वाले इस पर्व को पुरुष और महिला समान रूप से मनाते हैं। वैसे तो आम तौर पर व्रत करने वालों में महिलाओं की संख्या अधिक होती है। जो व्रती छठ पूजा पूरी शुद्धता, सच्चे मन, श्रद्धा भाव, पवित्रता से करते हैं उन्हें शुभ फल प्राप्त होता है।
यह व्रत परिवार की सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। मान्यता है कि बांस के सूप, डलिया में सूर्य देवता को प्रसाद अर्पित करने से घर में धन-धान्य, सुख-समृद्धि आती है. नि:संतान शादीशुदा लोगों को संतान की प्राप्ति होती है। इस पर्व में शुद्धता और स्वच्छता का खास ध्यान रखा जाता है।
सूर्योपासना का यह पर्व कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है। आज नहाय-खाय से छठ पूजा की शुरुआत हो चुकी है। 6 नवंबर को खरना है। 7 को शाम में सूर्य देवता को अर्घ्य दिया जाएगा और 8 तारीख को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रती पूजा का पारण करेंगे। इसमें व्रती 36 घंटे निर्जला व्रत के साथ पूजा-पाठ करते हैं। इस पर्व में व्रतियों के घरों के अलावा गलियों से लेकर सडक़ों तक की सफाई की जाती है। इस कार्य मे प्रशासन ही नहीं, बल्कि मोहल्ले और कस्बों के लोग भी मनोयोग से जुटते हैं।
घर से लेकर छठ घाटों तक साफ-सफाई का खास ध्यान रखा जाता है। इस अवसर पर बनने वाले महाप्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी को जलाकर तैयार किया जाता है। आम की लकड़ी और मिट्टी के चूल्हे को शुद्ध माना जाता है। सनातन धर्म में आम की लकड़ी का खास महत्व है। अटल आस्था का अनूठा पर्व छठ में सूर्य की पहली किरण और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण को अर्घ्य देकर सूर्य को नमन किया जाता है।
आपने एक बात गौर किया होगा कि छठ पूजा पर जब लोग शाम और सुबह में घाट, नदी किनारे जाते हैं तो अपने सिर पर बड़े-बड़े सूप, टोकरी रखते हैं, जिसमें कई तरह की सामग्री होती है। यह सब पूजा में चढ़ाए जाने वाले प्रसाद होते हैं। छठ पूजा में आपको बड़े-बड़े बांस के बने सूप, डलिया या दउरा देखने को मिल जाएंगे।
इसी सूप में सभी प्रसाद रखे जाते हैं और घाट पर लोग अपने सिर पर रखकर पैदल चलकर जाते हैं। दरअसल, बांस प्रकृति का प्रतीक है। यह एक प्राकृतिक चीज है। छठ पूजा में भी आप प्रकृति की पूजा ही करते हैं, इसलिए इस महापर्व में बांस के सूप, टोकरी का इस्तेमाल किया जाता है।
छठ पूजा करने से जिन शादीशुदा लोगों की संतान नहीं है, उन्हें संतान प्राप्ति का सुख मिलता है। छठ पूजा का प्रारंभ महाभारत काल के समय से देखा जाता है। छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं। उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना की जाती है। छठ पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इस दिन व्रती महिलाएं स्नान कर अरवा चावल, चना दाल और कद्दू की सब्जी का भोजन करती हैं।
इस दिन खाने में सेंधा नमक का प्रयोग किया जाता है। नहाय-खाय के दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष पंचमी के दिन भर व्रती उपवास कर शाम को स्नान कर विधि-विधान से रोटी और गुड़ से बनी खीर का प्रसाद तैयार कर भगवान सूर्य की आराधना कर प्रसाद ग्रहण करती हैं। इस पूजा को खरना कहा जाता है।
इसके अगले दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को उपवास रखकर शाम को व्रती बांस से बने दउरा में ठेकुआ, फल, ईख समेत अन्य प्रसाद लेकर नदी, तालाब या अन्य जलाशयों में जाकर अस्ताचलगामी सूरज को अर्घ्य अर्पित करती हैं और इसके अगले दिन यानी सप्तमी तिथि को सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर घर वापस लौटकर अन्न-जल ग्रहण कर पारण करती हैं, यानी व्रत तोड़ती हैं।
इस पर्व में गीतों का खासा महत्व होता है। छठ पर्व के दौरान घरों से लेकर घाटों तक कर्णप्रिय छठ गीत गूंजते रहते हैं। व्रतियां जब जलाशयों की ओर जाती हैं, तब भी वे छठ महिमा की गीत गाती हैं। वैसे, इन दिनों कई परिवर्तन भी देखे जा रहे हैं।
नदी, तालाबों और जलाशयों में जुटने वाली भारी भीड़ से बचने के लिए लोग अपने घर की छतों पर भी छठ मना रहे हैं। ये लोग बड़े टबों में जल डालकर अर्घ्य देने लायक बना लेते हैं। छठ पूजा को सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है, क्योंकि इस दौरान श्रद्धालुओं को कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है। यह व्रत परिवार की सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है।
पहिले पहिल हम कईनी
छठी मईया व्रत तोहार ।
करिहा क्षमा छठी मईया,
भूल-चूक गलती हमार ।
सब के बलकवा के दिहा,
छठी मईया ममता-दुलार ।
पिया के सनईहा बनईहा,
मईया दिहा सुख-सार ।
नारियल-केरवा घोउदवा,
साजल नदिया किनार ।
सुनिहा अरज छठी मईया,
बढ़े कुल-परिवार ।
घाट सजेवली मनोहर,
मईया तोरा भगती अपार ।
लिहिएं अरग हे मईया,
दिहीं आशीष हजार ।
पहिले पहिल हम कईनी,
छठी मईया व्रत तोहर ।
करिहा क्षमा छठी मईया,
भूल-चूक गलती हमार ।