What is the truth behind relationships falling apart with time?Editorial

कहते हैं वक्त बदलता हैं तो तकदीर भी बदल जाती हैं। इंसान यूहीं आगे बड़ता जाता हैं। कभी-कभी रास्तें के बहुत किमती चींज भी छुट जाती हैं। लेकिन इसका एहसास इंसान को जब होता हैं, जब वो तन्हा होता हैं।

आज इंसान प्रगति की दोड़ में इस तरह से आगे निकल गया हैं। इस दोड़ में वो अपने अपनों को भी पीछे छोड़ता चला जा रहा हैं। पहले हर इंसान का एक सयुक्त परिवार होता था, जिसमें दादा-दादी, मम्मी-पापा ताया-ताई, चाचा-चाची उनके बच्चें सब मिलकर एक बड़ा परिवार बनता था। सब साथ में रहते थे। घर का एक बड़ा परिवार का मुख्या कहलाता था। जिसके जिम्मे परिवार का हर छोटे-बड़े फैसले लेने का हक होता था। संयुक्त परिवार वो होता था जो परिवार के सभी सदस्यों को जोड़े रखता था। परिवार को किसी भी हाल में बिखरने नहीं देता था।
आज का इंसान वक्त के साथ बहुत दूर निकल गया हैं। एक तरह से उसका परिवार तो पिछे ही कहीं छुट गया हैं। यहीं वजह हैं जो आज संयुक्त परिवार टुटते जा रहें हैं। और उनकी जगह एकल परिवार लेते जा रहें हैं। मेरे ख्याल से एकल परिवार वो होते है जिसमें कोई खुशियां नहीं होती हैं। पहले बच्चों की परवरिश आया नहीं बल्कि अपनी दादी की गोद में हुआ करती थी। अपने दादा-दादी के मिले संस्कारों के साए में वो बड़े होते थे।

पहले परिवार वो होता था जिसमें घर के सभी सदस्य आपसी सहयोग और प्रेम और भाईचारे के साथ रहते थे। घर के बड़ों से बच्चें संस्कार सिखते थे। परिवार एक मर्यादा होती थी जिसका सब सम्मान करते थे।

हमारे देश में प्राचीन काल से ही संयुक्त परिवार होते थे। संयुक्त परिवार में परिवार के सदस्यों को वृद्धों का सहयोग मिलता था। उनके अनुभावों के साये में परिवार के बच्चों का सम्पूर्ण विकास होता था। अपने घर के बुजूर्गाे के अनुभव और ज्ञान से युवा व बाल पीढ़ी लाभ प्राप्त करती हैं। घर के बुजूर्गो का घर में सम्मान होता था। इससे परिवार में अनुशासन व आदर का माहौल हमेशा बना रहता था।

लेकिन बदलते समय में इंसान की जिन्दगी में रहने सहने का तरीका ही नहीं बदला बल्कि अधुनिकता के इस दौर में संयुक्त परिवार का अस्तित्व धीरे-धीरे खतम होता चला गया। एकांकी परिवारों की जीवनशैली के आदि हो चुके इंसान को अधुनिकता ने बचपन से ही दादा-दादी और नाना-नानी की गोद से छीनकर मोबाईल की अंधेरी दुनिया में ढकेल दिया। जहां की चकाचौद में खौ कर आज इंसान बचपन में की अपने भविष्य को बरबाद करने में लग गया हैं।

पहले संयुक्त परिवार में एक बच्चे की परवरिश माँ के आंचल की छांव में खेलने व लोरी सुनने से होती थी। लेकिन आज बच्चें के लिए माँ के आंचल की छांव से ज्यादा मोबाइल और टीवी ने ले ली हैं।

किसी ने सच कहा है। परिवार से बड़ा कोई धन नहीं होता है। पिता से बड़ा कोई सलाहकार नहीं, मां के आंचल से बड़ी कोई दुनिया नहीं, भाई से अच्छा कोई भागीदार नहीं, बहन से बड़ा कोई शुभचिंतक नहीं होता हैं। इसलिए एक इंसान के लिए परिवार के बिना जीवन की कल्पना करना बहुत कठिन होता है। एक अच्छे परिवार में रहकर ही इंसान का जीवन के गुण सिखता हैं। और अनुभवों के आधार पर ही अपने जीवन में सफलता की नई-नई ऊंचाईयों को छुता हैं।

आज के दौर में संयुक्त परिवार के टुटने की सबसे बड़ी वजह गांवों के लोगों का रोजगार की तलाश में शहरों की तरफ आने से हो रहा है। बच्चें रोजगार की तलाश में या पढऩे के लिए शहर आते वहीं के होकर रह जाते हैं। फिर वो पीछे मुडक़र अपने परिवार की तरफ नहीं देखते है। माँ-बाप के प्यार, त्याग अपनेपन सबको भुल जाते हैं। बस दौलत की लालच की उनकी आंखों में शेष रह जाती है।

आज के दौर में संयुक्त परिवार के टुटने का एक बहुत बड़ा करण नई पीढ़ी के विचार भी हैं। जो किसी से दब कर रहना अपनी शान के खिलाफ समझती हैं। चाहे वो इंसान जिसका उसे सम्मान करना हैं। वो उसका वो पिता ही क्यों न हो जिसने उसको पालने और उसके ख्वावों को पुरा करने में अपना पुरा जीवन तपती धुप में जला दिया हो। आज का इंसान शादी के बाद अपनी अलग दुनिया बसाने में विश्वास करता हैं। मां के आँचल की छांव उसे याद नहीं रहती। मां का उसके लिए रातों का जागना वो सब भुल जाता हैं।

आज की नई पीढ़ी और बुजुर्गो के विचार मेल नहीं खा पाते। बुजुर्ग पुराने जमाने के अनुसार जीना पसंद करते हैं तो युवा वर्ग आज का स्टाइलिश जीवन जीना चाहता हैं। दोनो की अपने विचारों के बिच संतुलन नही बिठा पाते है संयुक्त परिवार के टूटने का कारण बनती है।
लेकिन ये सच जब तक इंसान के जीवन में अपने बुजर्गो का सम्मान नहीं होगा। उसकी जिन्दगी यूहीं दिशाहीन रहेगी। और वो अधुनिकता के इस दौर में खो कर वो अपने संस्कार जो उसके जीवन की सबसे बड़ी जमा पंूजी होती उसे कहीं खो देगा।

चाहे वो अपनी जिन्दगी कितनी ही तरक्की कर ले पर मन का सुकून कभी नहीं पा सकता हैं। क्योंकि अपनों के प्यार के बीना इंसान का जीवन अधुरा होता हैं। ये सच है इंसान अपनों के साथ रहकर सुखी रोटी भी खाता हैं। तो ये उसके लिए सुकून भरा पल होता है। लेकिन अपनों से दूर सोने के निवाले खाना भी तकलीफ दे होता हैं।

अब भी वक्त इंसान को अपने रिश्तों को टुटने से बचाना होगा। और अपने बच्चों को फिर से मुबाईल के अन सुलझे जाल से निकाल कर माँ का आँचल और दादा-दादी, नाना-नानी की गोद में लाना होगा। तभी हम हमारे देश को आगे चलकर एक संस्कारी पीढ़ी दे पाएगें नहीं तो अधुनिकता के इस दौर में भटककर दौलत सम्मान और कामयाबी की नई-नई ऊंचाईयों को तो छू लेगें अपने अनुभवों को अपनी आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाने के काबिल नहीं रह पाएगें। क्योंकि आज हम अपने बड़ों का सम्मान नहीं करेगेें तो आगे चलकर हमारे बच्चों से हम ये उम्मीद नहीं रख सकते वो हमारा सम्मान करें।