भारत देश प्रगति के पथ पर तेजी से विकास की ओर आगे बड़ रहा है। वर्तमान में हमारा देश विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों के साथ कदम से कदम मिलाकर आगें बड़ रहा है। हमारे देश में धनकुबरों के धन तो दिन प्रतिदिन बड़ रहे है। लेकिन वहीं जो एक गरीब तबका है उस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता ये वो गरीब लोग है जिनके पास एक वक्त के खाने तक की जुगत नहीं हो पाती ये लोग एक वक्त के खाने के लिए तरसते रह जाते है। हमारा देश कृषि प्रधान है। और यह पर हर सीजन में टनों से गेंहु चावल और मक्का और मोटे अनाज बोए जाते है लेकिन इस टनों अनाज में उन गरीबा को पाव हिस्सा भी मयस्सर नही होता है। यहीं अनाज सरकारी गोदामों में सडक़र खराब हो जाता है लेकिन इन मासूम गरीबों को नहीं दिया जाता।
सरकार द्वारा राशन कार्ड पर जो अनाज दिया जाता है अगर देखा जाऐ तो इसकी क्वालिटी इतनी घटिया होती है कि जानवरों को भी खिलाने की इच्छा नहीं होगी ऐसा अनाज गरीबों को राशन कार्ड पर दिया जाता है। कई इलाकों में बेहद गरीबी है क्योकि यहां पर बेरोजगारी की वजह से लोग आर्थिक तंगी का शिकार है। सरकार द्वारा समय समय पर योजनाएं लाई जाती है लेकिन इनका फायदा इन गरीबो को नहीं पहुंच पाता सारी सरकारी योजनाएं केबल कागजों पर धरी रह जाती है। लोग गरीबी और भूखमरी की वजह से कुपोषण का शिकार हो रहे है।
कुपोषण हमारे देश की एक गंभीर एवं चिन्ताजनक स्थिति है। सबसे ज्यादा चिन्ताजनक है कि तमाम कोशिशों और दावों के बावजूद कुपोषितों और भुखमरी का सामना करने वाले लोगों का आंकड़ा हर बार बड़ा हुआ ही निकलता है।
ये बात साबित करती है कि हमारे देश की सरकार इस गंभीर समस्याओं को लेकर गंभीर नहीं है। इस समस्या से लड़ते हुए हम कहां से कहां पहुँचे हैं ये हमारे देश में पहली कुपोषण, गरीबी साबित करती है। कुपोषण का गरीबी और भूख से सीधा रिश्ता होता है। अभी हमारे देश का ये हाल है गरीबी की मार से लोग अपने खान-पान की बुनियादी जरूरतें भी पूरी नहीं कर पा रहे है। अगर शहरों में रह रहें गरीबों की स्थिति पर गौर करें तो हलात ये है ये लोग रोजमर्रा की चीजें भी बमुश्किल खरीद पा रहे है। ये और बात है आज दुनिया में तीन अरब से ज्यादा लोग पौष्टिक भोजन से वंचित हैं। भुख और गरीबी का सामना कर रहें है। भुख और गरीबी के कारण ये लोग कुपोषण का शिकार हो रहे है। भारत की इस साल कुपोषण की स्थिति डराने वाली है। 2024 की जीएचआई रिपोर्ट में भारत 127 देशों में 105 वें स्थान पर है, जबकि 2023 की रिपोर्ट में 111वें स्थान पर होगा। भारत में बच्चों में कम वजन की दर 18.7 प्रतिशत है; बच्चों में बौनापन 35.5 प्रतिशत है; अल्पपोषण की व्यापकता 13.7 प्रतिशत है। तथा पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर 2.9 प्रतिशत है। वास्तविक आंकडा इससे भी बड़ा हो तो हैरानी की बात नहीं।
आज हमारे देश की ऐसी स्थिति है कि महंगाई के कारण मध्य और निम्न वर्ग के लोग अपने खान-पान के खर्च में भारी कटौती करने के लिए मजबूर होते हैं। ऐसी स्थिति में पौष्टिक खाद्य पदार्थ इन लोगों को नहीं मिल पाता है। पौष्टिक भोजन के अभाव में लोग कुपोषण और गंभीर बीमारियों की समस्याओं गिरफतार हो जाते है।
आज हमारे देश की अबादी में से एक बड़ी संख्या ऐसे बच्चों की है जो कुपोषण की गंभीर समस्या से दो चार है। और इस संकट से निपटने की चुनौती और बड़ी हो गई है। हमारे देश में सियासत में बैठे लोग अगर चाहे तो इस समस्या को जड़ से खत्म किया जा सकता है जरूरत है बस इस गंभीर समस्या को समस्या समझ कर इस दिशा में कदम बड़ाने की। वैसे हमारे देश में कुपोषण को दूर करने के लिए सबसे पहले देश से भुखमरी और गरीबी को दूर करना होगा। सियासत में बैठे लोगों को हमारे देश से गरीबी को खत्म करने की कोशिश करना चाहिए, न की गरीब को।
हमारे देश में गरीबी और भुखमरी और कुपोषाण को दूर करने के लिए कई योजनाएं बनाई जाती है लेकिन जिनका इन योजनाओं पर हक होता है उन तक ये नहीं पहुंच पाती है। और गरीब तो गरीब ही और भुखा ही रह जाता है। योजनाओं का सही लाभ सियासत में बैठे वो चमचे ही उठा लेते है जिनके सरों पर हुकुमत का ताज होता है। ये अमीर और अमीर होते जाते है। गरीब बिचारे भुखे ही सोए रह जाते है। इनकी तिजौरियां गरीबों का हक मार कर खाई गई कमाई से ये दिन प्रतिदिन भरती ही जाती है।
सरकार चाहे कुपोषाण के शिकार हर नागरिक को पौष्टिक भोजन देना मुश्किल भी नहीं है। लेकिन इसकी सबसे बड़ी बाधा शासन-व्यवस्थाओं में बढ़ता भ्रष्टाचार है। जो गरीबों तक उसका हक पहुंचने ही नहीं देता। मासूम बच्चें कुपोषाण का शिकार होकर अपनी मां की गोद में दम तोड़ देते है। लेकिन प्रशासन कुंभकर्ण की नींद सोता रहता है।
जब जो लोग गलत को जब गलत समझना ही नहीं चाहते है तो वो क्या किसी समस्या हो हल करने के बारे में सोचेगें। हां इतना जरूर है ये लोग दिखावे की जिन्दगी जीना पंसद करते है। इसलिए गाहें बगाहें कुछ ऐसी योजनाएं बना देते है जिससे दुनियां को लगें हम इस समस्या को लेकर गंभीर है और इसको हल करने की दिशा में कदम आगे बढ़ा रहें है। लेकिन हालात तो कुछ और ही इसारा कर रहे हम इस समस्या को लेकर कितने गंभीर थे और आगे कितने गंभीर होगे। जिसे समस्या गंभीर ही न लगे तो यह मानना चाहिए कि बीमारी गंभीर है। बीमार व्यवस्था से स्वस्थ शासन की उम्मीद कैसे संभव है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अनुसार भारत में महिलाओं की पचास फीसदी से अधिक आबादी एनीमिया यानी खून की कमी से पीडि़त है। इसलिए ऐसे हालात में जन्म लेने वाले बच्चों का कम वजन होना लाजिमी है। और ऐसे बच्चें कुपोषाण का शिकार हो जाते है। लेकिन हमारे देश में सरकार आज तक इस पचास फीसदी आबादी के लिए क्या कर रही है। ये तो सोचने वाली बात है। अगर कुछ किया जाता तो स्थिति ऐसी कभी नहीं बनती। सच्चाई तो ये है पुरूषवादी शासन होने पर महिलाओं की समस्या समस्या ही बनी रहती है। जब तक हमारे देश में बराबरी का शासन नहीं होगा। कोई भी समस्या को हल करने की उम्मीद ही क्या की जा सकती है।
सैयद शबाना अली
हरदा मध्यप्रदेश