मुझे तन्हाई में न खीच ये गम ए जिन्दगी,
मैं अभी ख्वाव में हूं…

मुझ पे मेरा ही अभी इख्तयार नहीं,
मुझे अभी मद्होश ही रहने दो,

मैं अभी ख्वाव में हूं…
बैखुर्दी में मैं अभी सोया था,

अपने ही टुटे हुए अरमानों पर बेसबब रोया था,
अभी मुझे कुछ चेन मिला हैं,

लेकिन जख्मों से ये गिला हैं,
मैं अभी ख्वाव में हूं…

न जाने क्या मंझील है मेरी,
भटका हुआ मुसाफिर हूं,

हर ख्वाहिश रही अधूरी,
अब क्या आश करूं,

अब तो मौत से ही मैं प्यार करूं,
लेकिन वो भी मुझसे अभी दूर हैं,

लेकिन ये मेरा ही कसूर हैं,
क्योंकि मैं अभी ख्वाव मैं हूं,

बार-बार याद करता हूं मैं,
और याद करके तड़पता हूं मैं,

ये कैसी बैचेनी है जिससे रोज लड़ता हूं मैं,
काश मैं इस बैचेनी को समझ पाता,

तब मैं खुद से भी लड़ पाता लेकिन..
मैं अभी ख्वाव में हूं…

सैयद शबाना अली