जिन्दगी सबको प्यारी होती है कोई भी इसे खोना नहीं चाहता है। लेकिन जिन्दगी का दामन कब हाथों से छुट जाये किसी को पता नहीं है। आज इंसान ने खुद ने अपनी मौत के इतने सामान बना लिये है। मौत कब इंसान को छु कर निकल जाती है पता ही नहीं चलता है। आज जिन्दगी का ये हाल है सुबह सही सलामत घर से चला इंसान शाम को बखैरियत घर लोट आएगा भरोसा नहीं है।
जिन्दगी का ये रूप देखकर भी इंसान नहीं घबराता है। चला जाता है अपनी मौत का समान इक्टठा करने। इंसान अपनी मौत से कितना बेखबर है न चहा कर भी मौत के करीब चला जाता है। जिन्दगी है जो लाख समझाने की कोशिश करती है लेकिन ये कब मानता है। अपने ही वजूद को मिटाने के लिए कभी प्रकृति के साथ खिलवाड़ करता है तो कभी खुद ऐसी-ऐसी चीजों का अविष्कार कर लेता है जो मिनटों में इंसानी जिन्दगी को मौत के आगोश मे सुला देती है। कितना नादान है ये इंसान अपनी ही मौत से खेल रहा है।
पहले जिन्दगी ऐसी होती थी एक एक जिन्दगी की किमत देखी जाती थी लेकिन आज हजारो लाखों जिन्दगी की भी कोई किमत नहीं रही है। आज दुनिया जिस तरह से युद्ध के गंभीर परिणामों को देख रही है और समझ रही है वो जीवन के लिए एक गंभीर चिन्ता का विषय बनता जा रहा है। चिन्ता भी ऐसी जो इंसान की हस्ती को मिटाने में कामयाब है।
पहले युद्ध एक क्षेत्र तक ही सिमित रहते थे अब युद्धों का असर व्यापक पैमाने पर बड़ा है। पहले जो सियासत में राज करने वाले होते थे वो युद्ध के समय अपने देश की आम जनता के बारे सोचते थे। पुरी तरह से ये ध्यान रखा जाता था कही युद्ध की वजह से मासूम बच्चों और माहिलाओं बुजुर्गों को कोई नुकसान नहीं पहुंचे लेकिन आज का इंसान इतना निर्दय हो गया है मासूम बच्चों को भी नहीं देखता है। और मिनटों में अपनी शान शौकत पर इन मासूमों की बलि चड़ा देता है।
ये किस दिशा में बड़ रहे है हम कभी सोचा है हमने? लेकिन जब हमारे कृत से नराज होकर प्रकृति अपना रूद्ध रूप दिखाती है तो हम डर जाते है। फिर कुदरत के एक बार से हमारी हस्ती यूं मिट जाती है हम खुद नहीं समझ पाते है।
ये सोचने वाली बात है युद्ध से इंसान क्या हासिल कर पाता है। सालों तक एक देश दूसरे देश से लड़ते रहते है फिर अंत में क्या मिलता है। अपने ही देश के नागरिकों की लाशें। बेवक्त ही मौत के आगोश में सौ चुके मासूम बच्चे। जिनमें घायल हो चुके लोगों की तो कोई गिनती ही नहीं है। युद्ध के बाद बचे लोगों के सामने अपना सब कुछ खो जाने के बाद जिन्दगी जीने का एक बहुत बड़ा संघर्ष ही शेष रह जाता है।
क्या हम अब भी नहीं समझेगें क्या इतनी बड़ी दुनिया में महाशक्ति कहलाने वाले देशों के पास इंसान को इस तबाही से बचाने के लिए कोई हल नहीं है। जहां तक देखा गया है सियासत पर राज कर रहे जिन हुकुमरानों के हुकुम से दुनिया भर में युद्ध लड़े जाते है वो निर्दय इंसान तो अपने सोने से बने महल में बैठकर चेन की नींद सौ रहा होता है। और उसके एक इसारे से लाखों जिन्दगिया पल भर में मौत के आगोश में सोने पर मजबूर हो जाती है।
क्या यही इंसानियत बची हमारे पास लाखों लोगों की मौत के बाद भी हम खमोश सब कुछ देखते रहते है। और कुछ करने की कोशिश नहीं करते है जबकि एक इंसान चाहे तो अपनी सकारात्मक विचारों से पुरी दुनिया को बदले की ताकत रखता है लेकिन वहीं बात हम आगे बडऩे की कोशिश तो करें कुछ बदलने का एक प्रयास तो करें लेकिन आज का इंसान अपने इंसानी वजूद को कहां खोता जा रहा है समझमें नहीं आता है। जहां दुनिया की दौड़ में हम खुद को ही कहीं पीछे छोड़ते जा रहे है।
अब भी वक्त है हमें कुछ करने की कोशिश करते रहना चाहिए। और दुनिया में हो रहे इन अनैतिक युद्धों का विरोद्ध करना चाहिए जिसमें मासूम जिन्दगियों की कोई किमत नहीं रही है। आज हमें दुनिया को ये बताने की जरूरत है, नहीं चाहिए हमें ऐसी दुनिया जिसमें इंसान ही इंसान का दुश्मन बन गया है। जिसमें बेजुबान जानवर और पशु पंक्षी की जिन्दगी को यूं बेहर्मी से मिटाया जा रहा है।
वो प्रकृति जिसके आगोश में हम कभी चेन की सांस लेते थे। उसके हरे-भरे आंचल को खाली किया जा रहा है। वो खूबसूरत वादिया हमें धिक्कार रही है जिन्होने युद्ध की वजह से अपने अस्तित्व को खो चुका है। क्या यहीं हमारा वजूद है जिस प्रकृति ने हमें इतने प्यार से पाला आज हम उसको इस तरह से मिटाने की कुछ लोगों की सनक का खुलकर विरोद्ध भी नहीं कर पा रहें है। क्या यूं खमोशी में सब कुछ मिटते हुए देखना सही है ये सोचने वाली बात है?
सैयद शबाना अली
हरदा मध्यप्रदेश