फूलों की थी तमन्ना हमने,
एक काटा मिला है हमें तेरे शहर का,
जिन्दगी से की थी महोब्बत हमने,
जब एक दरिचा खुला था तेरे शहर का,
अब और नहीं दर्द सहा जाता है हमसे,
रू-ब-रू था हमारे जख्मों भरा काफला तेरे शहर का,
खमोशियों में सिमटती जा रही हैं जिन्दगी हमारी,
ये कैसा शौर मचा था तेरे शहर का,
आंखे हमारी पुरनम थी इसलिए तो
आक्सों का एक दरिया बह निकला था तेरे शहर का,
रंगों से अपनी जिन्दगी को सजाना चाहते थे,
सजा के उसको मुस्कुराना चाहते थे,
वक्त की आंधियों में हर रंग हमारे हाथों से बिखर गए,
कोई रंग न वाकि रह सका हाथों में तेरे शहर का,
जिन्दगी में यूं बुझे उम्मीदों के चिंराग,
शबे गम में हम तन्हा रोए हर बार,
मिल न सकी जिन्दगी को ख्वावों ख्यालों की दुनिया,
बस एक नक्शा ही वाकि रह गया आंखों में तेरे शहर का….