सुर्ख जोड़ा जो पहना था तुने, वो बड़ा हसी था,
लोगों को क्या मालूम हमारे लिए तो,

वो ही तेरी बेवफाई का सबूत था,
एक बात थी जो एक रोज तुने कही थी मुस्कुराते हुए,

हो सकता है, उसी रोज बिगड़ा हमारा नसीब था,
क्या जाने क्यों ये सजा हमें पानी थी,

लगता है हमे अपने खून से तेरी महेन्दी की किमत चुकानी थी,
क्यों तेरे सेहरे के फूल इस तरह मुरझाएं हुए से लगते है,

तु नहीं जानेमन तेरे फूल ही सही हमारी फ्रिक तो करते है,
क्यों तेरी पलको से ये आंसू मोती बनकर टपकते हैं,

क्या मेरी मौत पर ये भी गम करते हैं,
थरथराना कहूं या कपकपाना कहूं,

तु ही बता हमें ऐ जानेमन,
तुझको या तेरे होठों को किस को अपना दिवाना कहूं,

सैयद शबाना अली