Married women keep the fast of Vat Savitri for the long life of their husbandsFestival

हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री ने यमराज से लडक़र अपने पति सत्यवान के प्राण वापस लाए थे। कथा के अनुसार जब यमराज ने सत्यवान के प्राण लौटाए थे। सावित्री ने अपने पति को वट वृक्ष के नीचे ही जीवित किया था। इसलिए महिलाएं इस दिन अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं।

ऐसी मान्यता है कि व्रत का पालन करने से महिलाओं को अपने पति के लिए सौभाग्य और समृद्धि प्राप्त होती है।
वट सावित्री पूजा विवाहित महिलाएं करती है। महिलाएं वट वृक्ष यानी बरगद के वृक्ष की पूजा करती हैं। वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। वट सावित्री व्रत में बरगद के वृक्ष का बहुत महत्व है।

अश्विन मास में भगवान विष्णु की नाभि से कमल प्रकट हुआ था। अन्य देवों से भी विभिन्न वृक्ष उत्पन्न हुए। उसी समय यक्षों के राजा ’मणिभद्र’से वट का वृक्ष उत्पन्न हुआ। अपनी विशेषताओं और लंबे जीवन के कारण इस वृक्ष को अनश्वर माना जाता है इसीलिए महिलाएं पति की दीर्घायु और परिवार की समृद्वि के लिए यह व्रत रखती है। वट वृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति को पुन: जीवित किया था तब से यह व्रत ’वट सावित्री’के नाम से जाना जाता है।

बरगद के वृक्ष की पूजा का हिंदू धर्म में बहुत आस्था है धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बरगद के पेड़ में हिंदू पौराणिक कथाओं के त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश विद्यमान हैं। बरगद के वृक्ष की जड़ें ब्रह्मा का रूप हैं। वहीं बरगद वृक्ष का तना विष्णु का रूप है और भगवान शिव बरगद के पेड़ के ऊपरी हिस्से मे विद्यमान है।

ऐसी मान्यता है कि इस पवित्र पेड़ के नीचे पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सावित्री ने अपने समर्पण से अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस ले आई थी, वट सावित्री का शुभ व्रत को रखने से विवाहित महिलाओं को एक सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद मिलता है।

वट सावित्री का व्रत रखने से पहले इस दिन सुबह जल्दी स्नान करने के बाद, विवाहित महिलाएं सुहागन के रूप में तैयार होती हैं। महिलाएं अपने माथे पर सिंदूर लगाती हैं। और श्रृगार करती है फिर वट वृक्ष या बरगद के पेड़ को चावल और फूल अर्पित करती हैं। इसके बाद वृक्ष के तने के चारों ओर पीले या लाल रंग के धागे बांधते हैं, धागे पर सिंदूर लगाते हैं और प्रार्थना करते हुए वृक्ष के चारो ओर परिक्रमा करती हैं। देवी सावित्री की भी पूजा की जाती है। इसके बाद महिलाएं भोग लगाकर अपने व्रत का पारायण करती हैं।

सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और दांपत्य जीवन को सुखी बनाने के लिए वट सावित्री व्रत रखती हैं। महिलाएं व्रत में बरगद के वृक्ष में देवी सावित्री और सत्यवान की पूजा करते हैं। वट सावित्री का व्रत साल में दो बार पड़ता है। पहला वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है। वट सावित्री का दूसरा व्रत कब मनाते है? वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह में ही दो बार पड़ता है। एक व्रत कृष्ण पक्ष में और दूसरा व्रत शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है।