फिजाओं में वो हमे मुस्कुराने को कहते हैं,
हाए कैसे है वो संगदिल जख्मों को जलाने को कहते हैं,
तड़पते हैं रात दिन तन्हाई के साये में हम,
फिर भी वो हमें अपनी यादों को भुलाने को कहते हैं,
नहीं लगता है अब जिन्दगी में साया बहार का,
जो कुछ सुखे फूल हैं दामन में हमारे,
उन्हें भी हाए सितमगर दाफनाने को कहते हैं,
रूठे हुए हैं ख्वावों से हम,
फिर भी वो निदों से दामन को बचाने को कहते है,
खमोशी में ही कटती जा रही है जिन्दगी हमारी,
फिर भी वो गमों को छुपाने को कहते हैं,