ये पहली बार नहीं हैं देश की किसी बैबस बेटी की मौत पर आसूं बहा रहा है हमारा देश। लाखों ऐसी बेटियां हैं हमारे देश की जिनकी मौत पर हम आसूं बहा चुके हैं। इंसाफ की मांग करते -करते हमारे कदम ही थक गए। लेकिन इंसाफ नहीं मिला और हम बेबस अपनी मजबूरी पर रोते रह गए। इंसाफ की जैसे अब मन से उम्मीद खतम सी हो गई किससे इंसाफ की उम्मीद करें। कोई रहनुमा ही नजर नहीं आता हैं।
एक बाबुल अपनी बागियां में बड़े प्यार से इन फूलों को उगाता हैं। फिर अपनी जिन्दगी के दिन रात नहीं देखता अपनी सारी खुशियां उस फूल को सहजने में लगा देता हैं। और जब ये फूल खिलकर दुनिया में अपनी खुश्बू बिखेरने लगता है। और बुलंदियों की नई ऊचाई छुने लगता हैं। उस दिन उस बागवा का कलेजा खुशियों से खिल उठता है। लेकिन फिर अचानक एक राक्षस आता है। और वो बड़ी बेहरमी से बाबुल के उस बाग को उजाड़ देता हैं।
फिर ये मजबूर इंसान अपनी आंखों में आसूं लिये दुनिया से इंसाफ की उम्मीद करता है। के शायद कोई उसे इंसाफ दिला दें। उसके आसूंओं की कीमत तो नहीं मागंता वो बस अपने फूल की बिखरे हुए अरमानों का इंसाफ मागंता हैं। लेकिन यहां भी उसे ठोकरों के सिवा कुछ नहीं मिलता जैसे उसने फूलों का बाग लगा कर गलती कर दी हो।
कब तक हम इस तरह से आसूं बहाएंगे। और पत्थर हो चुके दिलों से इंसाफ की उम्मीद करेंगे। कहने को तो हम उस देश के नागरिक कहलाते हैं। जहां पर बेटियों को देवी की तरह पूजा जाता है। लेकिन क्या यही हमारे देश के संस्कार है।
आज देश की हर बेटी एक डर के साये में जी रही हैं। वो स्कूल कॉलेज जाते हुए डरती है। रात में ट्रेन या बस में सफर करने से डरती हैं। वो अकेले किसी गली या सुने रास्ते से गुजरने से डरती है। वो देर रात तक ऑफिस में काम करने से डरती है। मेट्रों में देर रात सफर करने से डरती हैं। रात के दस बजे के बाद लिफट का इस्तेमाल करने से डरती हैं।
जब भी वो घर से बहार निकलती हैं। एक डर का साया उनके साथ होता हैं। कहीं कोई हादसा न हो जाये। आखिर क्यों हर दिन हर रात एक डर के साये में जीने को मजबूर हैं भारत की बेटी? कहने को तो हमारे देश ने बहुत तरक्की कर ली हैं। और हर फिल्ड में महिलाएं पुरूषों के साथ बराबरी से काम कर रही हैं।
लेकिन फिर भी हमारे देश में महिलाओं बेटियों की सुरक्षा को लेकर संदेह बना रहता है। कब तक ऐसा ही चलता रहेंगा? इस डर के ख्रौफनाक साये कब भारत की बेटियों को निजात मिलेगी? ये एक ऐसा सवाल है जिसका जबाव आज भारत की हर बेटी को चाहिए।
पहले हमारा देश जितना अपनी संस्कार और संस्कृति और अच्छाईयों के लिए पहचाना जाता था। आज उतना ही देश की बेटियों पर हो रहें अत्याचार के लिए प्रसिद्ध हैं। ये सब क्यों हो रहा हैं? क्या पुरूषवादी समाज में बेटियों को सम्मान के साथ जीने का हक नहीं हैं।
आज देश की हर बेटी अपनी वर्तमान सरकार से एक ही सवाल पूछ रही है। उन्होंने इतने सालों के अपने कार्यकाल में ऐसा क्या किया है? जिससे देश की बेटी अपने ही देश में सुरक्षित नहीं महसूस कर रही है। अगर कुछ किया है तो उसका असर क्यों नहीं दिखाई देता है।
जालिमों के हौसले अभी भी इतने बुलंद क्यों हैं? और देश में माहिलाओं और बेटियों के साथ हो रहें अपराधिक मामले दिन प्रतिदिन बड़ क्यों रहें हैं? वो क्या करण है जिससे आपराधियों को देश के कानून से डर नहीं हैं। ओर कब तक देश में हर बेटी अपने घर में अपने ही ऑफिस में अपने ही स्कूल कॉलेज में सुरक्षित नहीं रहेगी। मौत ये साये कब तक उसका पिछा करेंगे।
क्या अब भी मौजूदा सरकार ऐसा कोई कानून नहीं बनाएंगी जिससे डरकर इस तरह के अपरधों पर रोक लगाई जा सकें?
हमारे देश की सरकार क्यों नहीं उन देशों के कानून पर गौर करती जहां की बेटी सुरक्षा के साथ अपनी जिन्दगी जी रही हैं। हमारे देश में भी बेटियों की सुरक्षा के लिए एक ऐसा कानून बनाया जाए जिसमें इस तरह के अपराधिक मामलों में हैंड टू हैंड सजा का प्रावधान हो। ताकि अपराधी देश के कानून से डर कर ऐसा अपराध न करें। और देश की बेटियों को सुरक्षा के साथ जिन्दगी जीने का हक मिलें।
Syed Shabana Ali
Harda (M.P.)