The arbitrariness of private schools is weighing heavy on the pockets of parents...Editorial

वर्तमान समय में माता पिता अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिन्तित रहते है आज के समय में हाई एज्यूकेशन का दौर है हर अभिभावक यही चाहता है कि उनका बच्चा पढ़ लिखकर डॉक्टर, इंजिनियर वकील पायलेट आदि बने इसी सपने को पूरा करने के लिए अभिभावक अपने बच्चों को अच्छे से अच्छे प्राइवेट स्कूल में एडमिशन कराते है। और कड़ी मेहनत कर उनकी पढ़ाई का खर्चा उठातें है। लेकिन उनके यही सपने जब धुन्धले पढ़ जाते है जब प्राइवेट स्कूलों की मनमानी उनके ऊपर पढ़ाई के खर्चे का बोझ बढ़ा देती है। प्राइवेट स्कूलों की मनमानी एडमिशन की फीस बढ़ा कर लेना अभिभावकों को स्कूल से ही पुस्तक, बैग व ड्रेस लेने के लिए मजबूर किया जाना। अभिभावक मजबूर हो जाते हैं। उन्हें अगर अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना है तो प्राईवेट स्कूल प्रबंधन की हर मांग को पूरी करें। अगर बच्चें का भविष्य बनाना है तो बच्चें को अच्छे स्कूल में पढ़ाना भी बेहद जरूरी है।

वहीं पहले अभिभावकों पर सिर्फ किताबों स्कूल ड्रेस फीस का बोझ था ये कम नहीं था जो आजकल बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई और सेलेब्स के नाम पर बच्चों और अभिभावकों पर एक नया बोझ मोबाइल का बढ़ा दिया गया है। आजकल प्राईवेट स्कूल के टीचर वाट्स एप पर बच्चों को सेलब्स देते है नोटस वगैरह भी मोबाइल पर भेजते है ऐसे में जिन बच्चों के पास स्मार्ट मोबाइल नहीं है उनको बड़ी दिक्कतों का सामना करना पढ़ता है वहीं बच्चें इस बात की शिकायत स्कूल प्रबंधंन से करते है तो उनका कहना है कि वे अभिभावकों के मोबाईल पर नोट सेलेब्स डाल देगें।

लेकिन जिन बच्चों के घर पर एक ही मोबाईल है वह उनके पिता के पास होता है जब पिता काम से शाम के लोटते है उस वक्त बच्चा मोबाइल से सेलब्स देख पाता है और फिर रात मे जाग कर अपना होमवर्क कर पाते है। मोबाइल स्क्रीन को ज्यादा देर तक देखने से बच्चों की आखों पर भी असर होता है उनकी आखों में दर्द और जलन होने लगती है, वहीं स्कूल प्रबंधन अभिभावकों पर दबाव बना रहे है कि बच्चों को स्मार्ट मोबाइल दिलाएं।

मंहगाई के इस दौर में हर अभिभावक अपने बच्चों मोबाइल खरीदकर नहीं दे सकते है। अगर एक घर के तीन बच्चें पढ़ रहे है तो अभिभावकों को तीन मोबाइल दिलाना पढ़ेगा और साथ में इन मोबाइल का रिर्चाज कराना अभिभावकों की जेब पर भारी पढ़ेगा। वैसे ही अभिभावक बड़ी मेहनत मसकत करके बच्चों की फीस और कॉपी किताबों स्कूल ड्रेस का खर्चा ही व मुश्किल वहन कर पाते है उस पर ये एक नया खर्चा इस मेंहगाई में अभिभावकों की जेब पर भारी पढ़ रहा है।
अगर मध्य प्रदेश के प्राइवेट स्कूलों की बात करें तो कई स्कूल ऐसे हैं जिनकी पढ़ाई नाम मात्र की हैं। बच्चों को स्कूल टिचरों के द्वारा चुना हुआ ही सलेब्स पढ़ाया जाता हैं। और पेपर के टाईम रिविजन के नाम पर नोटस बना के दे दिये जाते हैं। इतना पढ़ लेना इसी में से पेपर में आएगा। जिसकी वजह से बच्चें थोड़ा ही कोस पढ़ पाते हैं। जिसकी वजह से उनका दिमाग का भी विकास नहीं हो पता हैं।

ये बात वही इंसान समझ पाता हैं जिसने पुरानी पढ़ाई देखी हैं। कुछ स्कूल तो बस नाम के वजह से चल रहें हैं। पढ़ाई ऐसी हैं के नाम के इंग्लिश मिडियम स्कूल हैं पर इससे पढऩे वाले बच्चों को न तो इंग्लिश ठीक से आती हैं न ही हिन्दी सीख पाते हैं। मेथस का तो ये हाल बच्चों की काफी चेक करों तो लगता हैं टिचर को ही मेथस पढऩा नहीं आता हैं तो बच्चों को क्या पढाएंगें।

ऐसे हाल में भी स्कूल प्रंबधक को शिकायत करों तो कोई सुनवाई नहीं होती हैं। ऊपर से स्कूल प्रंबधकों की मांगे इतनी बढ गई अभिभावक न चाहकर भी उनके जाल में फसते चले जा रहें हैं।

वहीं अगर अभिभावकों द्वारा अगर बच्चें की फीस भरने में जरा सा लेट हो जाते है तो बच्चों को परिक्षा में नहीं बेठने दिया जाता और अगर बच्चा बहुत मिन्नते करता है तो उसे आधा घंटा लेट बैठने को दिया जाता है जिससे बच्चा अपना पेपर ठीक से नहीं कर पाता हैं। इसका असर उसके रिजल्ट पर पढ़ता है साल भर अभिभावक मेंहनत कर स्कूल प्रबंधन की सारी मांगों को पूरा करते है इसके बावजूद अगर थोड़ा सा भी स्कूल फीस में लेट हो जाते है तो उनका रिजलट रोक लिया जाता है या फिर अगर दूसरे स्कूल कॉलेज में एडमिशन कराना हो तो टीसी नहीं देते बारहवीं की परिक्षा उत्तीर्ण करने के बाद बच्चों को कॉलेज में एडमिशन लेना होता है अगर बच्चें की थोड़ी सी भी फीस बाकी है तो स्कूल प्रब्रधन द्वारा उस बच्चें की टीसी रोक ली जाती है जिसकी वजह से बच्चें का एडमिशन नहीं हो पाता और उनका साल बरवाद हो जाता है।

कई अभिभावकों के द्वारा स्कूल प्रबंधन की शिकायत प्रशासन को की गई लेकिन कोई ठोस कदम नही उठाया गया हैं। यहीं कारण है कि स्कूलों की मनमानी लगातार बढ़ रही है। स्कूल में प्रवेश के समय स्कूल प्रबंधन द्वारा अपने स्कूल की विशेषता बढ़ चढक़र बताते है और अपनी बातो में फंसा लेते है लेकिन जब अभिभावक अपने बच्चों का एडमिशन करा लेते है तो अपना असली रूप दिखातेे है अभिभावकों के पास पछताने के सिवा कोई रास्ता नजर नहीं आता।

मार्कसीट हासिल करना और भी मुश्किल है उस वक्त स्कूल प्रबंधन द्वारा अलग-अलग तरह की मांग रखी जाती है अगर मांग पूरी ना करो तो बच्चें को तरह तरह से परेशान किया जाता है। जो भी स्कूल द्वारा मांग की गई है उसे पूरा करना अभिभावकों की मजबूरी बन गई है।