काटों को मुस्कुराने का हक नहीं होता…
चिलमन में छुपा लेते हैं वो चहेरा अपना,
क्योंकि आईने को चहेरा छुपाने का हक नहीं होता,
बादलों में निकलता है चाँद इस तरह,
क्योंकि अन्धेरे को रोशनी को छुपाने का हक नहीं होता,
फूल हवाओं में महकाते है खुश्बू अपनी,
क्योंकि फूलों को खुश्बू को छुपाने का हक नहीं होता,
तकदीर के लिखे पर चलते हैं सभी,
क्योंकि तकदीर को हाले दिल सुनाने का हक नहीं होता,
यू जल जाते है शम्मा पर परवाने ऐसे,
क्योंकि परवाने को शम्मा को बुझाने का हक नहीं होता,
काटों को मुस्कुराने का हक नहीं होता…

सैयद शबाना अली