1964 की हाइएस्ट ग्रोसिंग फिल्म बनी थी ‘दोस्ती’ उस दौर में की थी 2 करोड़ रुपये की कमाई
‘चाहूंगा मैं तूझे सांझ सवेरे, फिर भी मगर अब नाम को तेरे आवाज मैं ना दूंगा….गीत रहा ’ब्लॉकबस्टर
दोस्ती 1964 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है जिसके निर्देशक सत्येन बोस और निर्माता अपने राजश्री प्रोडक्शन्स के तले ताराचंद बडज़ात्या हैं। जैसा फिल्म का नाम है, यह फिल्म एक अपाहिज लडक़े और एक अन्धे लडक़े के बीच दोस्ती को दर्शाती है। इस फिल्म को 1964 के फिल्मफ़ेयर पुरस्कारों में छ: पुरस्कारों से नवाज़ा गया जिसमें फिल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फिल्म पुरस्कार भी शामिल है। यह फिल्म उस वर्ष की 10 सबसे ज़्यादा चलने वाली फिल्मों में एक थी और बॉक्स ऑफिस में सुपर हिट मानी गयी। यह फिल्म संजय ख़ान की पहली फिल्म है। साल 1964 में सत्येन बोस द्वारा निर्देशित फिल्म दोस्ती ने रिलीज़ होते ही पूरे देश में धूम मचा दी।
इसके सभी गाने इतने पॉप्युलर हुए कि चारों तरफ़ उन्हीं की गूंज सुनाई देती थी। चाहे फिल्म की कहानी हो, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का संगीत, रफ़ी साहब की मधुर आवाज़ हो या फिर सुशील कुमार और सुधीर कुमार की अदाकारी, इस फिल्म ने न सिर्फ़ देश, बल्कि विदेशों में भी लोगों को अपना दीवाना बना दिया था। यह फिल्म 4थे मॉस्को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में भी शामिल हुई थी और सबसे बड़ी बात उस ज़माने में भी फिल्म ने 2 करोड़ का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन किया था।
फिल्म की रिलीज़ के साथ ही दोनों सितारे सुशील कुमार और सुधीर कुमार रातोंरात स्टार बन गए। यह फिल्म कितनी बेहतरीन है इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि इस फिल्म को उस साल का नेशनल अवॉर्ड फॉर बेस्ट फीचर फिल्म इन हिंदी का अवार्ड मिला। इसके अलावा फिल्म को 1965 में फिल्मफेयर के बेस्ट फिल्म, बेस्ट स्टोरी, बेस्ट डायलॉग्स, बेस्ट म्युजक़ि डायरेक्शन जैसे अवॉर्ड्स मिले।
फिल्म में 6 गाने थे, जिसमें से 5 मोहम्मद रफी और एक लता मंगेशकर ने गाया था। उसके गाने चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे, राही मनवा दु:ख की चिंता, कोई जब राह न पाए, मेरा जो भी कदम है, जाने वालों जऱा मुडक़े देखो यहां आज भी उतने ही पॉप्युलर हैं।
‘चाहूंगा मैं तूझे सांझ सवेरे… कैसें बना 60 के दौर का सबसे हीट गीत
सत्येन बोस ने जब ‘दोस्ती’ फिल्म के संगीत की जिम्मेदारी लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को दी तो उनके जेहन में गानों के लिए मो. रफी का ही नाम आया क्योंकि वे उनके साथ कई बार काम कर चुके थे। संगीतकार जोड़ी ने फिल्म के लिए जो धुनें बनाई वे रफी साहब को काफी पसंद आईं। इसके साथ ही इस संगीतकार जोड़ी ने उन्हें एक धुन और सुनाई जिसे वे रिजेक्ट कर चुके थे। जैसे ही रफी साहब ने वह सुनी वे उसमें खो गए और खुशी से उछल पड़े। रफी साहब ने कहा ये गाना जरूर फिल्म में होगा।
जब यह गाना लिखा गया था तो यह लव एंगल को ध्यान में रखते हुए लिखा गया था। लेकिन इसे पिक्चराइज दो दोस्तों के बीच के प्यार को दिखाते हुए किया गया। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल इस गाने को लेने में झिझक रहे थे। इस रफी साहब ने कहा था, ‘मैं इस गाने की सफलता की गारंटी लेता हूं और देखना यह फिल्म का सबसे सफल गीत होगा।’ ऐसा ही हुआ भी, जब फिल्म सामने आई तो यह फिल्म का सबसे हिट गाना बन गया। ‘चाहूंगा मैं तूझे सांझ सवेरे, फिर भी मगर अब नाम को तेरे आवाज मैं ना दूंगा….’ब्लॉकबस्टर रहा था।
मनोरंजन जगत में कई संगीतकार जोडियां रही हैं, जिन्होंने अपने संगीत के जादू से गानों को इस कदर सजाया कि वे फिल्मों जान बन जाया करते थे। कई दफा ऐसा भी होता था कि भले ही फिल्म ना चले लेकिन उसका संगीत हिट हो जाया करता था। लेकिन दोस्त फिल्म उसके गाने दोनों ही सुफरहिट रहें। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल इनके रचे संगीत पर दुनिया दीवानी हो जाती थी।
इस जोड़ी के मोहम्मद रफी के साथ भी कई गाने हैं। एक दफा इस जोड़ी ने 1 गीत को रिजेक्ट कर दिया था लेकिन मो. रफी उस गाने के लिए जिद पर अड़ गए थे। दोस्ती फिल्म 6 नवम्बर 1964 को रिलीज हुई थी। दो दोस्तों की इस कहानी को लोगों ने काफी पसंद किया था और यह उस दौर की सफल फिल्मों में शामिल हुई थी। आज भी अगर कोई इस फिल्म को देखता है, तो इस की कहानी में खो सा जाता है। बता दें कि साल 1964 की यह हाइएस्ट ग्रोसिंग फिल्म बनी थी और इसने उस दौर में 2 करोड़ रुपये की कमाई की थी