He was not only rich in voice but also in character.....Mohammad RafiMohammad Rafi

Mohammad Rafi

Birth Anniversary Special

24 December 1924

मोहम्मद रफी हमारे देश की वो शख्सियत है जो किसी पहचान की मोहताज नहीं है। उन्हें शहंशाह-ए-तरन्नुम के नाम से जाना जाता है। कुदरत ने उनको ऐसी दिलकश आवाज अता कि जो दुबारा किसी को न मिली ये वो आवाज थी जो हर रंग में यूं ढल जाती थी। पहचानने वाला भी धोखा खा जाता था। इंसानी भावनाओं के हर अंदाज को इस आवाज ने ऐसी पहचान दी जो सदियों के फैर के बाद भी कोई दूसरा न दे सका। और न ही दे सकेगा…

क्योंकि रफी साहब एक ही थे जो दुनियां में अपनी आवाज का ऐसा जादू बिखेर गये जिसके असर से आज तक कोई नहीं बच सका है। रफी साहब के गीतों को आज भी सुनकर देख लें अभी भी वहीं नया पन लगता है। जो कहीं न मिल सका।

अगर एक गीत में इज़हार-ए-इश्क़ की एक सौ एक विधाएं दर्शानी हों तो आप सिर्फ़ एक ही गायक पर अपना पैसा लगा सकते हैं और वो हैं मोहम्मद रफ़ी। चाहे वो किशोर प्रेम का अल्हड़पन हो, दिल टूटने की व्यथा हो, परिपक्व प्रेम के उद्गार हों, प्रेमिका से प्रणय निवेदन हो या सिर्फ़ उसके हुस्न की तारीफ़… मोहम्मद रफ़ी का कोई सानी नहीं था।

प्रेम को छोड़ भी दीजिए मानवीय भावनाओं के जितने भी पहलू हो सकते हैं… दुख, ख़ुशी, आस्था या देशभक्ति या फिर गायकी का कोई भी रूप हो भजन, क़व्वाली, लोकगीत, शास्त्रीय संगीत या गज़़ल, मोहम्मद रफ़ी के तरकश में सभी तीर मौजूद थे। ये वो आवाज है जिसको सुनकर दिल की बागियां फिर से हरी भरी हो जाती है।

कोई कितना भी टेंशन में क्यों न हो अगर इस एक आवाज को वो अपनी जिन्दगी में एक बार सुन लें तो सारी जिन्दगी उस आवाज को सुनकर मुस्कुराता रहें। रफी सहाब की आवाज ही उनकी पहचान नहीं है वो किरदार के भी बहुत धनी इंसान थे। एक बार अगर कोई उनसे मिल लेता तो उनका मुरीद बन जाता था। अपनी प्रसिद्धि का बिल्कुल घमण्ड नहीं था उन्हें बहुत सादा जीवन जीने में विश्वास करते थे।

मोहम्मद रफी बहुत कम बोलने वाले, जरूरत से ज्यादा विनम्र इंसान थे। एक वक्त ऐसा आया जब वो देश के सबसे ज्यादा सुने जाने वाले गायकों में से एक बन गए। लेकिन फिर भी उन्होंने अपने व्यवहार में बिल्कुल तब्दीली नहीं आने दी। जब वो सफलता की बुलंदियों के सितारे थे तब भी वहीं रफी सहाब हुआ करते थे जो कभी बचपन में देखने को मिले थे।

आवाज वो जो लोगों को दिवाना कर दें। किरदार वो जो चाहकर भी कोई जिसके अंदाज से न बच सकें। एक हिसाब से जिन्दगी जीने की एक ऐसी प्रेरणा दे गये रफी सहाब जो हर किसी के लिए एक मिसाल बन कर रह गई।

शहंशाह-ए-तरन्नुम मोहम्मद रफी का जन्म 24 दिसंबर 1924 को हुआ था। अमृतसर के कोटला सुल्तान सिंह में रहने वाले हाजी अली मोहम्मद के घर किलकारी गूंजी थी। नन्हे रफी की किलकारी को तब कौन जानता था कि यही बच्चा एक दिन शहंशाह ऐ तरन्नुम कहलाएगा।

कहते हैं कि रफी जब रब की बनाई दुनिया के तौर तरीके सीख रहे थे इसी दौरान उनके जीवन में एक सूफी फकीर फरिश्ता बनकर आया। ये फकीर गली में गाकर गुजरा करते थे। फकीर की मधुर आवाज मोहम्मद रफी के अंदर फूट रही कला को आकर्षित करती थी और वे भी फकीर के पीछे-पीछे गली के चक्कर लगाया करते थे।

फकीर से ही प्रेरणा लेकर मोहम्मद रफी ने उनकी नकल करना शुरू कर दिया। फिर क्या था। कला ने अपना करिश्मा दिखाया और रफी की नन्ही पतली आवाज लोगों के कानों में शहद घोलने लगी। एक दिन रफी फकीर के गाए गाने को गुनगुना रहे थे कि फकीर लौट आया और रफी साहब की सुरीली आवाज को सुनकर हैरान रह गया। फकीर ने रफी साहब को दुआ दी कि वो एक दिन इसी सुरीली आवाज के दम नाम रौशन करेंगे…

रफी की कला को देखकर उनके भाई ने भी उन्हें संगीत में जाने के लिए प्रेरित किया और उन्हें उस्ताद अब्दुल वाहिद खान के पास संगीत की तालीम के लिए भेज दिया गया।

यहीं से रफी के सुरों में धार पडऩे लगी और इस धार की खनक पूरे देश में गूंज गई। रफी अपने सुरों को साधते 13 साल के हो गए और वो संयोग आ गया जिसने रफी को करियर में पहला पायदान दिया। साल 1931 की बात है। लाहौर में आकाशवाणी पर प्रसिद्ध गायक कुंदन लाल सहगल को गाने के लिए आमंत्रित किया गया था।

खबर मिलते ही सहगल को सुनने के लिए वहां लोगों का हुजूम लग गया। अचानक बिजली चली गई और कुंदन लाल सहगल ने गाना गाने से इंकार कर दिया। यही वो घड़ी थी जब रफी को ऊपरवाले ने मौका दिया था। मोहम्मद रफी के बड़े भाई ने आयोजकों से निवेदन कर रफी को गाने का मौका देने के लिए तैयार कर लिया। 13 के नन्हे रफी जब पहली बार स्टेज पर चढ़े तो लोग हैरान रह गए।

इसके बाद रफी ने गाना शुरू किया और चारों तरफ उनकी आवाज गूंजने लगी। जिसने भी रफी को सुना वो सुनता ही रह गया। गाना पूरा होने के बाद लोगों ने जमकर तालियां पीटीं। इसके बाद रफी ने कभी पीछे मुडक़र नहीं देखा।
संगीतकार नौशाद अक्सर मोहम्मद रफ़ी के बारे में एक दिलचस्प किस्सा सुनाते थे एक बार एक अपराधी को फांसी दी जी रही थी।

उससे उसकी अंतिम इच्छा पूछी गई तो उसने न तो अपने परिवार से मिलने की इच्छा प्रकट की और न ही किसी ख़ास खाने की फऱमाइश। उसकी सिर्फ़ एक इच्छा थी जिसे सुन कर जेल कर्मचारी सन्न रह गए। उसने कहा कि वो मरने से पहले रफ़ी का बैजू बावरा फि़ल्म का गाना ऐ दुनिया के रखवाले सुनना चाहता है। इस पर एक टेप रिकॉर्डर लाया गया और उसके लिए वह गाना बजाया गया।

चार फऱवरी 1980 को श्रीलंका के स्वतंत्रता दिवस पर मोहम्मद रफ़ी को श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में एक शो के लिए आमंत्रित किया गया था। उस दिन उनको सुनने के लिए 12 लाख कोलंबोवासी जमा हुए थे, जो उस समय का विश्व रिकॉर्ड था।

श्रीलंका के राष्ट्रपति जेआर जयवर्धने और प्रधानमंत्री प्रेमदासा उद्घाटन के तुरंत बाद किसी और कार्यक्रम में भाग लेने जाने वाले थे। लेकिन रफ़ी के ज़बर्दस्त गायन ने उन्हें रुकने पर मजबूर कर दिया और वह कार्यक्रम ख़त्म होने तक वहां से हिले नहीं। मोहम्मद रफ़ी की बहू और उन पर एक किताब लिखने वाली यास्मीन ख़ालिद रफ़ी कहती हैं कि रफ़ी की आदत थी कि जब वह विदेश के किसी शो में जाते थे तो वहां की भाषा में एक गीत ज़रूर सुनाते थे।

उस दिन कोलंबो में भी उन्होंने सिंहला में एक गीत सुनाया। लेकिन जैसे ही उन्होंने हिंदी गाने सुनाने शुरू किए भीड़ बेकाबू हो गई और ऐसा तब हुआ जब भीड़ में शायद ही कोई हिंदी समझता था। मोहम्मद रफ़ी के करियर का सबसे बेहतरीन वक्त था 1956 से 1965 तक का समय। इस बीच उन्होंने कुल छह फिल्म फ़ेयर पुरस्कार जीते और रेडियो सीलोन से प्रसारित होने वाले बिनाका गीत माला में दो दशकों तक छाए रहे।

जानेमाने ब्रॉडकास्टर अमीन सयानी मोहम्मद रफ़ी और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के बारे में एक दिलचस्प कहानी सुनाते हैं…सयानी कहते हैं, एक बार लक्ष्मीकांत ने मुझे बताया कि जब वो पहली बार रफ़ी के पास गाना रिकॉर्ड कराने के लिए गए तो उन्होंने उनसे कहा कि हम लोग नए हैं इसलिए हमें कोई प्रोड्यूसर बहुत ज़्यादा पैसे भी नहीं देगा। हमने आपके लिए एक गाना बनाया है। अगर आप इसे गा दें कम पैसों में तो बहुत मेहरबानी होगी।

रफ़ी ने धुन सुनी उन्हें बहुत पसंद आई और वह उसे गाने के लिए तैयार हो गए। रिकॉर्डिंग के बाद वह रफ़ी के पास थोड़े पैसे लेकर गए। रफ़ी ने पैसे यह कहते हुए वापस लौटा दिए कि यह पैसे तुम आपस में बांट लो और इसी तरह बांट कर खाते रहो। लक्ष्मीकांत ने मुझे बताया कि उस दिन के बाद से उन्होंने रफ़ी की वह बात हमेशा याद रखी और हमेशा बांट कर खाया।

शहंशाह-ए-तरन्नुम कहलाने वाले मोहम्मद रफी के इन गीतो को सुनकर उनकी आवाज के जादू को महसूस करके देखिए :-

  • मुझे इश्क है तुझीसे मेरी जान जिन्दगानी…..
  • तुझे जीवन की डोर से बांध लिया है….
  • लिखे जो खत तुझे….
  • तेरी याद दिल से भुलाने चला हूं….
  • बहारो फुल बरसाओं…
  • पर्वतों से आज में टकरा गया…
  • सुहानी रात ढल चुकी….
  • ऐहसान मेरे दिल पर तुम्हारा है दोस्तों…..
  • ऐहसान तेरा होगा मुझ पर दिल चहाता है …..
  • परदेशियों से न आंखियां मिलाना…..
  • तकदीर का फसाना गाकर किसे सुनाऊ…..
  • रंग और नूर की बरात किसे पेश करू……
  • कोई नजराना लेकर आया है दिवाना तेरे लिए….
  • मैने पूछा चाँद से देखा है कहीं….
  • ये जिन्दगी उसी की है जो किसी का हो गया प्यार….

सैयद शबाना अली
हरदा मध्यप्रदेश