काटों भरी डाली हूं मैं, मैं क्या करूं,
दर्द ही दर्द है मेरी पनाहों में, मैं क्या करूं,
लगता है डर अपने ही आप से कभी,
अपने आपको ही न जख्मी कर जाऊं, मैं क्या करूं,
कोई खुशी बनके जिन्दगी आ जाती है जो मेरी पनाहों में,
हो जाती है वो रेजा-रेजा बन जाती है,
पतझड़ खुशियों की बहार मैं क्या करूं,
मुझसे मिले जख्मों को लोग याद करते है,
पल-पल तड़पते है, फरियाद करते है,
मुझसे नहीं है किसी को प्यार मैं क्या करूं,
आसूं बनके किसी की आंखों से झलकना मुझे नहीं आता,
सुना के हाले दिल किसी को जीना मुझे नहीं आता,
तन्हाई में तड़पना मेरा मुक्कदर मैं क्या करूं