संगदिल है वो उनकी संगदिली के सदके
निसार हो जाती है खुशियां हमारी,
हम तो तड़प के रह जाते है पल भर में
खतम हो जाती है खुशियां हमारी,
दिल हमारा निसार हो जाता है अपने ही जज्बातों पर,
फिर तो लफजों में ही ढल के रह जाती है खुशियां हमारी,
शम्मा बनके जलने लगते है शबो रोज हम,
लेकिन परवानों की तरह जल कर खाक हो जाती है खुशियां हमारी,
सुना है नजरों से दिल का गहरा रिस्ता है,
इसलिए अश्कों में ही ढल जाती है खुशियां हमारी,
रखता है दिल ख्याल उन जज्बातों का,
जिनको छु कर गुजर जाती है खुशियां हमारी,