The government hospital is in a bad condition, who is responsible?Editorial

हमारे देश में सरकारी अस्पताल का इतिहास बहुत पुराना हैं। लेकिन जितना पुराना इसका इतिहास हैं। उतना ही ज्यादा खस्ताहाल हैं हमारे देश के सरकारी अस्पताल। कहने को तो ये हॉस्पिटल सरकार द्वारा गरीबों के दर्द को दूर करने के लिए बनाएं गए हैं। और हर बार सरकार इन अस्पताल में सुविधाओं के नाम पर करोड़ों का बजट इन सरकारी अस्पताल के लिए बनाती हैं। लेकिन हर बार की तरह हलात ज्यो के त्यों बने रहते हैं।

जिन गरीबों के लिए ये हास्पिटल बनाएं गए है। वहीं गरीब यहां आकर सबसे ज्यादा मजबूर और लाचार नजर आता हैं। अपनी जिन्दगी में दर्द के सायें जी रहें इस इंसान के साथ इन हॉस्पिटलों में इतना कूर व्यवहार किया जाता हैं। की दर्द को भी उनके हालात पर रहम आ जाता है। लेकिन यहां माजूद डॉक्टर और यहां के कार्मचारियों को रहम नहीं आता।

इन सरकारी अस्पताल में गरीब मरीज अपने परिजनों के साथ इस उम्मीद के साथ आता हैं। यहां आकर उसकी तकलीफ कम हो जाएगी। लेकिन यहां आने के बाद उसे अहसास होता हैं। वो गरीब है इस लिए कितना लाचार और मजबूर है। जब लाख बार कहने पर भी यहां मौजूद डॉक्टर उसके इलाज को नहीं तैयार होते है। क्योंकि यहां मौजूद डॉक्टरों का फूल टाइम अराम का होता है। और वो धीरे से मरीज के परिजन के कान में कहते हुए नजर आते हैं। इन्हें इस पाईवेट हॉस्पिटल लें आना मैं ईलाज कर दूंगा।

सारी सुविधा होने के बाद भी इन हॉस्पिटलों में सुविधाओं का अभाव हमेशा देखने को मिलता है। जरा सी मरीज की हलात सीरियस हुई की कह दिया जाता है। इन्हें बहार लें जाओं। और बहार ले जाने की कोई सुविधा भी नहीं दी जाती हैं। अगर बेबस गरीब के पास इतने पैसे होते के वो अपने मरीज को बहार दिखा सकता तो तुम्हारे पास लाता ही क्यू्?

वैसे तो सरकारी अस्पताल में ऑपरेशन की सारी सुविधाएं होती है। लेकिन बहुत कम ही ऐसे मरीज होते हैं। जिनको टाईम पर ये सुविधा मुहिया कराई गई हो। जब मरीज दर्द से तड़पते हुए बेजान सा हो जाता है। तब कही जाकर ऑपरेशन किया जाता है। पहले हॉस्पिटल का हर कर्मचारी मरीज के परिजनों से पैसे ऐठने में लगें होते है। हर कोई चाहता है थोड़ा पैसा मिल जाएं।

डिलीवरी के लिए आने वाली महिलाओं के परिजनों को पहले ही कह दिया जाता हैं। पांच हजार रूपए दे देना नॉर्मल डिलीवरी हो जाएगी और अगर सर्जिकल की बात होती हैं तो मरीज के परिजनों से सात से आठ हजार रूपए की डिमांड होती हैं। जबकि सरकार के द्वारा ये सारी सुविधाएं सरकारी अस्पताल फ्री में दी जाने की बात होती हैं।

लेकिन हर सरकारी अस्पताल में भ्रष्ट्राचार का बोल वाला है। गरीब मजदूर वर्ग के मरीज यहां आकर अपने आपकों ठंगा सा महसूस करते हैं। अब जिनके पास पैसे होते है। वो अपने मरीज का ईलाज करा लेते हैं। लेकिन जिन मजबूर लोगों के पास कुछ नहीं होता वो बेबस अपने मरीज को दर्द से तड़पते हुए देखते रहते है।

क्या ये नहीं हो सकता है? जिन गरीब असहाय लोगों के लिए हमारे देश में इन सरकारी अस्पतालों की नींव रखी गई थी उन गरीब और मजबूर लोगों को यहां पुरी सुविधा दी जाएं। ये हॉस्पिटल नाम की सुविधाओं का भंडार नहीं हो बल्कि हकीकत में यहां वो सारी सुविधा गरीब और बेसहारा लोगों को दी जाएं जिनके वो हकदार हैं।

ये हमारे देश में सरकारी हॉस्पिटल के खस्ता हालात ही है जिसकी वजह से हमारे देश में प्राईवेट हॉस्पिटलों की मनमानी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रहीं हैं। और प्राईवेट हॉस्पिटल आज दानव की तरह मुहं खोले मरीज और मरीज के परिजनों को निगलते जा रहें हैं। आज प्राईवेट हॉस्पिटल हमारे देश में ऐसा चक्रव्यूह बन गए है। जिसमें मरीज और उसके परिजन एक बार फस भले ही जाएं तो फिर पुरी तरह से बरबाद हो कर ही निकलते हैं।

अगर हमारे देश के सरकारी अस्पतालों में तमाम सुविधाएं मरीज को मौहया हो तो वो ऐसे प्राईवेट हॉस्पिटलों का कभी रूख नहीं करें जिसमें मौजूद डॉक्टरों से लेकर सभी कर्मचारियों की संवेदनाएं मर सी गई होती हैं। इनकी आंखों में सिवा पैसों की चमक के कुछ नहीं दिखाई देता हैं।
लेकिन आज हमारे देश के सरकारी अस्पतालों का ये हाल हैं। कि सरकारी अस्पताल के डॉक्टर भी प्राईवेट हॉस्पिटल में अपनी सुविधा दें रहे हैं। और जो मरीज सरकारी अस्पताल में उनसे ईलाज कराने आते है उनपर ध्यान नहीं देते हैं। इनमें कई डॉक्टर ऐसे हैं। जिन्होंने बकायदा अपना खुद का निजी किलनिक खोल रखें हैं। कईयों के तो खुद के प्राईवेट हॉस्पिटल तक हैं। जिसमें वो अराम से अपनी सुविधा दें रहें हैं। और न ही जिला प्रशासन और सरकार के तरफ से उनपर कोई कार्यवाही की जा रहीं हैं।

हमारे देश में सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं के नाम पर हर कमी देखी जाती हैं। डॉक्टरों नर्सो की कमी से लेकर तमाम अवश्यक मशीनों से लेकर ओजारों तक की कमी की मरीजों को दुहाई दी जाती है। अस्पतालों में गंदगी का तो ये अलाम हैं। कि ऐसा लगता हैं। क्या यहीं वो जगह है जो हमें अहसास कराती हैं। कभी हमने भी स्वच्छ भारत का सपना देखा था। मरीज जहां जितना बिमारी से तड़पता हैं। उतना ही यहां मरीज और उनके परिजन गंदगी और बदबू से परेशान नजर आते हैं। ऐसा नहीं हैं। इन हॉस्पिटलों में सफाई नहीं होती हैं। होती है न जब कोई बड़ा नेता यहां आने वाला होता है। उस दिन इस हॉस्पिटल की काया ही पलट हो जाती हैं। कुछ पल के लिए ही सही यहां फिर हर वो सुविधा यहां नजर आती है। जो यहां वास्तव में होनी चाहिए।

ये काश हमारे देश के लोग इस दिखावे की दुनिया से बहार आ जाएं और जैसी सुविधा एक दिन दिखावे के लिए दी जाती हैं। वो रोज ही दी जाने लगें। और हमारी मौजूदा सरकार कुछ इस ओर ध्यान दें। और गरीब बेसहारा लोगों के लिए ये हॉस्पिटल उनके लिए दर्द पर मरहम का काम करें।
ऐसा नहीं है हमारे देश के सभी सरकारी अस्पताल एक जैसे हैं। कई ऐसे हॉस्पिटल भी है जो हमारे देश में मिसाल पेस कर रहें। ऐसे सरकारी अस्पतालों से हमारे देश के सभी अस्पतालों को सबक लेना चाहिए। ये जगहां इंसान की मदद के लिए बनी हैं। तो इंसानियत का हर रूप यहां नजर आना चाहिए। और हमारी देश की वर्तमान सरकार को भी इस और ध्यान देना चाहिए की हमारे देश के सरकारी अस्पतालों में वो सारी सुविधा दी जाएं जो इन हॉस्पिटलों के लिए दी जाने की बात की जाती है।
एक रिपोट के अनुसार हमारे देश में 80 प्रतिशत सरकारी अस्पतालों में तमाम जरूरी सुविधाओं का अभाव देखा गया हैं। कोई सरकारी अस्पताल सुविधाओं पर खरा नहीं उतरा हैं। ये हमारे हमारे देश की सरकार के लिए एक अफसोस जनक बात हैं। सरकार की बड़ी-बड़ी घोषणाओं के बावजूद यहां सुविधाओं का अभाव ही देखा गया हैं। हमारे देश की जीडीपी का 2.5 प्रतिशत स्वास्थ पर खर्च किया जाता है फिर भी हमारे देश के सरकारी अस्पतालों की खस्ता हालात हैं हमें ये सोचने पर मजबूर करती हैं। ऐसा क्यों हैं?

कहा जा रहें हम…
कही दिशा विहिन जिन्दगी तो नहीं जी रहे हैं हम…

Syed Shabana Ali

Harda (M.P.)