दर्द हूं मैं तू मुझको आवाज देके न बुला,
छुप जा तू बहारों में कही,

है तुझे उल्फत की कसम मेरे सामने न आ,
डरता हूं कही मैं तुझको जख्मी न कर जाऊं,

है सदा मुस्कुराना हक तेरा,
हूं मैं गमों की आंधी मुझसे न टकरा,

बिखर जाऊंगा मैं फूलों की तरह कुछ पल यहां ढहरने के बाद,
है नहीं मेरे मुकदर में जिन्दगी की कोई बहार,

है काटें भरी राहे जिसमें तुम हो आए,
हाथ फलाएं खड़ी है तेरे सामने खुशियों भरी सुबह,

कर के तू महोब्बत मेरे साए से,
मुझ संग वफा का रिश्ता न निभा,

शबे गम में मैं हमेशा आसूं बहता रहा,
अंगारों पर चलकर मुस्कुराता रहा,

जल जाओगें तुम भी मेरे करीब आने के बाद,
समझ के तुम अपना मुझे,
जिन्दगी से यू न दामन चुरा

सैयद शबाना अली