दर्द हूं मैं तू मेरी अवाज न बन,
छुप जा किसी जख्म में कही,

खमोश रह मजलुम की फरियाद न बन,
जिन्दगी मेरी जख्मों का बना तिलिस्म हैं,

जिससे निकल पाना नमुमकिन हैं,
दूर हो जा तू मुझसे,

तू भी इस जाल का गिरफतार न बन,
बहुत कुछ है जो मैं छोड़ चुका हूं,

जिन्दगी की राहों में,
बैबुनियाद है जो मिल न सके,

उसका तलबगार न बन,
ख्वाबों की किमत चुका पाना मुनासिव नहीं हैं,

जो चाहता है दिल वो मिल जाए मुमकिन नहीं हैं,
अनमोल है जो उसका तू खरीदार न बन,

समझदार होते है वो लोग,
जो हवाओं का रूख देखकर रास्ता बदल लेते हैं,

गमों की आंधियों से बुझने वाला है जो चिंराग,
उस चिंराग का तू गमखार न बन,

अब तो मौत भी मुझ पर महेरबान नहीं हैं,
शायद मेरी ही महोब्बत में कोई कमी हैं,

जिससे रूठी है सारी कायनात,
उसका तू गुलफाम न बन,
दर्द हूं मैं तू मेरी अवाज न बन……