दुनिया में गरीबी से बड़ा कोई दर्द नहीं हैं। और गरीबी में भूख से बड़ा कोई जख्म नहीं हैं। क्योंकि इस जख्म में तड़पते-तड़पते हर साल हमारे देश में लाखों लोगों की जान चली जाती हैं।
हर कोई नहीं समझ सकता हैं। इसकी तड़प को भूख की तड़प क्या होती है ये सिर्फ वही समझ सकता हैं। जिसने भूख से पल-पल तड़पते अपने बच्चों को अपनी आंखों के सामने दम तोड़ते हुए देखा हो।
इतने विकसित राष्ट्र की सूची में आने वाले हमारे देश में ये स्थिति पैदा कैसे हुई ये सोचने वाली बात हैं। अन्न का भंड़ार कहलाने वाले हमारे देश में ऐसा क्या हुआ की आज इस देश के नागरिक ही भूखे मरने पर मजबूर हैं।
भूख की तड़प को वो लोग नहीं समझ सकते है। जो बड़े-बड़े महलों में रहते है। एक दिन की अपनी खुशी के लिए लाखों का खाना यूंही कचरे में फैक देते हैं। हमारे देश में जहां भूखमरी एक गंभीर समस्या का रूप लेती जा रही हैं। वही दूसरी ओर हमारे देश का एक बड़ा हिस्सा बड़े पैमाने पर हर दिन खाने की बर्बादी में शामिल हैं।
हमारे देश में आज ये आम बात हो गई है बचें हुए खाने को किसी गरीब मोहताज को देने की जगह फैक दिया जाता हैं। खाने की बर्बादी हमारे देश में भूखमरी का एक अहम करण बनती जा रही हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के आकड़ों के अनुसार हमारे देश में रोज तकरीबन 40 प्रतिशत खाना बर्बाद कर के फैक दिया जाता है।
आकड़ों पर ध्यान न भी दे तो हम रोज अपनी आंखों से अपने आस-पास खाने को बर्बाद होते हुए देखते हैं। अगर यहीं खाना बचा लिया जाए ओर उसे सही हाथों तक पहुंचा दिया जाए तो हमारे देश कितनी जाने यूं बेवक्त जाया होने से बच जाएं। और एक जान को बचाने का हमें जो मन का सूख मिलेगा वो तो अलग ही होगा जो हम लाखों की दौलत दे कर भी नहीं खरीद पाएगें।
हमारे देश में खाने की चीजों को पर्याप्त उत्पादन तो होता हैं। लेकिन ये खाना हर जरूरतमंद तक नहीं पहुंच पा रहा हैं। यही करण है हमारे देश की 25 प्रतिशत आबादी आज भूख से पीडि़त हैं।
हमारे देश से अगर हम भूखमरी की स्थिति को कम करना चाहते हैं तो हमे खाने को बर्बाद होने से बचाना होगा। और जो खाना हमारे घरों में शादी सामाजिक कार्यक्रमों में बच जाता हैं। उन्हें जरूरतमंदों तक पहुंचाने की पहल करना होगा।
हमारे देश में भूखमरी का एक बहुत बड़ा कारण देश में दिन प्रतिदिन बड़ती मंहगाई की समस्या भी हैं। आज हमारे देश में मंहगाई इतनी बड़ती जा रही हैं। खाने की रोजमर्रा की चीजे ही गरीब लोगों की पहुंच से बहार होती जा रही हैं। पहले गरीब इंसान दाल रोटी खाता था और खुश रहता था। लेकिन आज हमारे देश का सिस्टम यूं बना की गरीबों की थाली से दाल रोटी भी छीन ली गई।
अब गरीब इंसान बैचारा क्या करें। सत्ता का ताज जिसके सर पर हैं। वो तो अपने सामने करोड़ों रूपए की थाली लिए रोजाना भर पेट खाना खाता हैं। ऐसा इंसान क्या खाली पेट के दर्द को समझेगा। अब कोई भूखा इंसान तो उस ताज का बोज अपने सर पर बर्दाश्त नहीं कर सकता हैं जो देश के लाखों लोगों के खून और आह से बनकर तैयार किया गया हो। फिर तो स्थिति यूं की यूही बनी रहने वाली है। फिर तो भूख से मरने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन बड़ेगी कम कैसे होगी। जब कोई दर्द समझेगा तभी तो दवा दी जाएगी।
हमारे देश भूख का एक ओर बड़ा कारण हैं। हमारे देश अनाज के भंडारण की कमी होना। हमारे देश हर साल कितनी अनाज की पैदावार है। लेकिन ये अनाज खेत से निकलकर सीधे मंडी में पहुंचता है। सरकार द्वारा अनाज को खरीद लिया जाता हैं। लेकिन मंडियों में भंडारण की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने के कारण कितना अनाज कभी बारिश में गिला होकर तो कभी खुले में यूही रखे होने के कारण सड़ जाता हैं। अगर यही अनाज सही समय पर जरूरतमंदों तक पहुंचा दिया जाए तो हमारे देश में भूखमरी की कभी समस्या न हो।
वही हमारे देश में हर साल तकरीबन 7 हजार से 19 हजार लोग भूख से मर जाते हैं। यानी हर पांच मिनट में एक इंसान हमारे देश में भूख से मर रहा है।
वैश्विक भूख सूचकांक से ज्ञात होता है कि किसी देश में भुखमरी और कुपोषण की स्थिति क्या है। पिछले वर्ष यानी 2022 में 121 देशों की श्रेणी में भारत 107 वें स्थान पर था, 2021 में 101वें और 2020 में 94वें स्थान पर था। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में भूख का स्तर 28.7 अंक है, जो गंभीर स्थिति को व्यक्त करता है।
भारत इस बार इस सूची में 111वें स्थान पर पहुंच गया है। 2023 में भारत को 125 देशों में से 111वें स्थान पर रखा गया है, जिसमें देश में सबसे अधिक 18.7 फीसदी बाल कुपोषण दर दर्ज की गई है। इस सूचकांक में 28.7 अंक के साथ भारत में भूख का स्तर ‘गंभीर’ बताया गया है।
पिछले साल इस सूची में भारत 107 वें स्थान पर था। वैश्विक रिपोर्ट में कहा गया है, 2023 ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 28.7 अंक के साथ भारत में भूखे रहने वालों का स्तर गंभीर है।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति, 2022 रिपोर्ट के अनुसार, 224.3 मिलियन लोग या भारत की 16 प्रतिशत आबादी कुपोषित है, जिसमें 53 प्रतिशत प्रजनन-आयु वाली महिलाएं हैं। खून की कमी भी हो रही है।
रिपार्ट हमारे देश में इस समस्या की सच्चाई की एक धुधली तस्वीर ही हमारे सामने पेश करती हैं। हकीकत में तो सच्चाई ओर भी गंभीर स्थिति पैदा करती हैं।
अब कसूर किसका है ये सोचने वाली बात हैं। उस पिता का जो मंहगाई के बोज ताले दब कर अपने बच्चों के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम नहीं कर पा रहा है।
या उस माँ का जो अपने आंचल की ठंड़ी छांव से अपने बच्चे की पेट की भूख नहीं मिटा पा रही हैं।
या फिर देश की सियासत पर राज कर रहें उन पत्थर दिल इंसानों का जिनके बड़े-बड़े महलों में रहकर दिल भी पत्थर के हो गए। या अपनी सोने से भरी तिजौरीयों की चमक ने उनको इस तरह से अंधा कर दिया है। कि उन्हें किसी का दर्द दिखता ही नहीं हैं। या दिखता भी है तो ये अनदेखा कर देते हैं।
ये वही बात हैं
जो राज खुले वो सामने न आए,
हकीकत की तस्वीर परदे में कही छुप जाए,
हम तो अपने वजूद को बचाने में लगे हैं रोज,
क्या हुआ जो हमारे वजूद के आगे दुनिया सारी मिट जाए,
Syed Shabana Ali
Harda (M.P.)