विजय अखबार पढ़ रहा था कि पड़ोसी आया और आकर बोला “एक खुश खबरी है।” विजय बोला ” क्या? ” पड़ोसी धीरे से मगर रहस्यमय अंदाज मे बोला ” तेरा भाई खेत बेच रहा है।” विजय ने पूछा ” क्यों? ऐसी क्या मुसिबत आन पड़ी? ”
पड़ोसी अखबार बनता हुआ बोला ” जब तेरी भाभी बीमार पड़ी थी तब तेरे भाई ने साहूकार से खेत गिरवी रख कर दो लाख रुपये उधार लिए थे। आज ब्याज सहित चार लाख हो गए है। साहूकार ने आखरी चेतावनी दे रखी है। खेत ही बेचना पड़ेगा।” अंदर से विजय की पत्नी सब सुन रही थी। बाहर आकर बोली ”
हम लोग अभी जिंदा है। ऐसा नही होने देगें।” फिर वह भीतर गई और चार लाख रुपये विजय के सामने रखते हुए बोली ” मेरे पापा ने मेरे नाम एफ डी करवाई थी ये वो पैसे हैं। जाकर घर की इज्जत बचाओ। पैसे भाई से बड़े नही होते। ” विजय बोला ” मगर मै क्यों जाऊँ? भैया तो मुझसे बात ही नही करते। और तुम ये कुर्बानी क्यों दे रही हो। बिकने दो खेत, बिकता है तो। हमें क्या? ” पत्नी ने पड़ोसी को धक्का देकर कहा ” चल निकल यहाँ से चुगलखौर। तुमने ही दोनों भाईयों के बीच दुश्मनी के बीज बोये है न?
” पड़ोसी पूँछ दबा कर भाग गया। पत्नी ने पति की आँखों मे देखकर कहा “खानदानी औरत हूँ। मेरे बाप ने यही सिखाया है कि जब परिवार की इज्जत पर बात आये तब सारे मनमुटाव भूल कर एक हो जाना। जीवन मे कभी अकेली नही रहोगी।” फिर पति के हाथ पर पैसे रखे और हाथ पकड़ कर जेठ के घर ले गई।”
दोनों ने देखा बड़ा भाई सिर पकड़े आंगन मे खटिया पर बैठा था। छोटे भाई ने चुपचाप सारे पैसे भाई की गोद मे रख दिये। फिर बोला ” इतनी बड़ी परेसानी मे गुजर रहे हो भैया।मुझे एक बार भी नही पुकारा? ” बड़ा भाई पैसों की तरफ देखते हुए बोला ” तुमहारे पास इतने पैसे कहाँ से आये? ”
छोटा भाई अपनी पत्नी की तरफ इशारा करते हुए बोला ” आपकी बहु ने दिये है। शादी के समय इसके पिता ने इसके नाम एफ डी करवाई थी।। ” बड़े भाई ने बहु के सामने दोनों हाथ जोड़ दिये। बोला ” बेटा, इतनी बड़ी रकम मै लौटा नही पाऊंगा। ” बहु घुंघट मे ही बोली ” मुझे नही चाहिए भैया। आप रहन रखा खेत छुड़ा लो। पैसे घर की इज्जत से बड़े नही होते” बड़े भाई की आँखों मे आँसू बह निकले। बोला” तुम जैसी बीरबानी हर घर मे पैदा नही हो सकती। मै तुम्हारे खानदान को नतमस्तक होकर प्रणाम करता हूँ।” इसके बाद बड़े भाई ने साहूकार का कर्जा भर दिया।
और दोनों भाई फिर से एक हो गए।
जो भाई अपने भाई की बदनामी पर हँसता है। उससे बड़ा कुलद्रोही कोई नही हो सकता है। जो नारी ससुराल की इज्जत बचाने के लिए खुद आगे खड़ी हो जाए उससे बड़ी संस्कारवान नारी कोई नही हो सकती।
इसलिए भाई के गिरने का इंतजार मत करिये। गिरते भाई को बचाने के लिए अपनी फौलादी भुजाएं फैला कर रखिये। भाई गिरा तो कुल ही गिर जायेगा। फिर तो तुम भी गिरे हुए कुल के कहलाओगे।
