पैगंबर हजरत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैदाइश के दिन को पूरी दुनिया ईद-ए-मिलाद उन-नबी के रूप में मनाती है। इस्लाम धर्म में रबीउल अव्वल महीने की 12 तारीख को मिलादुन्नबी के दिन ईद-ए-मिलाद-उन-नबी का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का योमे पैदाइश का दिन है।
इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जन्म 571 ईस्वी में सऊदी अरब के मक्का शहर में हुआ था। जिस दिन हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जन्म हुआ था वह दिन 12 रबी उल अव्वल की तारीख थी। हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वालिद अबदुल्ला बिन अब्दुल मुतलिब थे, जबकि वालेदा बीबी आमेना आले. थीं।
इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से रबी उल अव्वल तीसरा महीना है। आमतौर पर 12 रबी अव्वल को ही तमाम मुसलमान पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जन्म दिवस मानते हैं। हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के योमे पैदाईश के कारण यह दिन सारी दुनिया के मुसलमानों के लिए बहुत ही अफजल है। हर मुसलमान इस दिन खुशियां मनाते है। सारी दुनिया के मुसलमानों के लिए पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का योमे विलादत का दिन बहुत पाक दिन है। इस दिन तमाम मुसलमान खुशी मनाते हैं।
इस दिन घरों में रोशनी करते है। और अपने घरों को सजाते है। मिठाई बनाई जाती है और एक दूसरे को मुबारकबाद देकर खुशियां बांटी जाती है। हजरत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मानवता के संदेश को घर घर पहुंचाने के लिए इस ईद मिलादुन्नबी का जूलूस कई जगह निकाला जाता है। मुसलमान इस दिन बड़े जुलूस निकालते हैं। और अपने आका के आने का जश्न मनाते है। जुलूस में मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान में नात शरीफ़ पढ़ी जाती हैं और उनकी शिक्षा और जीवनी पर धार्मिक रहनुमा तकरीर भी करते हैं।
घरों में और मस्जिदों में पुरी रात मिलाद की जाती है। ईद मिलाद उन नबी के दिन इस्लाम के बारे में तथा हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जिन्दगी के बारे में आम लोगों को बताया जाता है। किस तरह हजरत मोहम्मद ने अल्लाह के संदेश को लोगों तक पहुंचाया और किस तरीके से उन्होंने लोगों को नेकी और अच्छाई के रास्ते पर चलना सिखाया। जिसमें हजरत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जिन्दगी के बारे सबकों बताया जाता है। जिससे लोग उनके अला मरतबा शिरातुन्नबी से अपनी जिन्दगी में रहनुमाई हासिल कर सकें।
जब हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अखलाक की चमक जाहिर हुई तो न सिर्फ उसने लोगों के दिलों को रोशन किया। बल्कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जिन्दगी के वाकिआत हर मुल्क के लोगों की रहनुमाई के लिए मिसाल बनकर सामने आये।
हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की योमे विलादत के मौके पर खुशी के साथ-साथ लोगों की मदद भी की जाती है। गरीबों में खाना बांटा जाता है तो कई लोग पियासों को पानी पिलाने के लिए सबील लगाते हैं। ईद की तरह अपने रिश्तेदारों और पड़ोस में घर में बनी हुई मीठी चीज हलवा, खीर आदि भेजा जाता है।
हजरत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दुनिया में उस वक्त तसरीफ लाये जब दुनिया में चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा था। वो दुनिया में अच्छाई और सच्चाई का नूर बनकर जल्बा अफरोज हुए। हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दुनिया में यातिमों मोहताजों, औरतों बेटियों के लिए रहनुमा बनकर आये। उन्होंने दुनिया में तसरीफ लाकर सबकों उनका हक दिलाया। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सारी दुनिया के लिए रहमतुल-लिल-आलमीन है।
जिस दिल में ईमान की शम्मा रोशन होती है। वो दिल हमेशा नूर से रोशन और मुन्नवर रहता है। ये वही नूर है जो इंसान को कभी गलत रास्ते पर भटकने नहीं देता है। और उसको जिन्दगी के हर मुकाम पर सीधी रहा दिखाता है। हर गुनाह से बचने की तोफिक देता है। और उसको उस मुकाम पर लें जा कर खड़ा कर देता है। जहां उसको अल्लाह की रहमतों के साये साफ-साफ नजर आते है। फिर वो इंसान कितनी ही गुनाहों की गल्लियों से निकल के आ जाये हर हाल में वो उन गुनाहों से अपने दामन को पाक रख पाता है।
ईमान की शम्मा दिल में रोशन होने के बाद जो नूर दिल में सबसे पहले उतरता है। वो नूरे हजरत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ही है। जिसके सदके तुफल में इंसान अपनी जिन्दगी को सही मायने समझ पाता है। ईस्लाम में हजरत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का वो अला मरतबा हैं। जिसकी वजह से दुनिया में ईस्लाम चारों तरफ फैल पाया था ।
हजरत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
हजरत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ज्यादा से ज्यादा खमोश रहना पंसद करते है बगैर जरूरत किसी से बात नहीं करते है। बातों में मिठास इतनी थी सुनने वाले का जी ही नहीं भरता था। गुफतगू इतनी दिलनशी होती थी सुनने बाले के दिल और रूह पर इसका असर होता था। लहजा बहुत नरम था तल्खी कड़वाहट नहीं थी। ऐसा अखलाक था के दुश्मन भी दोस्त हो जाते थे।
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बिमारो की अयादत के लिए जरूर जाया करते थे। कोई बिमार हो जाता तो उसकी तबियत पुछते और मरीज के करीब बैठकर उसको तसल्ली देते।बच्चों से बहुत शफकत करते थे। यातिम बच्चों बहुत ज्यादा महोब्बत थी आप सा. को। हमेशा मुस्कुराते रहते थे। किसी ने आपके साथ कुछ किया तो उसे माफ कर देते।
Syed Shabana Ali
Harda ( M.P.)