sweet and sour grapes gardeningAngoor ki khaiti

अंगूर एक खट्टा मिठा स्वादिष्ट फल है। भारत में अंगूर की खफत बहुत ज्यादा है यह पर अंगूर ज्यादा खाया जाता है। इस लिए अंगूर की डिमांड मार्केट में हमेश बनी रहती है। किसान अंगूर की बागवानी करके दिन दुगना मुनाफा कमा सकते है। क्योंकि सही तरीके से की गई अंगूर की बागवानी से हर साल सोच से ज्यादा फल प्राप्त होते है जिससे लाखों का मुनाफा होता है। जिसके जरीए किसान अपनी आय बढ़ा सकते है।

अंगूर सेहत के लिए भी फायदेमंद होता है। इसमें मौजूद पॉली-फेनोलिक फाइटो कैमिकल कंपाउंड हमारे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है। इसलिए अंगूर का सेवन काफी लाभदायक है। इसके अलावा इसका सेवन कई बीमारियों को दुर करता है इसमें सेहत के कई लाभकारी गुण मौजूद है। अंगूर कैंसर सेल्स को बढऩे से रोकता है, हार्ट अटैक के खतरे को कम करता है। डायबिटीज में भी इसका सेवन फायदेमंद बताया गया है। यह शुगर लेबल को कंट्रोल करता है।

इसमें मौजूद कैल्शियम कब्ज की शिकायत को दूर करने में कारगर होता है। ये आंखों के लिए भी फायदेमंद होता है। अंगूर मे मौजूद एंटीऑक्सीडेंट और फलेवोनोइड्स आंखो की रोशनी बढ़ाने और आंखो से जुड़ी बीमारियों से बचने में मदद करता है। अंगूर को स्वास्थ के लिए अच्छा माना जाता है। इसमें क्लौरी और वसा कम होता है। और विटामिन सी की मात्रा अधिक होने के कारण सेहत को तंदरूस्ती प्रदान करता है।

अंगूर में एंटीऑक्सीडेंट फाइबर है जो सेहत के लिए फायदेमंद है अंगूर को खाने से कई सेहत के लिए लाभ होते है ह्दय के स्वास्थ के लिए बेहतर है, ये कैंसर की संभावना को कम करता है। इसमें सेहत के कई गुण मौजूद है।जो हमारी सेहत के लिए फायदेमंद है।

अंगूर का इस्तेमाल फल के रूप में खाने के अलावा इससे किशमिश, मुनक्का, जूस, जैम और जैली भी बनाए जाते हैं। इसके अलावा इसका उपयोग मदिरा बनाने में भी किया जाता है। अंगूर में कई पोषक, एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी बैक्टीरियल तत्व पाए जाते हैं।

अंगूर एक बागवानी फसल में शामिल है अंगूर की बागवानी आय के लिए एक अच्छा स्त्रोत है किसान अंगूर की आधुनिक खेती कर ज्यादा उत्पादन प्राप्त करने के साथ ही दुगना मुनाफा प्राप्त कर रहे हैं। वर्तमान समय में भारत में अंगूर के उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है। किसान अंगूर की फसल का उत्पादन आधुनिक तरीके से कर ज्यादा उत्पादन प्राप्त कर बंफर मुनाफा कमा रहे है। अंगूर एक ऐसी बागवानी फसल है एक बार मेहनत कर खेती कर लें और लंबे समय तक उसका मुनाफा उठया जा सकता है।

अंगूर की खेती की एक उन्नत किसम की तकनीक मौजूद है जिसके द्वारा ज्यादा से ज्यादा उत्पाद प्राप्त किया जा सकता है अंगूर की खेती एक बार कर लंबे समय तक आय देने वाली खेती में शामिल है। अंगूर से उत्पादित वस्तुओं की बाजार में काफी अच्छी डिमांड है इसको आनलाईन प्लेटफॉर्म पर भी आसानी से बेचा जा सकता है। अंगूर की फसल हाथों हाथ बिक जाती है अंगूर की बागवानी फसल किसानों के लिए फायदे का सौदा है।

अंगूर की खेती के लिए उपयुक्त भूमि एवं जलवायु:-

अंगूर की खेती के लिए गर्म एवं शुष्क जलवायू सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इस जलवायु में अंगूर की फसल अच्छे से पनपती है। अंगूर की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली रेतीली, दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। इसमें अंगूर की खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है। वहीं अधिक चिकनी मिट्टी इसकी खेती के लिए ठीक नहीं रहती है।

क्योकि इसके पौधों की जड़े चिकनी मिट्टी में अच्छे से फैल नहीं पाती जिससे उनके पौधों का विकास नहीं हो पाता है इसलिए अंगूर की खेती के लिए रेतेली मिट्टी ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है। इसकी खेती के लिए गर्म, शुष्क, तथा दीर्घ ग्रीष्म ऋतु अनुकूल होती है। अंगूर के पकते समय वर्षा या बादल का होना बहुत ही हानिकारक होता है। बारिश की वजह से इसके दाने फट जाते हैं और फलों की गुणवत्ता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। बारिश का पानी पढऩे से अंगूर के दाने गल जाते है।

अंगूर की खेती करने के लिए उपयुक्त समय:-

अंगूर की खेती की तैयारी आमतौर पर दिसंबर से जनवरी महीने में की जाती है। अंगूर की फसल की बवाई से पहले खेत को अच्छे से साफ कर लेना चाहिए खेत की एक गहरी जुताई कर लें। और खेत की जमीन समतल होनी चाहिए ताकि अंगूर की फसल के पौधो को प्रायप्त पानी और पौषक तत्व समान मात्रा में मिले। इसके बाद इसमें सड़ी हुई गोबर की खाद डाले। और इसके बाद अंगूर की फसल की रोपाई के लिए 5-5 फुट की दूरी पर गड्डे तैयार कर लेना चाहिए फसल की रोपाई की जाती है।

कलम द्वारा अंगूर की खेती का तरीका :-

अंगूर एक बेलीय पौधा होता है इसकी रोपाई कलम द्वारा की जाती है। अंगूर के बेल से कलम की कटिंग कर कलम द्वारा इसकी बेलों को रोपा जाता है। जनवरी के महीने में अंगूर की बलों की टहनियों में काट छांट की जाती है जिससे पुराने पौधो में नए पीको का विकास होता है और नई टहनिया निकल आती है। और काट छांट से निकली टहनियों से कलमें ली जाती हैं।

कलमें सदैव स्वस्थ एवं परिपक्व टहनियों से लिए जाने चाहिए। सामान्यत 4 – 6 गांठों वाली 23 – 45 से.मी. लंबी कलमें ली जाती हैं। कलम बनाते समय यह ध्यान रखें कि कलम का नीचे का कट गांठ के ठीक नीचे होना चाहिए एवं ऊपर का कट तिरछा होना चाहिए। इन कलमों को अच्छी प्रकार से तैयार कर सतह से ऊंची क्यारियों में लगा दी जाती है। एक साल पुरानी जड़ यूक्त कलमों को जनवरी माह में नर्सरी से निकल कर खेत में रोपाई कर देते हैं।

अंगूर की बेलों की रोपाई करने का तरीका :-

अंगूर की बेलों की रोपाई करने से पहले मिट्टी की जांच अवश्य करवानी चाहिए। खेत को साफ सुथरा करें और कलटीवेटर की सहायता से समतल कर खेत को तैयार कर लें। बेल की बीच की दूरी किस्म विशेष एवं साधने की पद्धति पर निर्भर करती है।

इन सभी चीजों को ध्यान में रख कर 90 & 90 से.मी. आकर के गड्ढे खोदने के बाद उन्हें 1/2 भाग मिट्टी, 1/2 भाग गोबर की सड़ी हुई खाद एवं 30 ग्राम क्लोरिपाईरीफास, 1 कि.ग्रा. सुपर फास्फेट व 500 ग्राम पोटेशियम सल्फेट आदि को अच्छी तरह मिलाकर भर दें। जनवरी माह में इन गड्ढों में 1 साल पुरानी जड़वाली कलमों को लगा दें। बेल लगाने के तुंरत बाद पानी की सिंचाई अवश्य करना चाहिए।

अंगूर की बेला को बढऩे की दिशा कैसे दें :-

अंगूर की बेलों से लगातार अच्छी फसल लेने के लिए अंगूर की बढ़ती बेलाओं की काट छांट करना और बेलों से निकली नई टेनियों को फैलाने की आवश्यकता होती है। अंगूर की बेला का जितने उचित तैरीके से फैलाव होगा अंगूर के बेल उतने ही अधिक पुदावार देगी और अच्छी फसल होगी। बेल को उचित आकर देने के लिए इसके अनचाहे भाग के काटने को साधना कहते हैं, एवं बेल में फल लगने वाली शाखाओं को सामान्य रूप से फेलाव करने के लिए बेला की टहनियों के किसी भी हिस्से की छंटनी को छंटाई कहते हैं।

अंगूर की बेल फैलाने की पद्धति:-

अंगूर की बेल को फैलाने के लिए पंडाल, बाबर, टेलीफोन, निफिन एवं हैड आदि पद्धतियां उपयोग की जाती है। लेकिन ज्यादात्तर पारंपरिक पंडाल पद्धति ही अधिक उपयोगी साबित हुई है। पंडाल पद्धति द्वारा बेलों को साधने हेतु 2.1 – 2.5 मीटर ऊंचाई पर कंक्रीट के खंभों के सहारे लगी तारों के जाल पर बेलों को फैलाया जाता है।

जाल तक पहुंचने के लिए केवल एक ही तना बना दिया जाता है। तारों के जाल पर पहुंचने पर तने को काट दिया जाता है ताकि पाश्र्व शाखाएं उग आयें। उगी हुई प्राथमिक शाखाओं पर सभी दिशाओं में 60 सेमी दूसरी पाश्र्व शाखाओं के रूप में विकसित किया जाता है। इस तरह द्वितीयक शाखाओं से 8-10 तृतीयक शाखाएं विकसित होंगी इन्हीं शाखाओं पर फल लगते हैं।

अंगूर की बेलों की कटाई-छांटाई का उपयुक्त समय :-

अंगूर की बेलों से लगातार एवं अच्छी फसल लेने के लिए उनकी उचित समय पर कटाई-छांटाई करने की आवश्यकता होती है। जब बेल अच्छी तरह से फैलने लगे तो छंटाई की जा सकती है, लेकिन कोंपले फूटने से पहले कटाई-छांटाई की प्रक्रिया पूरी कर लेनी चाहिए। अंगूर की बलों के कटाई-छांटाई जनवरी माह में की जाती है।

छंटाई की प्रक्रिया में बेल के जिस भाग में फल लगें हों, उसके बढ़े हुए भाग को कुछ हद तक काट देते हैं। यह किस्म विशेष पर निर्भर करता है। किस्म के अनुसार कुछ स्पर को केवल एक अथवा दो आंख छोडक़र शेष को काट देना चाहिए। इन्हें रिनिवल स्पर कहते हैं। आमतौर पर जिन शाखाओं पर फल लग चुके हों उन्हें ही रिनिवल स्पर के रूप में रखते हैं। छंटाई करते समय रोगयुक्त एवं मुरझाई हुई शाखाओं को हटा दें एवं बेलों पर ब्लाईटोक्स 0.2 प्रतिशत का छिडक़ाव अवश्य करें।

अंगूर की खेती में सिंचाई का तरीका :-

अंगूर की बेल की छंटाई के बाद मार्च से मई महा में सिंचाई की आवश्यकता होती है। फूल आने और पूरा फल बनने तक पानी की सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसके सिंचाई कार्य में तापमान तथा पर्यावरण स्थितियों को ध्यान में रखते हुए 7-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। फल पकने की प्रक्रिया शुरू होते ही पानी की सिंचाई बंद कर देना चाहिए । नहीं तो पानी की अधिकता की वजह से फल फट एवं सड़ सकते हैं। फलों की तुड़ाई के बाद भी एक सिंचाई जरूर कर देनी चाहिए।

अंगूर की खेती में खाद एवं उर्वरक डालने का तरीका :-

पंडाल पद्धति से फैलाई गई एवं 3 & 3 मी. की दूरी पर लगाई गई अंगूर की 5 वर्ष की बेल में लगभग 500 ग्राम नाइट्रोजन, 700 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश, 700 ग्राम पोटेशियम सल्फेट एवं 50 – 60 कि.ग्रा. गोबर की खाद की जरूरत होती है। छंटाई के तुंरत बाद जनवरी के अंतिम सप्ताह में नाइट्रोजन एवं पोटाश की आधी मात्र एवं फास्फोरस की सारी मात्रा डाल देनी चाहिए। शेष मात्रा फल लगने के बाद डालनी चाहिए। खाद एवं उर्वरकों को अच्छी तरह मिट्टी में मिलाने के बाद तुंरत सिंचाई करना चाहिए। खाद को मुख्य तने से दूर 15-20 सेमी गहराई पर डालना चाहिए।

अंगूर के फल में गुणवत्ता में सधार कैसे करें :-

अच्छी किस्म के अंगूर के गुच्छे माध्यम आकर या मध्यम से बड़े आकर के हल्के पीले बीजरहित दाने वाले विशिष्ट रंग, खुशबू, स्वादिष्ट रसीले मीठे अंगूर की मार्केट में बहुत डिमांड होती है। ये विशेषताएं अंगूर की किस्म विशेष पर निर्भर करती हैं। लेकिन नीचे दी गई पद्धतियों द्वारा भी अंगूर की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है।

अंगूर की फसल निर्धारण :-

फसल निर्धारण के छंटाई सर्वाधिक सस्ता एवं सरल साधन है। अधिक फल, गुणवत्ता एवं पकने की प्रक्रिया पर बुरा प्रभाव छोड़ते हैं। अत: बेहतर हो यदि बाबर पद्धति साधित बेलों पर 60 – 70 एवं हैड पद्धति पर साधित बेलों पर 12 – 15 गुच्छे छोड़े जाएं। अत: फल लगने के तुंरत बाद संख्या से अधिक गुच्छों को निकाल दें।

अंगूर की फसल में छल्ला विधि :-

इस तकनीक में बेल के किसी भाग, शाखा, लता, उपशाखा या तना से 0.5 से.मी. चौड़ाई की छाल छल्ले के रूप में उतार ली जाती है। छाल कब उतारी जाये यह उद्देश्य पर निर्भर करता है। अधिक फल लेने के लिए फूल खिलने के एक सप्ताह पूर्व, फल के आकर में सुधार लाने के लिए फल लगने के तुंरत बाद और बेहतर आकर्षक रंग के लिए फल पकना शुरू होने के समय छाल उतारनी चाहिए। आमतौर पर छाल मुख्य तने पर 0.5 से.मी चौड़ी फल लगते ही तुंरत उतारनी चाहिए।

वृद्धि नियंत्रकों का उपयोग :-

बीज रहित किस्मों में जिब्बरेलिक एसिड का प्रयोग करने से दानों का आकर दो गुना होता है। पूसा सीडलेस किस्म में पुरे फूल आने पर 45 पी.पी.एम. 450 मि.ग्रा. प्रति 10 ली. पानी में, ब्यूटी सीडलेस मने आधा फूल खिलने पर 45 पी.पी.एम. एवं परलेट किस्म में भी आधे फूल खिलने पर 30 पी.पी.एम का प्रयोग करना चाहिए।

जिब्बरेलिक एसिड के घोल का या तो छिडक़ाव किया जाता है या फिर गुच्छों को आधे मिनट तक इस घोल में डुबाया जाता है। यदि गुच्छों को 500 पी.पी.एम 5 मिली। प्रति 10 लीटर पानी में इथेफोन में डुबाया जाए तो फलों में अम्लता की कमी आती है। फल जल्दी पकते हैं एवं रंगीन किस्मों में दानों पर रंग में सुधार आता है। यदि जनवरी के प्रारंभ में डोरमैक्स 3 का छिडक़ाव कर दिया जाये तो अंगूर 1 – 2 सप्ताह जल्दी पक सकते हैं।

फल तुड़ाई एवं पैकिंग कैसे करें :-

अंगूर तोडऩे के बाद पकते नहीं हैं, अत: जब खाने योग्य हो जाये अथवा बाजार में बेचना हो तो उसी समय तोडऩा चाहिए। फलों की तुड़ाई प्रात: काल या सायंकाल में करनी चाहिए। उचित कीमत लेने के लिए गुच्छों का वर्गीकरण करें। पैकिंग के पूर्व गुच्छों से टूटे एवं गले सड़े दानों को निकाल दें। अंगूर के अच्छे रख-रखाव वाले बाग से तीन वर्ष बाद फल मिलना शुरू हो जाते हैं और 2 – 3 दशक तक फल प्राप्त किये जा सकते हैं।

परलेट किस्म के 14 – 15 साल के बगीचे से 30 – 35 टन एवं पूसा सीडलेस से 15 – 20 टन प्रति हैक्टेयर फल लिया जा सकता है।
अंगूर की बागवानी किसानों के लिए फायेदेमंद होती है। किसान एक बार महेन्त कर अधिक मात्रा में फल प्राप्त कर मुनाफा कमा सकते है। कभी सही तरीके से अंगूर की खेती की जाये तो लाखों का मुनाफा होता है।