उदास आंखों से वो नदी में बहते हुए पानी को देख रही थी। कई ऐसे सवाल थे जो वो जिन्दगी से पुछना चाहती थी। कोन था जो उसके इन सवालो के जवाब दे सकता था। शायद कोई भी नहीं? जो अपना था उसे भी तो गर्दीशों में खो चुकी थी वो। किससे कह कुछ समझमें नहीं आता हैं। इसलिए तो कुदरत के इन हसी नजारों को अपना मान लिया था उसने और इन्हीं से सब दिल की बाते कह लेती थी वो।
जानवी की ये आदत थी जब भी वो उदास होती गांव की नदी के किनारे चली जाती और वहां बैठकर पानी में उठती मौजो को देखती रहती। नदी का ये मनमौहक दर्शय उसे बहुत आकर्षित करता। वो घंटों वहां यूही बैठी रहती। शायद वो इस तरह से अपनी अशान्त जिन्दगी में खुशियों के रंग भरने की कोशिश करती वो रंग जो एक दिन उसकी आंखों के आंसूओं के साथ ऐसे बहे फिर दुवारा नहीं मिल सकें।
बचपन में इन रंगों से कितना खेलती थी वो। इन रंगों की बहारो से उसकी जिन्दगी हमेशा हसती मुस्कुराती रहती थी। लेकिन उसे नहीं मालूम था। जिन्दगी में एक दिन ऐसा तुफान आयेगा सब कुछ बिखर के रह जायेगा।
वो आज भी अपनी जिन्दगी में उस दिन को कभी नहीं भुल सकती है। जो उसकी जिन्दगी में बिखरे हुए अरमानों की ऐसी सांझ बनकर आया जिसकी फिर कभी सुबह नहीं हुई।
गांव में मिट्टी से बना छोटा सा घर था उसका जिसमें वो अपने मम्मी पापा और दो छोटे भाई बहनों के साथ खुश रहती थी। जिन्दगी में कुछ नहीं था उसके पास फिर भी कोई गम नहीं था।
हसना मुस्कुराना उसकी जिन्दगी का एक अहम हिस्सा था। पढऩे में बहुत हौशियार थी वो। इसलिए हमेशा अच्छे नम्बरों से पास होती थी। और उसके मम्मी पापा हौसला बढाते थे। लेकिन उसने कभी नहीं सोचा था उसकी जिन्दगी में कभी ऐसा भी मोड़ आयेगा जब जिन्दगी में सब कुछ थम सा जाएगा।
उसे आज भी वो दिन याद है जब वो दसवी क्लास में पढ़ती थी। उसे पढऩे का बहुत शौक था इसलिए बहुत दिल लगाकर पढ़ती थी। ये वो पल थे जब मन में हजारों उम्मीदों के चिंराग रोशन थे। जिसके साये में वो हसती मुस्कुराती अपनी जिन्दगी में आगे बढ़ती जा रही थी।
कोई गम का साया भी नहीं था उसकी जिन्दगी में जिससे कभी आंखों में आंसू आ जाये। इतने प्यार करने वाले मम्मी पापा और भाई बहन थे। दिन भर हसते मुस्कुराते यूहीं कट जाता था। लेकिन एक दिन उसकी जिन्दगी में ऐसा आया जिसने उससे उसके हसने मुस्कुराने का हक भी छीन लिया।
वो उस दिन स्कूल से घर आई तो घर के बहार बहुत भीड़ थी। वो हेरानी से सबकी तरफ देखने लगी। उसके पापा उसे जल्दी से पकडक़र घर में छोड़ दिया घर में भी उतनी ही भीड़ थी। वो कुछ समझ पाती इतने में माँ उसे गले लगा कर रोने लगी। उसका स्कूल बैग उससे लेकर एक कोने में फैक दी।
मौजूदा सब माहिलाएं धीरे-धीरे कह रही थी। बैचारी बच्ची ये कोई उम्र हैं। ये सब दुख देखने की क्या नसीब में लिखाकर आई है क्या करेंगी अब? फिर उसकी माँ उसे कमरे में ले गई और साड़ी देते हुए कहा ये पहन ले बेटा हमें अभी चलना है। लेकिन कहां माँ? ये मैं बाद में तुझे बताऊंगी। माँ ने फिर रोते हुए उसको चुडिय़ा पहना दी बिन्दिया लगा दी।
फिर शुरू हुआ जानवी के लिए कभी न थमने वाला सफर जिसके तुफानों के भंवर में उसकी जिन्दगी ऐसी उलझी के आज तक नहीं सुलझ पाई। सफर खतम होने पर वो जिस मुकाम पर आकर रूकी थी वहां वो अपनी जिन्दगी में पहली बार आई थी। लेकिन जिन्दगी की सारी खुशियां वहीं आकर खतम हो गई थी। वो जिस मुकाम पर पहुंची थी। वहां भी गम का ही माहौल था।
उसके आते ही सब उससे लिपट-लिपट कर रो रहे थे। उसे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था ये सब क्या हो रहा है उसके साथ? मासूम दिल एक अजीब सी उलझन में था। वो बहुत बैचेन थी। ये सब क्या हो रहा है उसके साथ।
अचानक एक माहिला ने आकर जानवी को पकडक़र ले गई और कहा आखरी बार अपने पति का चेहरा देख ले बेटा फिर दुवारा ये चेहरा तुझे कभी देखने को नहीं मिलेगा।
वो आखरी पल था जब जानवी ने सूरज को देखा था। ये तो वहीं चेहरा था जो अक्सर बार-बार उसका पीछा करता था। उसे देख देख मुस्कुराता था। वो वहीं घुटने के बल गिर गई थी। जैसे सासे थम सी गई थी उसकी।
उस माहिला ने जो सूरज की माँ थी सूरज का निर्जीव हो चुके हाथ को पकडक़र जानवी की मांग में सिन्दुर भर दी फिर उसी हाथ से उस सिन्दुर को पोछ दिया। अब जानवी वहीं बेहोश हो गई थी।
कई घंटो तक उसे होश नहीं आया। होश आया तो माँ ने उसे बताया जब वो चार साल की थी तब उन्होंने उसका और सूरज का बाल विवाह किया था। वो अब उसका गौना करने की सोच रहे थे के अचानक…।
अब जानवी को अहसास हो रहा था। क्यों बार-बार सूरज उसका पीछा करता था। उससे मिलने और बात करने की कोशिश करता था। लेकिन वो हमेशा अपने संस्कारों में बंधी कभी सूरज पर ध्यान नहीं देती। लेकिन आज उसे इस बात का अहसास था क्यों किसी ने उसे उसकी जिन्दगी की इतनी बड़ी सच्चाई नहीं बताई।
सूरज के जाने के बाद जानवी अकेली हो गई थी। उसकी जिन्दगी के सारे रंग कहीं बिखर गए थे। सूरज के जाने के बाद उसके मम्मी पापा उसे दुवारा अपने घर ले आये थे। वो उस वक्त इतना ज्यादा टेंशन में थी कुछ नहीं कर पा रही थी। उसकी जिन्दगी के कई साल यूहीं रोते हुए गुजर गये।
फिर धीरे-धीरे उसने सूरज की यादों के सहारे जीना सिख लिया। और आगे मन लगा कर पढऩे लगी। पढ़ाई के बाद अपने गांव के ही स्कूल में पढ़ाने लगी। उसके गांव में अब कभी कोई बाल विवाह न हो वो पुरा ध्यान रखती। और बाल विवाह के प्रति सब को जागरूक करती। ताकि जैसे एक पल में उसकी जिन्दगी की खुशियां उससे छिन गई ऐसा कभी दुवारा किसी मासूम के साथ न हो।
लेकिन सूरज की यादों के भंवर में वो अपने आपको हमेशा उलझा हुआ सा महसूस करती कभी सूरज के हसते मुस्कुराते चेहरे को याद करके मुस्कुराने लगती तो कभी आखरी वक्त का वो मंझर उसे अन्दर तक से तोड़ कर रख देता।
जिन्दगी की इस ही कसमाकश में जानवी के जिन्दगी के दिन कट रहे थे। जब जिन्दगी की ये उलझने उसे तोडक़र रख देती तो वो यूहीं गांव की नदी के किनारे आ कर बैठ जाती और घंटों यूहीं रोते रहती। और सोचते रहती क्यों उसके साथ ऐसा हुआ?