Those freedom fighters who happily sacrificed their lives for their motherlandBharat ke Swatantrata senani

हमारे देश को आजाद हुए एक जमाना गुजर गया। लेकिन आज भी वो नाम हर भारतीय नागरिक के दिलों में महफूज हैं। जिन्होंने हमारे देश का आजादी दिलाने के लिए हंसते-हंसते अपनी जिन्दगी अपनी खुशियों को अपनी भारत माता के चरणों में निछावर कर दी। और ये बात सच कर दी वो लोग मर कर भी हमेशा जिन्दा रहते हैं। जो अपने देश के लिए अपनी जान की परवाह नहीं करते है।
आज जब हम जब अपने देश के 78वां स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी कर रहें तो क्यों ने हम अपने नम आंखों से देश के उन वीर और साहसी स्वतंत्रता सेनानियों को श्रृद्धा सुमन आर्पित करें जिन्होंने हमारे देश को आजादी दिलाने के में अहम भूमिका निभाई और अपनी भारत माता के लिए अपने प्राण तक निछावर कर दियें।

रानी लक्ष्मी बाई

भारत देश के उत्तर में झाँसी नाम की जगह है, यहाँ की रानी लक्ष्मी बाई थी। इनका जन्म महाराष्ट्रियन परिवार में हुआ था। उस समय भारत का गवर्नर डलहौजी था, उसने नियम निकाला कि जिस भी राज्य में राजा नहीं है वहां अंग्रेजों का अधिकार होगा। उस समय रानी लक्ष्मी बाई विधवा थी, उनके पास 1 गोद लिया हुआ बेटा दामोदर था। उन्होंने अंग्रेजो के सामने घुटने टेकने से मना कर दिया और अपनी झाँसी को बचाने के लिए उनके खिलाफ जंग छेड़ दी। मार्च 1858 में अंगेजों से लगातार 2 हफ्ते तक युद्ध किया जो वो हार गई थी। इसके बाद वे ग्वालियर चली गई जहाँ एक बार फिर उनका युद्ध अंग्रेजों से हुआ। 1857 में हुई लड़ाई में रानी लक्ष्मी बाई का विशेष योगदान था। इनका नाम भारत के स्वतंत्रता सेनानी मे बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है।

लाल बहादुर शास्त्री

आजाद भारत के दुसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी थे। शास्त्री जी ने देश की आजादी के लिए भारत छोड़ो आन्दोलन,नामक सत्याग्रह आन्दोलन और असहयोग आन्दोलन में हिस्सा लिया था। ये देश के भारत के स्वतंत्रता सेनानी थे। आजादी के समय उन्होंने 9 साल जेल में भी बिताये। आजादी के बाद वे मिनिस्टर बन गए और फिर 1964 में दुसरे प्रधानमंत्री। 1965 में हुई भारत पाकिस्तान की लड़ाई में उन्होंने मोर्चा संभाला था। जय जवान जय किसान का नारा इन्होंने ही दिया था। 1966 में जब वे विदेश दौरे पर थे तब अचानक दिल का दौरा पडऩे से उनकी म्रत्यु हो गई।

बाल गंगाधर तिलक

स्वराज हमारा जन्म सिध्य अधिकार है और हम इसे लेकर ही रहेंगे। पहली बार यह नारा बाल गंगाधर तिलक जी ने ही बोला था। बाल गंगाधर तिलक को भारतीय अशांति के पिता कहा जाता था। डेकन एजुकेशन सोसाइटी की इन्होंने स्थापना की थी, जहाँ भारतीय संस्कृति के बारे में पढ़ाया जाता था, साथ ही ये स्वदेशी काम से जुड़े रहे। बाल गंगाधर तिलक पुरे भारत में घूम घूम कर लोगों को आजादी की लड़ाई में साथ देने के लिए प्रेरित करते थे। इनकी अंतिम यात्रा में महात्मा गाँधी के साथ लगभग 20 हजार लोग शामिल हुए थे।

लाला लाजपत राय

लाला लाजपत राय जी पंजाब केसरी नाम से प्रसिद्ध थे। भारतीय नेशनल कांग्रेस के लाला लाजपत राय बहुत प्रसिद्ध नेता और भारत के स्वतंत्रता सेनानी थे। लाला लाजपत राय लाल बाल पाल की तिकड़ी में शामिल थे। ये तीनों कांग्रेस के मुख्य और प्रसिद्ध नेता थे। 1914 में वे ब्रिटेन भारत की स्थिति बताने गए थे, लेकिन विश्व युद्ध होने की वजह से वे वहां से लौट ना सके। 1920 में जब वे भारत आये, तब जलियाँवाला हत्याकांड हुआ था, इसके विरुद्ध में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिया था। एक आन्दोलन के दौरान अंगेजों के लाठी चार्ज से वे बुरी तरह घायल हुए जिसके पश्चात् उनकी म्रत्यु हो गई।

चंद्रशेखर आजाद

चंद्रशेखर आजाद नाम की ही तरह आजाद थे, उन्होंने स्वतंत्रता की आग में घी डालने का काम किया था। उनका परिचय इस प्रकार था, चंद्रशेखर आजाद स्वतंत्रता की लड़ाई में युवाओं को आगे आने के लिए प्रेरित करते थे, उन्होंने युवा क्रांतिकारीयों की एक फ़ौज खड़ी कर दी थी। उनकी सोच थी की स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए हिंसा जरुरी है, इसलिए वे महात्मा गाँधी से अलग कार्य करते थे। चंद्रशेखर आजाद का खौफ अंगेजों में बहुत था। इन्होंने काकोरी ट्रेन लूटने की योजना बनाई थी और इसे लुटा था। किसी ने इनकी खबर अंग्रेजों को दे दी, जिससे अंग्रेज इन्हें पकडऩे के लिए इनके पीछे पड़ गए। चंद्रशेखर आजाद किसी अंग्रेज के हाथों नहीं मरना चाहते थे, इसलिए उन्होंने अपने आप को गोली मार ली और शहीद हो गए।

सुभाषचंद्र बोस

सुभाषचंद्र बोस को नेता जी कहते है इनका जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा में हुआ था। 1919 को वे पढाई के लिए विदेश चले गए, तब उन्हें वहां जलियाँवाला हत्याकांड का पता चला, जिससे वे अचंभित हो गए और 1921 को भारत लौट आये। भारत आकर इन्होंने भारतीय कांग्रेस ज्वाइन की और नागरिक अवज्ञा आन्दोलन में भाग लिया। अहिंसावादी गाँधी जी की बातें उन्हें गलत लगती थी, जिसके बाद वे हिटलर से मदद मांगने के लिए जर्मनी गए. जहाँ उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी संगठित की। दुसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान जो की मदद कर रहा था, समर्पण कर दिया, जिसके बाद नेता जी वहां से भाग निकले। लेकिन कहते है 17 अगस्त 1945 को उनका प्लेन क्रेश हो गया, जिससे उनकी म्रत्यु हो गई। इनकी म्रत्यु से जुड़े तथ्य आज भी रहस्य बने हुए है।

मंगल पांडेय

भारत के इतिहास में स्वतंत्रता सेनानीयों में सबसे पहले मंगल पांडे का नाम आता है. 1857 की लड़ाई के समय से इन्होंने आजादी की लड़ाई छेड़ दी और सबको इसमें साथ देने को कहा। मंगल पांडे ईस्ट इंडिया कंपनी में सैनिक थे। 1847 में खबर फैली की ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा जो बन्दुक का कारतूस बनाया जाता है, उसमें गाय की चर्बी का इस्तेमाल होता है, इसे चलाने के लिए कारतूस को मुह से खीचना पड़ता था, जिससे गाय की चर्बी मुहं में लगती थी, जो हिन्दू मुस्लिम दोनों धर्मो के खिलाफ था। उन्होंने अपनी कंपनी को बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन कुछ नहीं हुआ। 8 अप्रैल 1857 को इनकी म्रत्यु हो गई।

भीमराव अम्बेडकर

दलित परिवार में पैदा हुए भीमराव अम्बेडकर जी ने भारत से जाति सिस्टम ख़त्म करने के लिए बहुत कार्य किये। नीची जाति के होने की वजह से उनकी बुधिमियता को कोई नहीं मानता था। लेकिन इन्होंने फिर बुद्ध जाति अपना ली और दूसरी नीची जाती वालों को भी ऐसा करने को कहा, भीमराव अम्बेडकर जी ने हमेशा सबको समझाया की जाति धर्म मानवता से बढ़ कर नहीं होता है। हमें सबके साथ सामान व्यव्हार करना चाहिए। अपनी बुध्दी के बदौलत वे भारत सविधान कमिटी के चेयरमैन बन गए। जनतांत्रिक भारत के संविधान को डॉ भीमराव अम्बेडकर ने ही लिखा था।

सरदार वल्लभभाई पटेल

भारतीय कांग्रेस के नेता सरदार वल्लभभाई पटेल एक वकील थे। वल्लभभाई जी ने नागरिक अवज्ञा आन्दोलन, भारत छोड़ो आन्दोलन में हिस्सा लिया था। वल्लभभाई जी ने देश की आजादी के बाद आजाद भारत को संभाला। आजाद भारत बहुत सारे राज्यों में बंट गया था जहाँ पाकिस्तान भी अलग हो चूका था। उन्होंने देश के सभी लोगों को समझाया कि देश की रक्षा के लिए सभी राजतन्त्र समाप्त कर दिए जायेंगे और पुरे देश में सिर्फ एक सरकार का राज्य चलेगा। उस समय देश को ऐसे नेता की जरुरत थी जो उसे एक तार में बांधे रखे बीखरने ना दे। आजादी के बाद भी देश में बहुत परेशानियाँ थी जिसे सरदार वल्लभभाई पटेल ने बहुत अच्छे से सुलझाया था।

महात्मा गाँधी

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात में हुआ था। अहिंसावादी महात्मा गाँधी ने अपनी स्वतंत्रता की लड़ाई पूरी सच्चाई और ईमानदारी से लड़ी। वे अहिंसा पर विश्वास रखते थे और कभी किसी अंग्रेज को गली भी नहीं दी। इस वजह से अंग्रेज उनकी बहुत इज्जत भी करते थे। सत्याग्रह आन्दोनल, भारत छोड़ो आन्दोलन, असहयोग आन्दोलन, साइमन वापस जाओ, नागरिक अवज्ञा आन्दोलन और भी बहुत से आन्दोलन महात्मा गाँधी ने शुरू किये। वे सबको स्वदेशी बनने के लिए प्रेरित करते थे और अंग्रेजो के सामान को उपयोग करने से मना करते थे। महात्मा गाँधी के प्रयासों के चलते अंग्रेजो ने 15 अगस्त 1947 को देश छोड़ दिया। 30 जनवरी 1948 को नाथू राम गोडसे ने गोली मार कर इनकी हत्या कर दी थी।

सरोजनी नायडू

सरोजनी नायडू एक कवित्री और सामाजिक कार्यकर्ता थी। ये पहली महिला थी जो भारत व भारतीय नेशनल कांग्रेस की गवर्नर बनी। सरोजनी नायडू भारत के संबिधान के लिए बनी कमिटी की मेम्बर थी। बंगाल विभाजन के समय ये देश के मुख्य नेता जैसे महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरु के संपर्क में आई और फिर आजादी की लड़ाई में सहयोग देने लगी। ये पुरे भारत में घूम घूम कर लोगों को अपनी कविता और भाषण के माध्यम से स्वतंत्रता के बारे में बताती थी। देश की मुख्य महिला सरोजनी नायडू का जन्म दिवस अब महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है।

बिरसा मूंडे

बिरसा मूंडे का जन्म 1875 को रांची में हुआ था। बिरसा मूंडे ने बहुत से कार्य किये, आज भी बिहार व झारखण्ड के लोग इन्हें भगवान की तरह पूजते है और उन्हें धरती बाबा कहते है। वे सामाजिक कार्यकर्त्ता थे जो समाज को सुधारने के लिए हमेशा कुछ ना कुछ करते रहते थे। 1894 में अकाल के दौरान बिरसा मूंडे ने अंगेजों से लगान माफ़ करने को कहा जब वो नहीं माने तो बिरसा मूंडे ने आन्दोलन छेड़ दिया। 9 जून 1900 महज 25 साल की उम्र में बिरसा मूंडे ने अंतिम साँसे ली।

बहादुर शाह जफऱ

मुग़ल साम्राज्य का आखिरी शासक बहादुर शाह जफऱ का नाम भी स्वतंत्रता संग्रामी की सूचि में शामिल है। 1857 की लड़ाई में इन्होने मुख्य भूमिका निभाई थी। ब्रिटिशों की सेना ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ शाह जफऱ ने अपनी विशाल सेना खादी कर दी थी, और खुद अपनी सेना के सेनापति थे। उनके इस काम के लिए उन्हें विद्रोही कहा जाने लगा, तथा उन्हें बंगलादेश के रंगून में निर्वासित कर दिया गया था।

डॉ राजेन्द्र प्रसाद

हम डॉ राजेन्द्र प्रसाद को देश के पहले राष्ट्रपति के रूप में जानते है, लेकिन देश को आजाद कराने के लिए वे हमेशा सभी देश वासियों के साथ खड़े रहे, स्वतंत्रता की लड़ाई में राजेंद्र प्रसाद का नाम भी सुनहरे अक्षरों में लिखा हुआ था। इन्हें हमारे देश का सविधान का वास्तुकार कहा जाता है। महात्मा गाँधी को अपना आदर्श मानने वाले राजेन्द्र प्रसाद ने कांग्रेस ज्वाइन कर बिहार से एक प्रमुख नेता बन गए। नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आन्दोलन में इन्होने मुख्य भूमिका निभाई थी, जिसके लिए उन्हें कई बार जेल यातनाएं भी सहनी पड़ी थी।

राम प्रसाद बिस्मिल

राम प्रसाद बिस्मिल स्वतंत्रता सेनानी थे, उनका नाम मैनपुरी व् काकोरी कांड में सबसे ज्यादा प्रख्यात है। ब्रिटिश शासन के वे सख्त खिलाफ थे, वे बहुत बड़े कवी भी थे, जो अपने मन की बात कविताओं के जरिये सब तक पहुंचाते थे। ये हिंदी उर्दू भाषा में लिखा करते थे। ‘सरफरोशियों की तम्मना’ जैसी महान यादगार कविता इन्ही ने लिखी थी।

सुखदेव थापर

सुखदेव देश के स्वतंत्रता संग्रामी में से एक थे, उन्होंने भगत सिंह व् राजगुरु के साथ दिल्ली की असेंबली में बम फोड़ा था, और अपने आप को गिरफ्तार करा दिया था। इसके पहले उनका नाम ब्रिटिश अफसर को गोली मारने के लिए भी सामने आया था। सुखदेव भगत सिंह के अच्छे मित्र भी थे, इन्हें भगत सिंह के साथ ही 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई थी। युवाओं के लिए ये आज भी एक प्रेरणा का स्त्रोत्र है।

शिवराम राजगुरु

शिवराम राजगुरु भगत सिंह के ही साथी थे, जिन्हें मुख्यत: ब्रिटिश राज के पुलिस अधिकारी को मारने के लिए जाना जाता है। ये हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में कार्यरत थे, जो भारत देश की आजादी के लिए अपने प्राण भी देने को तैयार थे। राजगुरु गाँधी जी की अहिंसावादी बातों के बिलकुल विरोश में थे, उनके हिसाब से अंग्रजो को मार मारकर अपने देश से निकलना चाहिए।

खुदीराम बोस

ये सबसे नौजवान स्वतंत्रता संग्रामी रहे है। स्वतंत्रता की लड़ाई के शुरुवाती दौर में ही ये उसमें कूद पड़े थे। बचपन से देशप्रेम के चलते इन्होने आजादी को ही अपनी मंजिल बना ली थी। उन्हें शहीद लडक़ा कहके सम्मान दिया जाता है। स्कूल में पढने के दौरान खुदीराम ने अपने टीचर से उनका रिवाल्वर मांग लिया था, ताकि वे अंग्रेजो को मार सकें। मात्र 16 साल की उम्र में इन्होने पास के पुलिस स्टेशन व् सरकारी दफ्तर में बम ब्लास्ट कर दिया। जिसके 3 साल बाद इन्हें इसके जुल्म में गिरफ्तार किया गया, और फांसी की सजा सुने गई। जिस समय इनको फांसी हुई थी, इनकी उम्र 18 साल 8 महीने 8 दिन थी।

गोपाल कृष्ण गोखले

भारत के स्वतंत्रता सैनानी की सूची में शामिल नाम की बात करें तो उनमें गोपाल कृष्ण गोखले का नाम कभी नहीं भूला जा सकता है। गोपाल कृष्ण गोखले पेशे से एक शिक्षक थे, जो बाद में कॉलेज के प्रिंसिपल भी बने। गोपाल कृष्ण जी अपनी बुद्धिमता के कारण जाने जाते थे। भारत को आजाद कराने में इन्होने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। इसलिए इन्हें स्वतंत्रता सेनानी कहा जाता है। इन्हें महात्मा गांधी जी अपना राजनितिक गुरु भी मानते थे वे उनके काफी स्नेह एवं उनका सम्मान करते थे। उनकी भारत के देश के प्रति कर्त्तव्य एवं देश भक्ति के कारण वे काफी प्रचलित हुए, और अल्पायु में ही उनकी मृत्यु हो गई।

मदन मोहन मालवीय

मदन मोहन मालवीय जी का नाम कौन नहीं जानता, ये भारत के पहले और आखिरी ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें महामना की सम्मानजनक उपाधि मिली थी। पेशे से मदनमोहन मालवीय जी एक पत्रकार एवं वकील दोनों थे। ये अपनी मातृभूमि से बहुत प्रेम करते थे। मदनमोहन मालवीय जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 4 बार अध्यक्ष चुने गए थे। इन्होने ने ही बनारस में स्थित बनारस हिन्दू विश्वविध्यालय औपनिवेशक की स्थापना की। और यह भारत में शिक्षा का एक बहुत ही महत्वपूर्ण केंद्र बन गया। भारत के स्वतंत्र होने में इनका भी बहुत बड़ा योगदान रहा था।

शहीद उधम सिंह

आपने सन 1919 में हुए जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के बारे में तो सुना ही होगा, उस हत्याकांड के चश्मदीद गवाह कम उम्र के वीर बहादुर शहीद उधम सिंह जी थे। जिन्होंने अपनी आँखों से उस हत्याकांड को देखा जिसमें हजारों लोगों की मृत्यु हुई थी। इस हत्याकांड का जिम्मेदार डायर ने जिस क्रूरता से यह हत्याकांड कराया था, उसे इन्होने अपनी आँखों से देखा और फिर उन्होंने संकल्प लिया कि ‘आज से उनके जीवन का केवल एक ही संकल्प है डायर की मृत्यु’. इसके बाद वे क्रांतिकारी दलों के साथ शामिल हुए और भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी नेताओं की पद चिन्हों पर चलते हुए इन्होने अपना योगदान दिया और फिर अल्पायु में ही उनकी मृत्यु हो गई।

दुर्गावती देवी (दुर्गा भाभी)

ब्रिटिश राज के खिलाफ ये महिला उस समय खड़ी रही जब देश में महिलाओं को घर से बाहर तक निकलने की इजाज़त नहीं थी। भगत सिंह जब ब्रिटिश ऑफिसर को मार कर भागते है, तब वे दुर्गावती के पास मदद के लिए जाते है। दुर्गावती भगत सिंह व् राजगुरु के साथ ही ट्रेन में सफऱ करती है, जहाँ दुर्गावती इन्हें ब्रिटिश पुलिस से बचाती है। दुर्गावती भगत सिंह की पत्नी बन जाती है, जिससे किसी को शक ना हो। इनके पति का नाम भगवतीचरण बोहरा था, जो भगत सिंह के साथ ही आजादी के लड़ाई में खड़े हुए थे। उनकी पार्टी के सभी लोग इन्हें दुर्गा भाभी कहा करते थे। दुर्गावती नौजवान भारत सभा की मेम्बर भी थी।