की ख्वाहिश जो खुशी की,
तो हाथ में दो गज जमीन की मिट्टी आई,
अरमान हमारे सब खाक हो गए,
जख्म दिल के जज्बात हो गए,
ऐसे चली गमों की हवा,
फिर कुछ नहीं वाकी रहा,
ले चली फिर जिन्दगी हमें मौत के करीब,
जिन्दगी की कोई तमन्ना काम न आई,
की ख्वाहिश जो खुशी की,
तो हाथ में दो गज जमीन की मिट्टी आई…
न जाने ये कैसी किस्मत पाए थे हम,
अपने बिखरे अरमानों पर आसूं बहाएं थे हम,
ऐसी बरबाद हुई फिर जिन्दगी हमारी,
फिर कोई हसरत काम न आई,
की ख्वाहिश जो खुशी की,
तो हाथ में दो गज जमीन की मिट्टी आई…
ऐसा न था खुशियां कभी हमारे पास न आई,
हर बार उन्होंने साथ निभाने की थी तैयारी,
हम ही खुशियों से वफा का रिस्ता निभा न पाए,
आंखों में आसूं लेकर थे मुस्कुराएं,
फिर कोई खुशी हमारे काम न आई,
की ख्वाहिश जो खुशी की,
तो हाथ में दो गज जमीन की मिट्टी आई…
सैयद शबाना अली