earth's debtEditorial

हमारे देश में अपने देश की मिट्टी की बहुत इज्जत की जाती हैं। और देश की धरती को माँ के समान माना जाता है। भारत देश में रहने वाला हर नागरिक अपने देश पर गर्व करता हैं। अपने देश से प्यार करने वाला हर शख्स इस देश की आन, वान और शान के लिए हर पल अपनी जिन्दगी कुर्बान करने को तैयार रहता हैं।

सालों पहले की बात करें तो पहले हमारे देश के लोगों में अपनी देश की भूमि को लेकर वो इज्जत देखने को मिलती थी। इंसान उस पर कदम संभल-संभल कर रखता था। कहीं उसका जमीन पर तेज चलने से जमीन को कोई तकलीफ न पहुंचे। वहां अपने देश की मिट्टी को अपने हाथ में उठाकर अदब के साथ अपने माथे पर लगाकर गर्व महसूस करता था। और हमेशा अपने दिल में यही सोचता था एक दिन उसे भी इसी मिट्टी मिल जाना है।

लेकिन आज वक्त के साथ सब कुछ बदल सा गया है। आधुनिकता के दौर में हम इस तरह से आगे बढ़े की सारी तहजीब और संस्कार पीछे कही छुट गए। और आज लोग देश और देश की प्रकृति की इज्जत तो करते हैं। लेकिन बस ये मन बहलाने के लिए झुठा दावा ही साबित होता है। क्योंकि जब सच हमारे सामने आता है तो यह दिल दहलाने वाला होता है।

पहले इंसान प्रकृति से खिलवाड़ करने से डरता था। इसके दिल में दहशत थी। कई उसका उठाया एक गलत कदम उसके जीवन से खुशियों को न छीन लें। लेकिन आज का इंसान इतना निडर हो गया हैं। वो प्रकृतिक संसाधनों का इस बेहरहमी से दोहन कर रहा हैं। कुदरत की दी हुई ये अनमोल नेमते अपना अस्तित्व खोते जा रही हैं। लेकिन इंसान है जिसको इसकी कोई परवाह नहीं है।

इंसान की इसी निर्डरता के चलते आज हमारे देश की जंगल वन, नदियां, तलाब, झरने आदि अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं। सबसे बड़ी बात देश की जिस मिट्टी को हम माँ के समान मानते हैं। कही न कहीं हमारी लापरवाहियों की वजह से वो भी अपना अस्तित्व खोती जा रही हैं।
आज हमारे देश में चंद पैसों के लालच में किसान अपनी उसी माँ के सिने पर आग जला रहा हैं। एक फसल बनके तैयार होती है। कि दूसरी की लालच में खेतों में आग लगा दी जाती हैं। और हमारी धरती माँ का सीना इस आग की लफटों से जलता रहता हैं। कहने को तो ये आग चंद लम्हों में बुझ जाती हैं लेकिन इस आग की लफटों से हमारी धरती माँ का सीने पर जो जख्म होते हैं वो सालों के फैर के बाद भी नहीं मिट पाते हैं।

हमारी ये माँ बस एक आह भर कर रह जाती हैं। क्योंकि माँ का दिल होता ही इतना बड़ा हैं जो अपने बच्चों की हर गलती को माफ कर देती हैं। लेकिन फिर भी इंसान का जुल्म इस पर खतम नहीं होता हैं। और वो फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए जहरीले रासायनिक खाद्यों का प्रयोग कर के प्रकृतिक संसाधनों का के साथ खिलवाड़ तो करता ही हैं। भूमि की उर्वकता शक्ति भी इससे कम होती है। साथ ही लाखों लोगों की सेहत के साथ भी खिलवाड़ करता हैं।

भारत मे 70 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर हैं। और 51 प्रतिशत क्षेत्रफल पर कृषि की जाती हैं। 58 प्रतिशत लोग कृषि ही करते हैं। यानि ये सच है कि देश की 70 प्रतिशत आबादी हमारी धरती माँ के सीने पर आग जला रहीं हैं। और 30 प्रतिशत लोग इसका तमाशा देख रहें हैं। इनमें से 12 प्रतिशत लोग वो भी हैं जो इस देश की सिहासत पर राज करते हैं।

ये आग यहीं पर नहीं थमती हैं। जहां-जहां इसका धुआं पहुंचता हैं। वह तक की जलवायु को ये प्रदूषित करती हैं। साथ ही मानव शरीर के लिए भी ये हानिकारक होती हैं।

हमारे देश में सिर्फ किसान ही नहीं हैं जो धरती पर हो रहें इस जुल्म में शमिल हैं। बड़ें-बड़ें ओद्योगिक घरानें भी धरती पर हो रहें जुल्म में अपनी बढ़चढक़र हिस्सेदारी निभा रहें हैं। ऐसा लगता हैं जैसे हर कोई ये साबित करने में लगा हुआ हैं कि जुल्म करने वालों की लिस्ट में उसका नाम पीछे न रह जाए।

इसलिए तो उद्योगों से निकलने वाला कचरा और अपशिष्ट यूंही खुले तौर पर जमीन पर फैक दिया जाता हैं। जिसमें से निकलने वाले रासायनिक प्रदार्थ से भूमि जल ही नहीं आस-पास का वातावरण भी प्रदूषित होता हैं। औद्योगिक प्रदूषण उद्योगों की विभिन्न गतिविधियों के कारण होने वाला एक प्रकार का प्रदूषण होता हैं। ओद्योगिक प्रदूषण का पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव देखने को मिल रहा है। उद्योगों से वायु प्रदूषण मिट्टी प्रदूषण, जल प्रदूषण, थर्मल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण होता हैं। जिसका प्रकृति स्तोत्रों पर गंभीर प्रभाव पड़ता हैं।

हमारे देश में एक और बहुत बड़ी समस्या हैं प्लास्टिक का उपयोग। प्लास्टिक के प्रयोग से भी हमारी धरती के लिए आने वाले दिनों में एक गंभीर समस्या का रूप ले रही हैं। प्लास्टिक से बनी वस्तुओं का जमीन या जल में इकट्ठा होना प्लास्टिक प्रदूषण कहलाता है, जिससे वन्यजीवों और मानव जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। प्लास्टिक प्रदूषण का प्रभाव भूमि, महासागर और जलमार्ग वन जीवों से लेकर पशु पंक्षियों पर भी इसका प्रभव देखा जा रहा है। प्लास्टिक कैरी बैग हमारी प्रकृति और मानव जीवन के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है। बायोडिग्रेडेबल नहीं होने के कारण प्लास्टिक कैरी बैग कभी सड़ता या गलता नहीं है और पर्यावरण के लिए एक गंभीर खतरा बन कर सामने आता हैं।

प्रदूषण का सिलसिला तब तेजी से शुरू होता है जब काम में आने के बाद इन कैरी बैग्स को कचरे के रूप में यूंही फेक दिया जाता है। कुछ सालों से प्लास्टिक के प्रदूषण के दुष्परिणाम बहुत ही गंभीर रूप लेते जा रहे हैं। जमीन में बिखरा हुआ प्लास्टिक मिट्टी में जाकर पानी में घुलता हैं और ये मिट्टी को प्रदूषित करता हैं। मिट्टी से यहां भूमिगत जल को भी प्रदूषित कर रहा हैं। इसलिए प्लास्टिक के उपयोग पर भी हमें गंभीरता से सोचने की जरूरत हैं। क्योंकि यह भी हमारी धरती के अस्तित्व को धीरे-धीरे जहर देकर खतम कर रहा हैं। हमारी धरती पल-पल मिट रही और हम तमाशा देख रहें हैं।

लेकिन आज जिस तरह से हमें प्रकृति में दिन प्रतिदिन बदलाव होते दिख रहें उससे हमें सबक लेना चाहिए कहीं ऐसा न हो जिस दिन प्रकृति अपना रौद रूप दिखाएं तो हमें सभलने का भी मौका न दें। जरा सी लालच में हम अपना अस्तित्व ही खतम कर लें। क्योंकि जिस तरह से आज हम प्रकृतिक संसाधनों के साथ खिलवाड़ कर रहें वो बहुत ही चिन्ताजनक हैें।

हमारे देश में फैले हरे-भरे जंगल हमारे देश की सुन्दरता को बढ़ाते हैं। वनों से हरा-भरा हमारा देश प्रकृती की वो अनमोल देन हैं जिससे हमें कई लाभ प्राप्त होते हैं वनों से हमारे देश की धरती की गोद हरी-भरी हैं। वनों के बिना हम धरती पर जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। ये हरे-भरे वन हैं जिससे हमारे शरीर जीवन रूपी प्राण वायु मिलती हैं।

प्रकृति को सुन्दर बनाने के साथ-साथ ये हमारे जीवन की रक्षा करते हैं। ये हमे ऑक्सीजन, स्वच्छ जल, भोजन, प्रदान करते हैं। साथ ही ये पंक्षियों के लिए सुन्दर आशियाना प्रदान करते हैं। जिससे हमारे आप-पास इन पंक्षियों की चहचहाट से रौनक बनी रहती हैं। वनों से जलवायु नियन्त्रित रहती हैं। वन वातावरण को सन्तुलित रखते है। वर्षा को नियन्त्रित करते है। बाढ़ और भूमि कटाव को नियन्त्रण रखते हैं। वनों की वजह से हमारी पृथ्वी पर प्रदूषण नियन्त्रित रहता हैं।

लेकिन आज जिस तरह वनों की अंधाधुंन कटाई कर के हमारी धरती माँ की गोद को सुना किया जा रहा हैं। ये बहुत चिंताजकन हैं। इससे हमारी धरती माँ की गोद तो सुनी हो रही हैं साथ ही जलवायु में भी दिन प्रतिदिन भारी बदलाव देखने को मिल रहें हैं। बेमौसम बारिश तुफानों का आना ये सब हमारी धरती माँ की सुनी हो रही गोद का ही अभिशाप हैं।

आज इंसान अपना अशियाना बनाने के लिए पंक्षियों से उनका अशियाना छीन रहा हैं। पहले इंसान ऐसा घर बनाते थे। एक छोटा सा घर होता था इसके सामने एक सुन्दर सा अंगन होता था। उसमें पेड़ पौधे उगाएं जाते थे। जिसमें कई तरह के पंक्षी अपना अशियाना बनाते थे। और उनकी मधुर बोली हमारे कानों में रस घोलती थी। सुबह का अंगाज ही पंक्षियों की चहचहाट से होता था।

लेकिन आज का इंसान आधुनिकता की दौड़ में ऐसा दिवाना हुआ। प्रकृति की सारी नेमत को पीछे छोड़ दिया। आज इंसान की वजह से बैघर हुए ये पंक्षी जब तड़प कर धरती पर गिर कर मरते हैं तो फिर हमारी धरती माँ के सीने से एक आह निकलती हैं।

जुल्म की भी एक इन्तहा होती हैं। अगर हम अपनी धरती पर होने वाले इस जुल्म से बाज नहीं आए तो वो दिन दूर नहीं जब हमारी इस धरती माँ का रौद्र रूप हमारे सामने आए, और धरती अपना सीना खोल दे और इंसान उसमें समा कर पल भर में अपना अस्तित्व खो दें। क्योंकि इतिहास गवहा हैं जब-जब धरती ने अपना रौद्र रूप दिखाया हैं। इंसान का वजूद उसी मिट्टी में मिलकर रह गया हैं। जिसपर कभी वो अकड़ कर चलता था।

Syed Shabana Ali

Harda (M.P.)