अपनी जिन्दगी की हकीकत बया नहीं कर पाऊंगा मैं,
लफजों में छुपाऊंगा या अक्सों में ढल जाऊंगा मैं,
बहुत गहरा है जख्म दर्दे दिल का अगर,
इस तरह तो गमों से लड़ नहीं पाऊंगा मैं,
शबे गम में बहुत मजबूर हूं मैं,
अपने ही जख्मों से चुर हूं मैं,
इस तरह तो जी नहीं पाऊंगा मैं,
बहुत तड़पाता हैं मुझें खाव्वों का बिखर जाना,
आंसकों के मोतियों का पालकों से गिर जाना,
इस तरह तो उम्मीदों के चिरांगों को जला नहीं पाऊंगा मैं,
जख्मों में छुपाऊंगा या यादों में सिमट जाऊंगा मैं,