The magic of juicy grains will make you richAnar ki Khaiti

अनार एक बहुत स्वादिष्ट दानेदार रसीला फल होता है। इसकी खेती पूरे भारत में की जाती है। अनार की खेती के लिए भारत केा विश्व में प्रथम स्थान प्राप्त है। यहां पर इसकी बड़े पैमाने पर की जाती है। अनार के पौधे देखने में बहुत खुबसुरत नजर आते है जब इसमें फल लगते है तो हरे हरे पत्तों में गुलाबी फल से लदे पेड़ बहुत सुन्दर लगते है। सुन्दरता के साथ इसकी खेती कर लाखो का मुनाफा कमाया जा सकता है किसान अनार की खेती कर दुगना चौगुना लाभ उठा सकते है उन्नत तकनीक का उपयोग कर अनार की खेती से ज्यादा से ज्यादा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

अनार एक बहुत ही महत्वपूर्ण फल है यह सर्दीयों के सीजन में मिलने वाला फल है ये सेहत के लिए भी बहुत गुणकारी होता है। यह कई प्रकार के रोगों को दुर करता है है। अनार के फलों को खाकर दिल संबंधी कई बीमारियों से बचाने में सहायक होते है। अनार में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट कोशिकाओं को नुकसान से बचाते हैं और सूजन को कम करते हैं।

आनार के सेवन से खुन की कमी को दुर किया जा सकता है। अनार में कैलोरी के साथ ही विटामिन सी और फाइबर की मात्रा शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक होता है। अनार में मौजूद फाइबर वजन घटाने में मदद करता है। अनार में मौजूद विटामिन सी, एंटी-एजिंग का काम करता है।

अनार में मौजूद पोटैशियम और फाइबर हार्ट के लिए फायदेमंद होते हैं। अनार में मौजूद विटामिन सी, के, और बी5 के साथ-साथ पोटैशियम और मैंगनीज जैसे मिनरल्स भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। अनार में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट कैंसर के कारकों को भी दूर करते हैं। अनार में मौजूद कंपाउंड हार्ट को हेल्दी रखने के साथ कई बीमारियों को दूर रखता हैं।

अनार खाने से इम्यूनिटी मज़बूत होती है, अनार खाने से पाचन-तंत्र भी हेल्दी रहता है। फलों को दिनचर्या में शामिल कर शरीर में प्रोटीन व फाइबर सहित अन्य पोषक तत्वों की कमी को पूरा किया जा सकता है।

अनार एक ऐसा फल होता है जिसको खाना कर कोई खाना पंसद करता है। इसलिए मार्केट में अनार की डिमांड सालों साल बनी रहती है। किसान चाहे तो अनार की खेती कर के सालों साल लाभ कमा सकते है।

अनार की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु :-

अनार उपोष्ण जलवायु में उत्पन्न होने वाला पौधा है। यह अर्द्ध शुष्क जलवायु में अच्छी तरह लगाया जा सकता है। अनार के फलों विकास एवं पकने के समय गर्म एवं शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। लम्बे समय तक उच्च तापमान रहने से फलों में मिठास बड़ती है। आर्द्र जलवायु का फलों की गुणवत्ता पर असर पढ़ता है। एवं फफूॅंद जनक रोगों का प्रकोप भी बढ़ जाता है। अदर््ध शुष्क जलवायु में अनार के पौधे अच्छी तरह से पनपते है।

अनार की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी :-

अनार की खेती सभी प्रकार की मिट्टीयों में की जा सकती है। लेकिन अच्छे जल निकास वाली रेतीेली दोमट मिट्टी अनार के लिए सर्वोतम होती है। फलों की गुणवत्ता एवं रंग भारी मृदाओं जैसे जलोढ़ मिट्टी, उष्णकटिबंधीय शुष्क भूरी मिट्टी, चिकनी मिट्टी, लाल मिट्टी की अपेक्षा हल्की मृदाओं में अच्छी होता है। अनार के लिए मिट्टी लवणीयता 9.00 ई.सी./मि.ली. एवं क्षारीयता 6.78 ई.एस.पी. तक सहन कर सकने वाली होनी चाहिए।

अनार की रोपाई का उपयुक्त तरीका :-

अनार की रोपाई कलम द्वारा- एक वर्ष पुरानी शाखाओं से 20-30 से.मी.लम्बी कलमें काटकर पौध शाला में लगा दी जाती हैं। इन्डोल ब्यूटारिक अम्ल (आई.बी.ए.) 3000 पी.पी.एम. से कलमों को उपचारित करने से जड़ें शीघ्र एवं अधिक संख्या में निकलती हैं।
गूटी द्वारा-अनार का व्यावसायिक प्रर्वधन गूटी द्वारा किया जाता है।

इस विधि में जुलाई-अगस्त में एक वर्ष पुरानी पेन्सिल समान मोटाई वाली स्वस्थ, ओजस्वी, परिपक्व, 45-60 से.मी. लम्बाई की शाखा का चयन करें । चुनी गई शाखा से कलिका के नीचे 3 से.मी. चौड़ी गोलाई में छाल पूर्णरूप से अलग कर दें। छाल निकाली गई शाखा के ऊपरी भाग में आई. बी.ए.10,000 पी.पी.एम. का लेप लगाकर नमी युक्त स्फेगनम मास चारों और लगाकर पॉलीथीन शीट से पकडक़र सुतली से बाँध दें। जब पालीथीन से जड़े दिखाई देने लगें उस समय शाखा को स्केटियर से काटकर क्यारी या गमलो में लगा दें।

अनार के पौधे रोपण करने की विधी :-

पौध रोपण की आपसी दूरी मिट्टी के प्रकार एवं जलवायु पर निर्भर करती है। सामान्यत: 5-5 मीटर की दूरी पर अनार के पौधों की रोपाई की जाती है। सघन रोपाई करने के लिए 2 एकड़ भूमि में 5-5 मीटर की दूरी पर अधिकतम 1000अधिकतम पौधों की रोपाई की जा सकती है। 1 एकड़ भूमि में 5-5 मीटर लगभग 500 पौधों का की रोपाई की जानी चाहिए।

पौधों के 5 मीटर की दुरी के अन्तराल पर रोपण किया जा सकता है। पौधा रोपण करने के एक माह पूर्व 60 सेमी. लम्बाई, 60 सेमी. चौड़ाई, 60 सेमी. गहराई आकार के गड्ढे खोद कर तैयार कर लें। इन गड्डों को 15 दिनों के लिए खुला छोड़ देना चाहिए। इसके बाद गड्डे की ऊपरी मिट्टी में 20 किग्रा. सड़ी हुई गोबर की खाद 1 किग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट .50 ग्राम क्लोरो पायरीफास चूर्ण मिट्टी में मिलाकर गड्डों को सतह से 15 सेमी. ऊंचाई तक भर देना चाहिए।

गड्डे भरने के बाद सिंचाई करें ताकि मिट्टी अच्छी तरह से जम जाए इसके बाद पौधों की रोपाई करें। रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई कर देनी चाहिए जिससे पौधों की जड़ों में मिट्टी अच्छी तरह से समा जाएगी और सुबह तक पौधों की पत्तियां खिल उठेंगी।

अनार में खाद एवं उर्वरक का उपयोग :-

अनार के पत्ते गिरने के एक सप्ताह बाद या 80-85 प्रतिशत पत्तियों के गिरने के बाद पौधें की आयु बड़ाने के लिए खाद एवं उर्वरक को पौधों की आयु के अनुसार देना होता है। अनार के पौधों में कार्बनिक खाद एवं नाइट्रोजन, फॅास्फोरस और पोटाश का प्रयोग करें।

सड़ी हुई गोबर की खाद नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटाश की दर को मृदा परीक्षण तथा पत्ती विश्लेषण के आधार पर उपयोग करें। अनार के पौधों में खाद एवं उर्वरकों का उपयोग पौधों की जड़ो के पास नीचे चारों ओर 8-10 सेमी.गहरी गड्डा बनाकर खाद डालना चाहिए।

नाइट्रोजन एवं पोटाश युक्त उर्वरकों को तीन हिस्सों में बांट कर पहली खुराक सिंचाई के समय या पत्तियों झडऩे के बाद और दूसरी खुराक पहली खुराक के 3-4 सप्ताह बाद देनी चाहिए। फॉस्फोरस की पूरी खाद को पहली सिंचाई के समय दें।

पौधो को विकसीत करने के लिए काली मिट्टी में यूरिया एवं लाल मिट्टी में कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट का उपयोग करें, फॉस्फोरस की आपूर्ति के लिए सिंगल सुपर फास्फेट एवं पोटाश की आपूर्ति के लिए म्यूरेट ऑफ पोटाश का उपयोग करें।

जिंक,आयरन,मैगनीज तथा बोरान की 25 ग्राम की मात्रा प्रति पौधे में सड़ी गोबर की खाद के साथ मिलाकर डालें, सूक्ष्म पोषक तत्व की मात्रा का निर्धारण मिट्टी तथा पत्ती परीक्षण करने के बाद करें।

जब पौधों पर फू ल आना शुरू हो जाएं तो उसमें नत्रजन फॉस्फोरस: पोटाश-12:61:00 को 8 किलो/हेक्टेयर की दर से एक दिन के अंराल पर एक महीने तक देना चाहिए।

जब पौधों में फल लगने शुरू हो जाएं तो नत्रजन:फॉस्फोरस:पोटाश-19:19:19 को ड्रिप की सहायता से 8 कि.ग्रा./हैक्टेयर की दर से एक दिन के अंतराल पर एक महीने तक देनी चाहिए।

जब पौधों पर शत प्रतिशत फल आ जाएं तो नत्रजन: फॉस्फोरस: पोटाश 00:52:34 या मोनोपोटेशियम फास्फेट 2.5 किलो/हेक्टेयर की मात्रा को एक दिन के अन्तराल पर एक महीने तक देनी चाहिए।

फल की तुड़ाई के एक महीने पहले कैल्शियम नाइट्रेट की 12.5 किलो ग्राम/हेक्टेयर की मात्रा ड्रिप की सहायता से 15 दिनों के अंतराल पर दो बार जरूर देना चाहिए।

अनार की खेती में सिंचाई का तरीका :-

अनार उपोष्ण जलवायु में उत्पन्न होने वाला पौधा है। अनार के पौध मेें शुष्क सहनशीलता होती है। लेकिन अच्छे उत्पादन के लिए अनार के पौधों में भी सिंचाई आवश्यकता होती है। मृग बहार के मौसम की फसल लेने के लिए सिंचाई मई के मध्य से शुरु करके मानसून आने तक नियमित रूप से सिंचाई करना जरूरी होता है।

बारिश का मौसम शुरू होने के बाद फलों के अच्छे विकास हेतु नियमित सिंचाई 10-12 दिन के अन्तराल पर करना आवश्यक है। ड्रिप सिंचाई अनार के लिए बहुत उपयुक्त मानी जाती है। इसमें 45 प्रतिशत पानी की बचत एवं 30-40 प्रतिशत उपज के उत्पादन में वृद्धि होती है। ड्रिप पद्धति द्वारा सिंचाई मौसम के अनुरूप और पौधों को पानी की आवश्यकता हिसाब से करनी चाहिए।

अनार में छटाई की उपयुक्त पद्धतियां :-

अनार की खेती में छटाई का बहुत महत्व होता है। अनार के पौधों की छटाई करने से पौधों की टहनिया अच्छी तरह से फै लती है और पौधे जितने घने फैलेगें उतने की फूल पौधों में आऐगें और उतने अधिक फल बैठेगें और उत्पादन में इजाफा होगा। अनार की दो प्रकार से छटाई की जा सकती है।

1 तना पद्धति – इस पद्धति में एक तने को छोडक़र बाकी सभी बाहरी टहनियों को छांट दिया जाता है। इस पद्धति में जमीन की सतह से अधिक पीके निकलते हैं। जिससे पौधा झाड़ीनुमा हो जाता है। इस विधि में तना छेदक का अधिक रोग का प्रकोप अधिक होता है। यह पद्धति व्यावसायिक उत्पादन के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती है।

2 बहु तना पद्धति – इस पद्धति में अनार के पेड़ को इस प्रकार छांटा जाता है कि इसमे तीन से चार तने छूटे रह जाएं बाकी टहनियों को काट दिया जाता है। इस तरह छांटे गए तनें में प्रकाश अच्छी तरह से पहुंच पाता है जिससे फूल व फल अधिक बैठते है और उपज अच्छी होती है।

अनार के पौधों की कॉट-छॉट कैसे करें :-

ऐसे बगीचे में जहाँ पर ऑइली स्पाट का प्रकोप ज्यादा दिखाई दे रहा हो वहाँ पर फल की तुड़ाई के तुरन्त बाद गहरी छँटाई करनी चाहिए तथा ऑइली स्पाट संक्रमित सभी शाखों को काट देना चाहिए।

अनार के पौधे के जिस भाग में संक्रमण हुआ है उस भाग के 2 इंच नीचे तक छँटाई कर देनी चाहिए। तनों पर बने सभी कैंकर को गहराई से छिल कर निकाल देना चाहिए। छँटाई के बाद 10 प्रतिशत बोर्डो पेस्ट को कटे हुऐ भाग पर लगायें। बारिश के समय में छँटाई के बाद तेल युक्त कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड + 1 लीटर अलसी का तेल) का उपयोग करें।

जिन पौधों में संक्रमण अधिक हो गया है उन पौधों को जड़ से उखाड़ कर जला देना चाहिए और उनकी जगह नये स्वस्थ पौधों की रोपाई करनी चाहिए। या संक्रमित पौधों को जमीन से 2-3 इंच छोडक़र काट देना चाहिए ताकि नये अंकुरण के पीको को नये तरीके से प्रबन्धित करें।

रोगमुक्त बगीचे में सुखी टहनियां और पीली पत्तियों की जरूरत के हिसाब से छांटनी करें जिससे पौधों में पीको का अंकुरण अच्छी तरह से हो सकें। छँटाई के तुरन्त बाद बोर्डो मिश्रण (1प्रतिशत) का छिडक़ाव जरूर करना चाहिए।

रेस्ट पीरियड के बाद पौधों से पत्तों को गिराने के लिए इथरैल (39 प्रतिशत एस.सी.) 2-2.5 मि.ली./लीटर की दर से मिट्टी में नमी के आधार पर उपयोग करना चाहिए। अनार के पौधे से गिरे हुए पत्तों को इकठ्ठा करके जला देना चाहिए। ब्लीचिंग पावडर के घोल (25 कि.ग्रा./1000 लीटर/हेक्टेयर) से पौधे के नीचे की मिट्टी को तर कर देना चाहिए।

अनार के पौधों में सिंचाई का उपयुक्त समय :-

अनार में वर्ष मे तीन बार जून-जुलाई (मृग बहार), सितम्बर-अक्टूबर (हस्त बहार) एवं जनवरी-फरवरी (अम्बे बहार) में फूल आते हैं। व्यवसायिक रूप से केवल एक बार की फसल ली जाती है। और इसका निर्धारण पानी की उपलब्धता एवं बाजार की मांग के अनुसार किया जाता है।

जिन क्षेत्रों मे सिंचाई की सुविधा नही होती है, वहाँ मृग बहार से फल लिये जाते हैं। तथा जिन क्षेत्रों में सिचाई की सुविधा होती है वहॉ फल अम्बें बहार से लिए जाते हैं। बहार नियंत्रण के लिए जिस बहार से फल लेने हो उसके फूल आने से दो माह पूर्व सिचाई बन्द कर देनी चाहिये।

अनार की खेती से प्राप्त उपज :-

अनार के पौधे रोपण के 2-3 साल के बाद फल देना शुरू कर देते हैं। लेकिन व्यावसायिक रूप से उत्पादन रोपाई के 4-5 सालों के बाद ही लेना चाहिए। अच्छी तरह से विकसित पौधा 60-80 फल प्रति वर्ष 30-35 वर्षो देता रहता है। किसान अनार की खेती एक बार करके 30 से 40 वर्षो तक आमदानी उठा सकते है।

अनार की बाजार में अच्छी मांग है और किसान अच्छी उपज से लाखों की कमाई कर सकते है। मार्केट के 666 रूपये क्विटल से 700 रूपये क्विटल तक अपनी उपज बेचकर लाभ का सौदा कमा सकते है। किसानों के लिए अनार की खेती लाभ का धंधा सिद्ध होती है। क्योंकि इसमें एक बार की महेन्त पर सालों तक मुनाफा मिलता है। अच्छी तकनीक से लगाई गई अनार की खेती से किसान दिन दुगना मुनाफा कमा सकते है। और अपनी आय में व़द्धि कर सकते है।