Why is our country's childhood sleeping before its time?Editorial

उस जालिम ने तो किसी मासूम बैगुनाह को आधा घंटा भी जिने को हक नहीं दिया था। लेकिन हमारे देश का कानून तो ऐसा हैं। अपराधी अराम से खुले आसमान के नीचें अपनी पुरी जिन्दगी ऐश के साथ जीने का हक देता हैं।

कहते है बचपन बहुत ही मासूम होता हैं। इंसानी जीवन का यह वह रूप होता है। जो हर बुराई से पाक होता है। न ही बच्चों के मन में किसी के लिए ईषा होती है न ही जलन वो न तो किसी का बुरा सोचते हैं। न ही किसी के लिए बुरा करते हैं।

मासूम दिल में हजारों ख्वाहिश होती हैं, जिन्दगी जिने की। लेकिन कभी-कभी सच के आगे जिन्दगी इतनी मजबूर हो जाती हैं। सारी ख्वाहिशे अधूरी रह जाती हैं। जालिमों के जुल्म से ये बेगुनाह जिन्दगी सिसक के रह जाती हैं।

कहीं गरीबी में भुख पास से ये अपना अस्तित्व खो रही हैं। तो कही जालिमों के जुल्म का शिकार होकर मौत के आगोश में सो रहा हैं। पहले बचपन खुले आसमान के नीचे अपना पंख फैलाएं उठता था। लेकिन आज ये चार दिवारी कैद में होकर रह गया हैं। क्योंकि पहले बच्चों को लेकर दुनिया की सोच बहुत अलग थी। हर इंसान उनकी मासूमियत पर तरस खाता था। लेकिन आज जुल्म की आंखे इतनी वहशी हो गई हैं। उनको मासूम बच्चों की मासूमियत पर भी तरस नहीं आता हैं।

इसलिए तो आज हर अभिवावक मजबूर होकर अपने बच्चों को अकेले बहार जाने देने में डरने लगें हैं। कब हाथ फैलाएं खड़ी मौत उनके सामने आकर खड़ी हो जाएं। मासूम दिल खौफ से धडक़ना बंद हो जाएं।

आज हमारे देश ने इतनी तरक्की कर ली हैं। चांद पर पहुंचने में कामयाब हो गया हैं। लेकिन इसी देश में आज ऐसे लोग भी रहते हैं जिनकी सोच इतनी घिनोनी होती हैं, जो जमीन में भी हजारों हाथ नीचे होती हैं। इसलिए तो हमारे देश में आये दिन बच्चों पर हो रहे अत्याचार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। और हमारे देश की सियासत पर ऐश कर रहें लोग इस गंभीर समस्या को नजरअंदाज करके बस अपनी कमयाबी का जश्र मानते हुए अपनी तिजौरी भरने में लगे हुए हैं। उनको तो रातों में इसलिए नींद नहीं आती हैं कहीं उनकी तिजोरी में रखा एक सिक्का कम तो नहीं हो गया हैं। फिर यहीं लोग सुबह उठ कर किसी की मासूम जिन्दगी को बाजार में ले जाकर बैच देते हैं। ताकि एक सिक्के की कमी दस तिजोरी भर कर पुरी हो जाएं। क्योंकि ये बात सच हैं बिना एक हाथ से ताली कभी नहीं बजती है। जब तक दोनों हाथों को मिलाया नहीं गया हो। ये बात जहिर हैं। मासूम बच्चों पर हमारे देश में अपराधों का सिलसिला जिस तेजी से बढ़ रहा हैं। उसमें कहीं न कहीं प्रशासन की भी सबसे बड़ी लापरवाही सामने आती हैं।

ज्यादा से ज्यादा मामलों में प्रशासन खुद ऐसे अपराधियों को शरण देने का काम कर रहा हैं। ये एक की करतूत हो तो कोई भी निपट लें। पर पुरी कानुनी व्यवस्था में ही झोल हैं तो कोई क्या करें।

सच तो ये भी हैं ऐसे अपराधों में कोई भी नेता राजनेता अपने जिगर के टुकड़े को नहीं खोता हैं। दुनिया उजड़ती हैं। तो किसी गरीब की उजड़ती हैं। माँ की गौद खाली होती हैं तो किसी गरीब की होती हैं। आंसूओं से तर और बैवस हो चुकी आंखों के सामने खुन से लथपथ वो अपने कलेजे के टुकड़े को देखते रह जाते हैं।

अब जब दुनिया ही उजड़ गई तो इंसाफ की उम्मीद किससे करें। क्या ये नहीं हो सकता हैं? चांद पर पहुंच जाने का दवा करने वाले हमारे नेता जी देश में कोई ऐसी कानून व्यवस्था का निर्माण करें के बच्चों पर होने वाले अपराध के मामले में हैड टू हैड सजा देने का अपधान हो अपराध होने के अगले ही दिन इस मामले में गिरफतार अपराधी पर पुरी कारवाही हो। और दुसरे दिन सजाएं मौत।

क्योंकि उसने तो किसी मासूम बैगुनाह को आधा घंटा भी जिने को हक नहीं दिया था। लेकिन हमारे देश का कानून तो ऐसा हैं। अपराधी अराम से खुले आसमान के नीचें अपनी पुरी जिन्दगी ऐश के साथ जीने का हक देता हैं। सजा तो उस मासूम के परिवार को मिलती हैं। जिसने अपने जिगर के टुकड़े को ही नहीं खोया बल्कि उसके बाद कानून और सिहासत के लगातार दवाब को झेला।

क्योंकि ऐसे मामले ज्यादा से ज्यादा अपराधी ऐसे होते जिनकों उहदे पर बैठे लोगों की भरपुर बचाने की कोशिश होती हैं।

हमारे देश में साल 2020 की तुलना में 2021 में बच्चों के खिलाफ अपराधों की संख्या में चिंताजनक वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 में बच्चों के खिलाफ हिंसा के दर्ज मामले 1,28,531 थे, जो कि 2021 में 16.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 1,49,404 हो गए। अकेले 2022 में, बाल बलात्कार और प्रवेशन हमलों के 38,911 मामले दर्ज किए गए, जो 2021 में 36,381 मामलों से उल्लेखनीय वृद्धि है। 2020 के लिए संख्या 30,705 और 2019 के लिए 31,132 थी।

इन पांच साल के एनसीआरबी आंकड़ों पर नजऱ डालने से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश लापता बच्चों की सबसे बड़ी संख्या वाले चार्ट में शीर्ष पर हैं। लापता लड़कियों की संख्या भी लापता लडक़ों की तुलना में बहुत अधिक है।

2022 के आंकड़ों से पता चला है कि पश्चिम बंगाल में लापता बच्चों की संख्या सबसे अधिक है 12,455 (1,884 लडक़े और 10,571 लड़कियां) और 11,352 बच्चों (2,286 लडक़े और 9,066 लड़कियां) के साथ मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर है।

2021 में मध्य प्रदेश ने 11,607 बच्चों (2,200 लडक़े और 9,407 लड़कियां) के लापता होने की सूचना दी, इसके बाद पश्चिम बंगाल में 9,996 बच्चे (1,518 लडक़े और 8,478 लड़कियां) लापता थे।

2020 में, 7,230 लड़कियों सहित 8,751 लापता बच्चों के साथ मध्य प्रदेश शीर्ष पर रहा। पश्चिम बंगाल 7,648 लापता बच्चों (1,008 लडक़े और 6,640 लड़कियां) के साथ दूसरे स्थान पर था। 2019 में मध्य प्रदेश फिर से सूची में शीर्ष पर रहा, जहां 11,022 बच्चे लापता थे, जिनमें 8,572 लड़कियां शामिल थीं।

वैसे ये आकड़ें देश में हो रहें मासूमों पर अपराध की एक धुधली तस्वीर हमारे सामने पैश करते हैं। ऐसे मामलों में बहुत से अपराध ऐसे होते हैं। जिसको यूहीं दवा दिया जाता हैं। अगर सभी मामले खुलकर सामने आये तो इसके आकड़ें और भी ज्यादा चौका देने वाले हो सकते हैं।

ये बात किसी से छुपी नहीं हैं। हमारे देश में 15 सालों से किसकी सरकार हैं। प्रशासन पे राज करने वाले ये नेता बस करोड़ों के सूट बूट पहन कर दूसरों देशों में दवाते लुत्फ उठाने में ही अपनी जिन्दगी काट रहें या फिर अपने देश के लिए कुछ कर भी रहें हैं। कभी कर रहें होते तो अपने देश के भविष्य कहलाने वाले बच्चों का आज ये हाल नहीं होता। आज आकड़े तो सिर्फ पांच साल के हैं। कभी पुरी तस्वीर सामने होगी तो ये सूट बूट पहन कर आईने में अपना घिनोना चहेरा देख पाएगें। बात तो यही पर खतम होती हैं जिसका जलता हैं। दर्द भी उसी को होता हैं। सच ही तो जाहिर हो रहा हैं।

अगर ये सच नहीं तो हमारा देश के नेता दुनिया के उन देशों से सबक हासिल करें जो दुनिया में अपने देश की तरक्की के मामले में ही शीर्ष पर नहीं हैं। बल्कि वहां पर मासूम बच्चों की सुरक्षा के भी बेहतर से बहेतर इंतजाम हैं। सऊदी अरब जैसे बढ़े देश में बाल अपराध को लेकर सीधे मौत की सजा दी जाती हैं। जिससे वहां पर ऐसे अपराध करने वाले अपराधियों में खौफ रहता हैं। कभी हमने किसी की जिन्दगी को मौत के आगोश में सुलाने की कोशिश की तो हमारे ऊपर भी कब मौत का पलट बार हो जाएं पता ही नहीं चलें।

यह पर मजबूत कानून प्रवर्तन ही नहीं है साथ ही कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। सभी प्रकार के अपराधों के लिए किसी के सामाजिक वर्ग या पदवी की परवाह किए बिना दंडित किया जाता है। यहां पर अपराध के लिए अपराधी को एक बराबर की सजा दी जाती हैं। कोई नेता हो या गरीब अमीर हर वर्ग में अपराधी बस अपराधी ही होता हैं। चाहे उसका किसी से भी तालुक हो कोई फ्रक नहीं पढ़ता हैं। काश हमारे देश में भी ऐसा होता। हमारे देश में तो कभी अपराधी कभी किसी नेता के घर का नौकर भी हो तो उसके अपराध को नजरअंदाज कर दिया जाता हैं। और इसका उसको भरपुर फायदा होता हैं।

अब जिस तरह से हमारे देश में मासूम जिन्दगियां खतरे में हैं। हमें भी हमारी कानून व्यवस्था को ऐसा ही कडक़ बनाने की जरूरत हैं। जहां अपराध करने से पहले ही अपराधी का कलेजा डर से कांप जाएं। कभी हमारे देश के नेता लोग दुनिया के ऐसे देशों का हर साल दौरा कर के उनके साथ दोस्ती का रिस्ता निभा सकते हैं। तो ऐसे देशों की कानून व्यवस्था को अपने देश मेें ऐसे गंभीर मामलों अपनाने क्या हर्ज है। इसमें कुछ बुरा नहीं हैं। जब हम उनकी रोटी खाकर पेट में पचा सकते हैं। कानूनी व्यवस्था अपनाने में पाचन शक्ति कम नहीं हो जाएंगी। अब ये सोचने वाली बात हम कहां से चले थे कहां पर पहुंच पाए हैं। कहीं चांद पर पहुंचने का हमारा दवा झुठा तो नहीं क्योंकि सोच के मामले में तो हम और जमीन अरबों पुट नीचे चले गए हैं। अब देश के भविष्य को बचाने की जिम्मेदारी हमने किन हाथों में सोफ रखी हैं। ये सोचने वाली बात हैं।

Syed Shabana Ali

Harda (M.P.)