Childhood looks at school with longing eyes...Editorial

हमारे देश के संविधान में प्रत्येक नागरिकों को विभिन्न मौलिक अधिकार प्रदान किये है। जिसके साथ भारत का हर नागरिक अपनी जिन्दगी सम्मान के साथ जी सकता है। इन मौलिक अधिकारों में एक शिक्षा का अधिकार भी है। लेकिन ये सोचने वाली बात है। हमारे देश में प्रत्येक नागरिक को शिक्षा का मौलिक अधिकार प्राप्त होने के बावजूद हमारे देश की एक बड़ी आबादी शिक्षा से वंचित रह जाती है।

हमारे देश में कई ऐसे गरीब तबके के लोग रहते है जो अपने बच्चों को शिक्षा दिलाना अहम नहीं समझते है। और वो अपने बच्चों को स्कूल भेजने की वजह घर में ही रखते है। फिर बच्चा जब थोड़ा बड़ा होता है। तो वो पढऩे की वजह मेहन्त मजदूरी करने लगता है।

शिक्षा से वंचित ऐसे गरीब बच्चों को आप अक्सर किसी स्कूल के सामने खड़े होकर स्कूल जाते अपने हम उम्र बच्चों को हसरत भरी निगाह से देखते हुए देख सकते है। इससे यही लगता है इन बच्चों का भी दिल करता है वो भी सबकी तरह स्कूल जाए। और पढ़ लिखकर अच्छा इंसान बनें। लेकिन ये सोचने वाली बात है इन मासूम बच्चों की आंखों से इन ख्वावों को छिना किसने है? कोन है इनकी इस हालत का जिम्मेदार?
वैसे तो हमारे देश में हर बार शिक्षा के बराबर अधिकार की बात की जाती है।

लेकिन जब असहाय और मजबूर गरीब बच्चों की शिक्षा की बात आती है। तो हर कोई बगले झाकने लगता है। कहने को तो हमारे देश में कई सरकारी स्कूल बने हुए है। जिसमें गरीब बच्चों के लिए पढ़ाई की पुरी व्यवस्था रहती है। लेकिन इन स्कूल तक बच्चों को लेकर आने की कोई पहल नहीं होती है। गरीब बच्चें इन स्कूलों के सामने ही मजदूरी करते हैं। लेकिन कोई ऐसा रहनुमा नहीं मिलता जो उन्हें इन स्कूल तक पहुंचा सकें।

ये अक्सर देखा गया है इन गरीब बच्चों की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं होती है। वो स्कूल जा सकें। क्योंकि उनके पास स्कूल जाने के लिए पैसे नहीं होते है। उनके पास पहनने के लिए अच्छे कपड़े नहीं होते है जिसे वो पहन कर स्कूल जा सकें। अगर स्कूल घर से ज्यादा दूर स्थित है तो इन्हें स्कूल तक पहुंचने के लिए कोई साधन नहीं मिलता है।

कई किलो मीटर का पैदल सफर तै कर के ये बच्चें स्कूल जाते है। स्कूल दूर होने की वजह से कई माता-पिता अपनी बेटियों को तो स्कूल ही नहीं जाने देते है। और अगर जाने भी दिया तो सिर्फ पांचवी क्लास तक ही पढऩे देते है। फिर पढ़ाई छुड़ा देते है। इन बच्चियों का भी दिल होता है वो भी आगे पढ़े लेकिन साधनों के अभाव में सब कुछ खतम हो जाता है।

एक वक्त आता है जब गरीब बच्चें अपनी शिक्षा को लेकर इतने बेबस और लाचार हो जाते है वो चाहकर भी आगे नहीं पढ़ सकते है। हमारे देश की वर्तमान सरकार हर बच्चें के लिए शिक्षा के अधिकार की बात करती है। लेकिन जो बच्चें बिल्कुल नहीं पढ़ पाते है या जिनकी पढ़ाई शुरूआत में ही छुड़ा दी गई है। ऐसे बच्चों को स्कूलों तक लाने का कोई इंतजाम नहीं किया गया है।

हर बच्चा अपने देश का भाविष्य होता है। अगर यही बच्चा शिक्षा के अभाव में अपनी जिन्दगी महेन्त मजदूरी करके जीते हुए बड़ा होगा तो ये अपने अपने देश के लिए आगे चलकर क्या कर पायेगा। लेकिन सच्चाई तो ये है। भट्टी को जलाने के लिए जब लकड़ी की जरूरत पड़ती है। तो ये नहीं देखा जाता है। पेड़ हरा भरा है बस काटकर आग में डाल दिया जाता है।

फिर उसमें सोने को तपाकर उझला और चमकदार बनाया जाता है। वैसे ही देश के निर्माण में गरीब और मजदूर वर्ग के लोगों की जरूरत पड़ती है। तो इन असहाय गरीब बच्चों को जानबूझकर शिक्षा से वंचित रखा जाता है। ताकि आगे चलकर निर्माण रूपी भट्टी में उन कोपलों को झोका जा सकें।

वरना हमारे देश की सरकार इतनी असहाय तो नहीं है। देश के प्रत्येक बच्चें को शिक्षा के अधिकार न दिला सकें। ये सोचने वाली बात है। क्या हम ही है जो इन हरे भरे पड़ों की राख बनाने पर तुले है। या फिर हम कुछ कर सकते हैं। लेकिन करने की हिम्मत नहीं रखते है।

गरीब परिवारों में अक्सर ये देखा जाता है। बच्चा थोड़ा बड़ा होता है। के उस पर परिवार की जिम्मेदारी का बोझ डाल दिया जाता है। ऐसे बच्चें फिर सात से आठ साल की छोटी सी उम्र से महेन्त मजदूरी करने लगते है। फिर वो अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाते है। इसलिए जब तक हमारे देश में शक्ति से बाल मजदूरी पे रोक नहीं लगाई जाएगी तब तक ऐसे मासूम बच्चें हमेशा अपने पेट की भूख मिटाने के लिए शिक्षा से वंचित होते रहेगें।

हमारे देश में एक ऐसे वर्ग के लोग भी रहते है। जो हमेशा खानाबदोश की तरह अपनी जिन्दगी बसर करते है। ऐसे लोग भी न तो खुद पढ़ते न ही कही एक जगह स्थाई रह कर अपने बच्चों को पढ़ाते है। एक वो लोग भी होते है जो सिर्फ भीख मागकर अपनी जिन्दगी जीते है। ये लोग कभी शिक्षा की अहमियत को नहीं समझते है।

इसलिए हमारे देश की वर्तमान सरकार को एक ऐसा कानून बनाना चाहिए जो अभिभावक अपने बच्चों को जानबुझकर शिक्षा से वंचित रखते है। और अपने बच्चों को स्कूलों तक पहुंचाने की हर सम्भव कोशिश नहीं करते है। उनपर जुर्माना लगया जाना चाहिए। जो अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल पहुंचाने चाहते है। लेकिन अपनी गरीबी की वजह से मजबूर हो जाते है।

ऐसे अभिभावकों की प्रशासन के द्वारा हर संभव मदद की जानी चाहिए। प्रशासन को देखना चाहिए जो बच्चें स्कूल टाईम में महेन्त मजदूरी कर रहे हैं। या भीख मांग रहें हैं। तो ऐसे बच्चों प्रशासन द्वारा पकड़ कर पुछना चाहिए के वो स्कूल क्यों नहीं जा रहें है। और अगर ऐसे बच्चों को जानबुझकर शिक्षा से वंचित रखा जा रहा है। तो संबंधित व्यक्ति पर कार्यवाही की जानी चाहिए।
बच्चें हमारे देश का आने वाला भाविष्य है। अगर इनका मुस्तकबिल रोशन होगा तो हमारे देश आगे चलकर सफलता की नई-नई ऊंचाईयों को छुएगा।

सैयद शबाना अली
हरदा मध्यप्रदेश