बच्चे वो होते है जिसकी मासूमियत हर इंसान को सहज ही अपनी तरफ खिच लेती है। बच्चों की मुस्कान के आगे इंसान अपना हर गम भुल जाता है। किसी ने सच ही कहा जब इंसान थक कर घर आता है और जब अपने बच्चों मुस्कुराता हुआ पाता है तो उसकी थकान यूं ही दूर हो जाती हैं।
दुनिया में इंसान अपने बच्चों के लिए लाखों ख्वाब सजाता है। फिर उन ख्वाबों को पुरा करने के लिए दिन रात महेन्त करता है। तब कही जाकर वो अपने सारे ख्वाबों को मुकम्मल कर पाता हैं।
लेकिन जब ये सारे ख्वाब पुरे हो जाते हैं। और वहीं मासूम बच्चा जब पढ़ लिखकर बड़ा हो जाता हैं। तो वो बड़ी आसानी से अपने उन माँ-बाप का साथ छोड़ कर अपनी खुद की नई दुनिया बसा लेता हैं।
वो एक पल के लिए भी नहीं सोचता हैं। ये उसके वहीं माँ-बाप है जिन्होंने कभी उसके जरा से बिमार होने पर अपनी जिन्दगी की कई रातें उसके सिराने बैठे-बैठे जागकर बिता दी थी।
वो बड़ी आसानी उन की उस महेन्त को भुल जाता हैं। जब दिन रात उन्होंने तपती धुप में इस लिए बिता दिये मेरे बच्चों को ठंडी छाया नसीब हो जाए। खुद आधी रोटी खाई और तुम को पेट भर कर खिलाया।
माँ का वो प्यार और दुलार बाप की वो महेन्त सब एक मिनिट में किसी की जुल्फों की छावं कही खो जाती हैं।
फिर आज के बच्चें उस चुडिय़ां के बच्चे के समान हो जाते हैं। जो बड़े जतन से अपने बच्चों के लिए महेन्त कर कर के घोसला बनाती हैं। फिर उन बच्चों को अपनी छोटी सी चोच में बड़ी दूर से दना ला ला कर खिलाती हैं। फिर उन बच्चों पंख निकल आते है। तो उनको उडऩा सिखाती हैं। और जब ये बच्चे जिन्दगी जिने के सारे ताजूरबे सिख लेते हैं। तो यूं उड़ जाते हैं। कभी लोटकर नहीं आते हैं।
बचपन में माँ-बाप इस उम्मीद के साथ बच्चों को पलते हैं। बड़ा होकर ये हमारे बुढ़ापे को सहारा बनेगा। लेकिन आज तो यही बच्चे बड़ी आसानी से अपने माँ-बाप को उनके घरों से बेघर कर रहें हैं। कुछ अपने माँ-बाप पर दौलत की लालच जुल्म करने से भी बाज नहीं आ रहे हैं।
कहां खो दिये है हमने अपनी इंसानियत कहने को तो बहुत ऊंचाईयों छु लिये है हमने लेकिन कहा खो गए है हम। हमारे वो संस्कार वो तहजीब जिसमें हमने अपने बड़ों से सिखा था और उन्हें अमल करते देखा था। वो अपने बड़ों के सामने सर उठा कर खड़े नहीं होते थे। उनकी बराबरी में बैठने से कतराते थे। उनका एक फैसला सारे परिवार के लिए पत्थर की लकीर के समान होता था।
आज तो ये हाल हो गया है। हम अपने माँ-बाप के सामने बैठे मोबाईल में लगे होते हैं। माँ हसरत भरी निगाह से अपने बच्चें की तरफ देखती रहती है कब बच्चें को वक्त मिलेगा जब वो उससे दो मिठे बोल बोलेगा।
कुछ माँ-बाप अपने बच्चों बड़े जतन से विदेश पढऩे भेजते हैं। बच्चा पढ़ लिखकर अच्छा इंसान बनकर बुढ़ापे में उनका सहारा बनेगा। ऐसे बच्चे तो आजकल घर लोटकर ही नहीं आते है। उनके दिल इतने पत्थर हो जाते हैं। वो जिते जी तो अपने माँ-बाप की खबर नहीं लेते है। मरने के बाद भी नहीं आते है। हसरत भरी माँ-बाप की आंखे इंतजार करते हुए बंद हो जाती है।
फिर बच्चे को अपने पुस्तेनी मकान की याद आती हैं। जिसकी किमत अब लाखों-करोड़ों में हो चुकी है। फिर वही बच्चा दौलत की लालच में घर लोटकर आता हैं। मां-बाप की रूहानी सोचती ये हमारे लिए आया होगा। लेकिन कुछ पल में ही हकीकत साफ हो जाती है। जब वो पैसों से भरे बैग लेकर फिर वापिस लोट जाता है।
कहां से चले थे कहां आ गए है हम कभी सोचा है हमने ये दौलत की लालच, प्यार की हवस हमें कहां से कहां ले जा रही हैं। हम इंसान है हमारा अस्तित्व खोते जा रहा है। वो जुल्फों की छावं बुढ़ापे में हमारे कुछ काम नहीं आएगी। जिसके दिल तुम्हारे माँ-बाप के लिए नरमी नहीं वो क्या बुढ़ापे तुम्हारा सहारा बनेगी। जो जरा सी अपनी ख्वाहिशों के साहारे खुले असमान में उडऩे के लिए तुम्हारे बुढ़े माँ-बाप की आंखों में पल-पल आंसू दे सकती है वो औरत कब तक तुम्हारा आसली हमसफर बनकर तुम्हारा साथ निभाएगी।
जब तुम्हारे बच्चे तुम्हारे इस व्यवहार को देखकर बड़े होगे और जो मंजर आज तुम्हारे माँ-बाप के सामने वहीं तुम्हारे सामने होगा जब तुम्हें अहसास होगा। जब तुम्हारे वदन पर गर्म पानी के छिटे पाड़ेगे जब तुम्हें जलने का दर्द होगा। ये जख्म ऐसे है जो फिर नहीं भर पाएंगे।
आ लोट आ बचपन के ऐ मासूम फरिस्ते अपनी माँ की आँचल की ठंडी छावं में। अपने बाप के उस प्यार और दुलार में। जिन्दगी जीने का सही मजा तुझे कोई दौलत नहीं दे पाएगी। दुनिया कोई ऊंचाई तुझे सुकून नहीं दे पाएगी। जो सुकून माँ के कदमों में बैठने से मिलेगा।
Syed Shabana Ali
Harda (M.P.)