दुनिया बहुत अनोखी है यहां आपकों हर तरह के लोग देखने को मिल जाएगें। इन में से कुछ लोग ऐसे होते है जो अपनी हर बात को कह कर खुश रहते है। लेकिन कुछ ऐसे भी होते है जो खामोश रह कर सब सहते रहते है। लेकिल ऐसे लोगों को देखकर लगता है खामोशी के भी लफ्ज होते है।
दुनिया में इंसान किस-किस चीज का शिकवा करें क्या शिकवा शिकायत करने सब कुछ मिल जाता है शायद नहीं तो क्यों न हम भी इन खामोशियों को अपना हथियार बनाये फिर देखना जिन्दगी कितनी खुबसूरत होगी। अपने कभी सोचा भी नहीं होगा।
वैसे भी ये इंसानी फितरत होती है वो दुनिया में कुछ भी मिल जाए संतुष्ट नहीं होता है। जो मिल गया उसकों पाने के बाद और ज्यादा पाने की उम्मीद होती है। एक गरीब इंसान की तरफ देखों वो दो वक्त की रोटी भी सुकून के साथ नहीं खा पाता है फिर भी खुश है। क्यों? क्योंकि वो किसी से अपने दुखों की शिकायत नहीं करता है। जो मिला उसी में खुश रहता है।
शिकायत करें भी तो क्या दुनिया में ऐसे बहुत से सत्ताधारी लोग है जिनकी रोजी रोटी उसी के दुख का गान करने पर चलती है। चाहे वो उस गरीब के लिए कुछ न करें पर पब्लिक स्टेट पर तो सबसे पहले उनके लबों पर गरीबों की ही दुहाई होगी।
हमने इस गरीब के लिए ये योजना बनाई ये काम हमने उस गरीब के लिए किया है। चाहे इन योजनाओं के साये में गरीब रोज तिलमिला कर मर रहा है। क्योंकि अगर कोई मदद की सोचे भी तो कैसे? अरें सारे सरकारी पोर्टल ही गरीबों के नाम बने है। अब करें तो क्या करें? योजनाओं का ऐसा मायाजाल है जिससे कौन बच सकता है? गरीब बेचारा खामोश है। अब करें भी तो क्या करें?
आज बोलने वालों के आगे खामोशी का वाजूद खत्म होते जा रहा है। आज अगर कोई अमीर गरीब का शोषण करता हैं तो गरीब को खामोश रहने की सलाह दीं जाती है। लेकिन ये सच है वो बोलने ही कब वाला था जो चुप रहने की सलाह दी जाती है। लेकिन ये लफ्जों की ताकत है जो खामोशी को और दबाती है।
एक गरीब किसान है और अमीर रौब दार किसान है वो उसको नहर का पानी फसलों में नहीं देने देता है गरीब किसान को रास्ता नहीं देता वो अपने खेत तक पहुंच सकें लेकिन गरीब को खामोश रहना है। क्योंकि लफ्जों से बगावत करना सहीं नहीं है। क्योंकि लफ्ज अगर भारी हो गए तो जान का खतरा हो जायेगा। अब खामोशी यहां करें तो क्या करें?
अगर देश के सत्ता का ताज अपने सर पर पहने सियासत पर राज करने वाले लोग अगर किसी का शोषण करते है तो अगर वो जन अंदोलन भी हो तो उस उठने वाली आवाज को बड़ी बेरहमी से दवा दिया जाता है। अगर ये आवाज सीधे से नहीं दबती है तो इस पर हर तरह का दबाब डाला जाता है।
क्यों ये आवाज खामोशी में सिमट नहीं रही है ये हर तरफ इसी का शौर होता है। फिर कुछ ऐसा होता है ये आवाज पुरी तरह से दबा दी जाती है। और कुछ ऐसा होता है खामोशी को भी पता नहीं चल पाता ये आवाज जो अब तक इतना शौर मचा रही थी। पुरी हुकुमत को हिलाने की ताकत थी जिसमें वो क्यों इतनी खामोश हो गई है?
फिर लफ्ज उस इंसान की तरफ देखते है। जिसके सर पर हुकुमत का ताज होता है। और वो मंद ही मंद मुस्कुरा रहा होता है। लेकिन अब उसकी बेशर्मी के आगे खामोशी भी जख्मों में अपने वाजूद को छुपा लेती है। कहीं उस मजलुम की फरियाद उसके वाजूद को न मिटा दें।
आज इंसान के अंदर की इंसानियत इतनी ज्यादा मर चुकी है मासूम बच्चों पर भी अत्याचार करने पर पीछे नहीं हटती है। ऐसे शौर भरी इस दुनिया में यूं इन मासूमों की शिशकियों को दवा दिया जाता है पता ही नहीं चलता क्या हुआ?
अत्याचार के इस दलदल में देश की होनहार और काबिल बच्चियों की जिन्दगी यूं बेरहमी के साथ खत्म कर दिया जा रहा है जैसे देश में उनका कोई वाजूद ही न हो। देश में हो रहे हर हादसों के पीछे की यहीं कहानी होती है। थोड़े दिन ही शौर भरी इस दुनिया में लफ्जों की बगावत होती है
लेकिन फिर ये आवाज खामोशी में ऐसी सिमटती है। किसी से इंसाफ की उम्मीद ही खत्म हो जाती है। अब दर्द सिर्फ उस दिल में रह जाता है जिसने कभी जख्म खाये थे। अब तड़पना तो उसके मुकद्दर में लिखा था। ओरों के वाजूद से क्या इंसाफ की उम्मीद करें?
आज ऐसा होता है इंसान अपने ही घर में अत्याचार का शिकार हो जाता है लेकिन आवाज नहीं उठा पाता है तो गैरों से कैसी उम्मीद करें। समाज मे एक ऐसा वर्ग भी आज मौजूद है जो अपने बुजुर्गो पर अत्याचार कर रहा है। अपने घर की माहिलाओं बेटियों पर अत्याचार कर रहा है।
वो मजबूर इंसान खामोशी में कहीं सिमटते जा रहा है। जिन बच्चों को कभी उस इंसान ने इतना प्यार और सम्मान देकर पला उसके हर दुख और दर्द में रातों नहीं सोया आज वहीं बच्चा बड़ा होकर अपने मां-बाप का सम्मान नहीं कर रहा है। ऐसे में खामोशी में सिमटना पल-पल तड़पना यहीं उस जिन्दगी की हकीकत हो जाती है।
अब उसके दर्द के आगे खामोशी आंसू बहाने पर मजबूर हो जाती है। क्यों मेरा वाजूद है शौर भरी इस दुनिया में लफ्ज मुझ में हमेशा समा जाने पर मजबूर हो जाते है। ऐ काश हम खामोशी की इस तड़प को समझ पाये खामोशी में अपने वाजूद सिमटने न दें। लफ्जों से बगावत ऐसी हो के हर अत्याचार उस के वाजूद के आगे अपने आपको खत्म होता सा पाये।