सच क्या था ये दुनिया से छुपा गए हम,
बिन सासों के भी जी के दिखा गए हम,

अब जो याद करता है खुशियों को,
वो हमारा बिखरा हुआ वजूद है,

बिन चिंरागों के भी खुद को जला गए हम,
ऐसे खामोशियों में सिमटी जिन्दगी हमारी,

जाज्बातों की सलाखों में कैद हो गई धडक़ने हमारी,
बिन फरियाद ही खुद को मिटा गए हम,

जख्मों को हम से ये गिला हैं,
साथ हमारा उन्हें उम्रभर का मिला है,
बिन तड़पे ही जिन्दगी बिता गए हम,