हमारे देश की बुनियाद मजदूरों पर हैं। मजदूर ही हमारे देश की नींव हैं। ये ऐसी नींव है जिसकी मेहनत हमे दिखाई नहीं देती है या फिर हम देश की उन्नती में उसके योगदान और मेहनत को नजरअंदाज कर देते हैं। ये हमारे देश का वो इंसान हैं जो दूसरे के ख्वाबों के महलों को अपने हाथों से बनाता हैं। लेकिन जब खुद तकलीफ में हो और इस महल के साये में खड़े होने की सोचे तो नहीं हो पाता हैं।
अगर हम अपने देश की तरक्की की ही बात करें तो बिना मजदूरों के योगदान के हम कुछ नहीं कर सकते हैं। हर सफलता के पीछे इसका ही हाथ होता हैं। लेकिन वाहवाही का सहेरा कोई अमीर के सर बांध दिया जाता हैं।
कोन हैं ये? क्या वजूद हैं इसका? कोई नहीं जानता न ही कभी जानने की कोशिश करता हैं। ये दिन रात धूप में तप कर चंद पैसों के लिए अपने वजूद को मिटाता रहता है। खुद अपने पेट को कुछ नहीं खाता हैं। लेकिन अपने बच्चों को भूखा पेट नहीं सोने देना चाहता हैं। इसलिए तो पल-पल ये मिटता रहता हैं। और सियासत इसको मिटाती रहती हैं।
काश इसकी जिन्दगी में भी वो पल आए जब कोई इसके वजूद को समझ पाए। और इस दौलत के पहाड़ खड़ी करने वाली दुनिया इसका भी कोई अस्तित्व हो।
वैसे मजदूरों के हक की बात कई बार उठाई जाती हैं। जब सियासत का पलड़ा औधे मुंह गिरने लगता हैं तो इसको हाथ पकड़ के सामने लाकर खड़ा किया जाता है। और इसके नाम पर हजारों योजनाएं बना दी जाती हैं।
लेकिन इन योजनाओं का अस्तित्व इसके अस्तित्व की तरह ही होता हैं। जो न तो इसके जीते जी इसकी तकलीफ को कम कर पाती हैं न ही इसके मरने के वक्त इसके काम आ पाती हैं। क्योंकि इसका भी लाभ वो ही सियासत के चमचे उठा ले जाते हैं। जिनके सर पर हुकूमत का ताज होता हैं। ये जहां से चला था। वहीं खड़ा रह जाता हैं। एक बार फिर इसके अस्तित्व को अमीरी अपने पैरों तले रौद देती हैं। और इसके हाथ में आंसू के सिवा कुछ हाथ नहीं आता हैं।
ये मजदूर ही है जो दो वक्त की रोटी के लिए धुप में तपता हैं। फिर भी इसके सर पर रहने को छत नहीं होती हैं। ये बारिश होने पर किचड़ में नंगे पैर चलता हैं। पर इसके बच्चों के तन पर कपड़ें नहीं होते हैं। ये कडक़ड़ती ठंड में अपने सर पर बोझा ढोता हैं। लेकिन इसके और इसके बच्चों के पास खाने को दो वक्त की रोटी नहीं होती है।
अमीरों के बच्चे ठाट से बड़े-बड़े स्कूलों में पढ़ते हैं। इसका बच्चा जिन सरकारी स्कूलों में पढ़ता हैं। वहां छत के नाम पर टिन शेड होते हैं। जमीन के नाम पर फर्सी होती हैं। और पंखों के नाम पर कुदरती हवा। लेकिन फिर भी ये देश का नाम रोशन कर जाते हैं। ये इनका भाग्य है या मजबूरी जो इनको इतना विवश कर दिया जाता हैं। ये अपना सर उठा कर जी नहीं पाएं।
हमारे देश में आज भी मजदूरों की स्थिति इतनी अच्छी नहीं हैं। इसका प्रमुख कारण यही हैं। हमारे देश की सरकार और बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों और अमीर वर्ग के लोग इनके हक में कुछ करने के बारे में नहीं सोचते है। ये लोग इन लोगों को अपने पैरों तले दबाकर रखने में विश्वास रखते हैं।
जब तक हमारे देश में इन लोगों के हक में आगे बढक़र कुछ नहीं किया जाएगा, इनका विकास होना न मुमकिन हैं। हमारी सरकारों को चाहिए की इनको भी देश में सामाजिक सुरक्षा, न्याय एवं जिन्दगी जीने का अधिकार दिया जाए। इनके अस्तित्व को भी देश की उन्नति में समझा जाएं।
हमारे देश में मजदूरों की स्थिति बहुत चिंताजनक है। हमारे देश के नीति-निर्माताओं को समझना होगा कि किसी भी संस्था, उद्योगों और देश के निर्माण में मज़दूरों, कामगारों और मेहनतकशों लोगों की बहुत ही अहम भूमिका होती है। ये वो लोग होते है जो देश की कामयाबी के लिए दिन रात नहीं देखते हैं।
लेकिन इनके अस्तित्व को भुला देना ये देश की तरक्की के लिए बिल्कुल सही नहीं हैं। किसी भी उद्योग में कामयाबी के लिए उद्योग का मालिक ही सब कुछ नहीं होता हैं। बिना मजदूरों के वो कुछ नहीं कर सकता हैं। ये बात सच है किसी भी देश में मजदूरों की शक्ति के बिना कोई भी औद्योगिक व अन्य विकास सम्भव नहीं हो सकता हैं।
अब ये वक्त है जब हमें समझना होगा मजदूर का मतलब लाचार और गरीबी से नहीं हैं। ये वो इंसान है जो हमारे देश की नींव हैं। मजदूर भी हमारे देश का एक अहम हिस्सा हैं। जिसका हमारी हर सफलता के पीछे अनमोल योगदान होता हैं। हम इसके अस्तित्व को चाह कर भी मिटा नहीं सकते हैं।
आज हमारे देश की सियासत पर राज करने वालों को समझना होगा। देश में जो योजनाएं मजदूरों के लिए बनाई जा रही हैं। असल में उन योजनाओं का लाभ इस मजबूर और शोषित वर्ग को मिल रहा है कि नहीं। क्योंकि भ्रष्टाचार के चलते जिस तरह की स्थिति देखने को मिल रही हैं। वो सही नहीं है हर तरफ इस वर्ग का शोषण ही किया जा रहा हैं।
आज ये हमारा परम कर्तव्य बनता है। अपने देश के मजदूरों का पुरा ध्यान रखें और इन्हें लाचार और मजबूर न बनने दें। क्योंकि वो दिन दूर नहीं जब इनकी लाचारी मजबूरी हमारे और हमारे देश के लिए भारी पढ़ सकती हैं।
क्योंकि मिट्टी में दबे बीज पर भी जब बारिश की पहली फुहार पढ़ती हैं तो वो भी एक कोमल अंकूर बनके अपना सर उंचा कर के खड़ा हो जाता हैं। और एक दिन वो इतना मजबूत हो जाता हैं के वक्त की आंधी भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाती हैं।
Syed Shabana Ali
Harda (M.P.)