मेरा साया आज मेरे साथ नहीं,
किस गली से गुजरा हूं मैं आज मुझे याद नहीं,
जिन्दगी में हर मुकाम पर ठोकरे खाता रहा मैं,
लेकिन कहां-कहां लगी है चोट आज मुझे याद नहीं,
बेईरादा ही चला जा रहा हूं जिन्दगी की राहों पे,
कहां है मेरी मंजिल आज मुझे याद नहीं,
गुम हो चुकी राहों का मुशाफिर हूं मैं,
कहां रूके आखरी बार कदम आज मुझे याद नहीं,
जिन्दगी में खुशियों की तलाश कभी खत्म नहीं हुई,
गमों से है कौन सा रिश्ता आज मुझे याद नहीं,
कभी आंधियों में बनाये थे आशियाना हमने,
कहां की थी वो सरजमी आज हमें याद नहीं,
सैयद शबाना अली
हरदा मध्यप्रदेश