We didn't get freedom just like that, there are millions who are bathed in blood...Editorial Yunihi nahi mili hai azadi

कैसा था उस वक्त का भारत? देश के हर नागरिक के दिल में अपने देश को गुलामी की जंजीरों से आजाद करने का जूनुन सा भरा था। हर आंख में एक ही सपना था अपने देश को अंग्रेजी हुकुमत से आजादी दिलाने का। कैसे थे वो लोग जिनकी रांगों में ये सपना खुन बनकर दौड़ रहा था? फिर ये दिवाने अंग्रेजों के किसी अत्याचार से नहीं डरें। अंग्रेजों के सामने सीनातान के खड़ें हो गए। और सीने पर गोली खाई। फांसी के फंदें पर हंसते-हंसते झुल गए। तौपों के सामने भी जिनके हौसले बुलंद ही रहें। कैसे थे वो दिलदार जो अपनी जान लुटाकर अपने देश की आन बान शान बढ़ा गए।

जिन्दगी सबको बहुत प्यारी होती हैं। वक्त से पहले कोई नहीं मरना चाहता हैं। कभी कोई किसी से कह दें। तुम्हारी मौत उस दिशा में खड़ी तुम्हारा इंतजार कर रही है। इंसान भुलकर भी उस दिशा में कदम नहीं बढ़ाएगा। क्योंकि ये जिन्दगी के प्रति उसकी महोब्बत हैं जो उसे उस दिशा में आगें बढऩे ही नहीं देती हैं।

लेकिन ये सोचने वाली बात है कैसे थे वो आजादी के दिवाने जो अपनी भारत माता को गुलामी की जंजीरों से आजाद करने के लिए अपना सब कुछ अपनी माँ के कदमों में हंसते-हंसते निसार कर गए। और अपने लबों पर ऊफ तक नहीं लाएं।

कैसा था उस वक्त का भारत? देश के हर नागरिक के दिल में अपने देश को गुलामी की जंजीरों से आजाद करने का जूनुन सा भरा था। हर आंख में एक ही सपना था अपने देश को अंग्रेजी हुकुमत से आजादी दिलाने का। कैसे थे वो लोग जिनकी रांगों में ये सपना खुन बनकर दौड़ रहा था? फिर ये दिवाने अंग्रेजों के किसी अत्याचार से नहीं डरें। अंग्रेजों के सामने सीनातान के खड़ें हो गए। और सीने पर गोली खाई। फांसी के फंदें पर हंसते-हंसते झुल गए। तौपों के सामने भी जिनके हौसले बुलंद ही रहें। कैसे थे वो दिलदार जो अपनी जान लुटाकर अपने देश की आन बान शान बढ़ा गए। और इतिहास के पन्नों में अपना नाम सुनहरी अक्षरों में दर्ज करा गए। कुछ तो ऐसे भी रहें जिनका नाम तक इतिहास में न लिया गया। लेकिन जिस बहादुरी और साहस के साथ इन लोगों ने अपनी जिन्दगी अपने देश पर लुटा दी। वो उन्हें अमर कर गई। ये वो लोग थे जो हमारे दामन को इस आजादी की खुशियों से भर गए जिसमें रहकर आज हम खुशियों के साथ अपनी जिन्दगी जी रहें हैं।

वो जवानी जिसने इश्क का मजा अपनी भारत माता के अग्रोस में मौत से खेलकर लिया वो कुछ ओर थी। कैसा था उन आंखों का सपना जिसके जुनून के आगें अंग्रेजों की अत्याचारों से भरी हुकुमत न टिक सकीं? और जब ये दिवाने घर से अपने सरों पर कफन बंंाधें निकलें तो अंग्रेजों ने अपने परों तले से जमीन खिसकती हुई सी महसूस की। फिर ये यूं बिखरें के लाखों जुल्म करने के बाद भी फिर अपने कदम हमारे देश की धरती पर नहीं जमा पाएं।

आजादी के इन दिवानों को रोकने के लिए अंग्रेजों ने काले पानी की सजा दी। ये अंग्रेजों के बनाई ऐसी जेल थी जहां जिन्दगी मौत की पनाह मागती थी। जहां पर लोगों को तिल तिलकर मारा जाता था। तोपों के मुंह पर बांधकर उन्हें उड़ा दिया गया। फिर भी इन दिवानों के हौसले कम नहीं हुएं। अंग्रेजों की अत्याचार की हद तब हो गई जब इन्होंने आजादी के इन दिवानों के शरीर से खुन निकालकर ब्रिटेन भेजना शुरू कर दिया। ताकि शरीर से कमजोर होने पर इनके हौसले टुट जाएं। लेकिन उस वक्त अंग्रेजों की आंखे थमी सी रह गई जब अपने साथीयों के साथ हो रहें इस जुल्म के बाद भी भारतीय नागरिकों के दिल में अपने देश को आजाद कराने का वैसा ही जज्बा था। खाने की चीजें भी भारतीय नागरिकों न मिल रही थी। छोटे-छोटे बच्चें भुख से अपनी मांओं की गोद में दम तोड़ रहें थे। फिर भी ये उन मांओं का हौसला था वो अपने देश की आजादी की लड़ाई में पुरूषों के साथ कदम से कदम मिला कर खड़ी थी।

फिर वो हुआ जो हर आंखों का सपना था। 1857 की क्रंाति से शुरू हुई आजादी की ये लड़ाई 15 अगस्त 1947 को हमारे देश की आजादी के साथ थमीं। जब अंग्रेजों ने हमारे देश के नागरिकों के हौसले के आगे अपने कदम थाम लिया और हमारा देश आजाद हो गया। लेकिन अपने देश को आजाद कराने सपना देखने वाली वो लाखों आंखे आज जिन्दा नहीं थी। जिन्होंने अपने देश को ये खुशी देने के लिए अपनी भारत माता पर अपना सब कुछ निसार कर गए थे। लेकिन जरूर उस दिन उनकी अत्मा अपने देश की इस खुशी को देख खुश होगी।

आज जब हम शान के साथ अपनी देश की आजादी का 78 वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहें हैं। हर उस भारतीय नागरिक को हमारा नमन हैं। जिसने हमें आजादी का ये जश्न मनाने का ये खुशियों भरा अवसर प्रदान किया। हम अपनी आसूंओं से नम आंखों से देश के इन स्वतंत्रता सैनानियों के खुन की एक बुंद का भी कर्ज नहीं चुका सकते हैं। लेकिन हमारे इन पूवर्जों को हम शत्-शत् नमन करते हैं। जिनके हौसलों के आगें हम कुछ भी नहीं है।

लेखिका- सैयद शबाना अली

Harda (M.P.)