उम्मीदों के चमन में फूल बनके अरमान खिले थे,
तवीर थी उन ख्वाबों की आंखों में हमारी,

जिन ख्वाबों में खुशियों के सिलसिले थे,
तमन्नएं दिल की हर बार उस तस्वीर में रंग भर जाती थी,

जिसके रंग हमेशा हमारे आंसूओं से धुले थे,
हर बार एक नये रास्ते पर निकल जाते थे हम,

सोचते थे कभी तो मंझीले मकसूद तक पहुंचेगें हम,
लेकिन हर बार रास्ते में ही जिन्दगी के दिन ढले थे,

मुकदर पर हम अपने आंसू बहाते हुए रह जाते थे,
दर्द जिन्दगी में खुशिया बनके आते थे,

पल भर में वो अपना असली रूप दिखाते थे,
फिर तो हर लम्हा-लम्हा आंसूओं के साथ ढल जाते थे,
खुशियों का सिलसिला एक गहरा जख्म बनकर रह जाते थे