हुस्न वाले पे घुघटों का फहेरा था,
चांद भी छुपा था बादली में चारों तरफ छाया अन्धेरा था,

हंसी रात के मंझर सुहाने थे,
हम तो ढुढ़ रहें थे सारी रात उस चांद को जिसके हम दिवाने थे,

कभी तेज हवाओं में ढुढा था,
कभी काली घटाओं में ढुढ़ा था,

लेकिन रिमझिम बरसते बादलों में छाया बस अन्धेरा था,
हुस्न वाले पे घुघटों का फहेरा था…

खुश्बू महकती थी उसकी सासों में,
लेकिन न जाने किस चमन में फूल बनके खिला वो चहेरा था,

आवाज हम उनकों देगें पुकार हम उनको लेगें,
लेकिन वो न आ पाएगें क्योंकि लाख जंजीरों में जकड़ा वो प्यार मेरा था,
हुस्न वाले पे घुघटों का फहेरा था…